नई दिल्ली. देश के लोगों को जल्द ही एक और वैक्सीन मिल सकती है। जुलाई के अंत तक या अगस्त की शुरुआत में इसकी वैक्सीन की लॉन्चिंग हो सकती है। अब तक देश में इस्तेमाल हो रही तीनों मरवैक्सीन से अलग है। सबसे पहले यह डीएनए तकनीक पर बनी है और यह 3 डोज की है। इसे कमरे के तापमान पर रखा जा सकता है और यह निडिल फ्री है। इसमें इंजेक्शन की जगह जेट इंजेक्टर का इस्तेमाल होगा। जायकोव-डी वैक्सीन को दवा कंपनी जायडस कैडिला ने बनाया है और यह दुनिया की पहली डीएनए प्लाज्मिड वैक्सीन है। भारत में इसके इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए ड्रग कंट्रोलर से मंजूरी मांगी गई है।
वैक्सीन में वायरस का जेनेटिक कोड
नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन (NTAGI) के चेयरपर्सन डॉक्टर एन के अरोड़ा ने बताया कि डीएनए तकनीक पर पहली बार वैक्सीन बनाई जा रही है। इसमें वायरस के जेनेटिक कोड के छोटे से हिस्से को लेकर शरीर को कोरोना के खिलाफ लड़ना सिखाती है। हमारे शरीर का कोड आरएनए और डीएनए में होता है। इसमें वैक्सीन डालते हैं तो यह शरीर के अंदर जाकर करके वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाती है।
56 दिन के भीतर लगेंगे तीन डोज
भारत में अभी लगाई जा रही तीनों वैक्सीन डबल डोज वाली है। जायकोव-डी तीन डोज की है। पहली डोज (जीरो दिन) के बाद दूसरी डोज 28 दिन में और तीसरी डोज 56 दिन पर दी जाएगी। यह वैक्सीन जेट इंजेक्टर से दी जा सकेगी। जेट इंजेक्टर का इस्तेमाल अमेरिका में सबसे ज्यादा होता है। इससे वैक्सीन को हाई प्रेशर से स्किन में इंजेक्ट किया जाता है। आमतौर पर जो निडिल इंजेक्शन यूज होते हैं, उससे फ्लूड या दवा मांसपेशियों में जाती है। जेट इंजेक्टर में प्रेशर के लिए कंप्रेस्ड गैस या स्प्रिंग का इस्तेमाल होता है। इससे वैक्सीन लेने वालों को दर्द कम होगा। क्योंकि यह आम इंजेक्शन की तरह आपकी स्किन पर चुभेगी नहीं।इस वैक्सीन का ट्रायल 12 से 18 साल के बच्चों पर भी हुआ है।
बाकी वैक्सीन से अलग है
जायकोव-डी एक डीएनए प्लाज्मिड वैक्सीन है। वायरस के खिलाफ शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए इसमें जेनेटिक मटेरियल का इस्तेमाल किया गया है, जैसे अमेरिका में फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए mRNA तकनीक का इस्तेमाल किया है। उसी तरह भारत में इस वैक्सीन के जेनेटिक मटेरियल में प्लाज्मिड-डीएनए का इस्तेमाल किया गया है। mRNA तकनीक को मैसेंजर RNA भी कहा जाता है, जो शरीर में जाकर कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने का मैसेज देती है। वहीं, प्लाज्मिड इंसानी कोशिकाओं में मौजूद एक छोटा डीएनए मॉलिक्यूल होता है।
वैक्सीन को किया जा सकता है मॉडिफाई
प्लाज्मिड-डीएनए इंसान के शरीर में जाने पर वायरल प्रोटीन में बदल जाता है। इससे शरीर में वायरस के प्रति मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स डेवलप होता है। यह वायरस को बढ़ने से रोकता है। अगर कोई वायरस अपना आकार-प्रकार बदलता है यानी उसमें म्यूटेशन होता है तो इस वैक्सीन को कुछ ही हफ्तों में बदला जा सकता है। यहां तक कि कोरोना के नए वैरिएंट के लिए बाकी वैक्सीन की तुलना में इसे आसानी से मॉडिफाई भी किया जा सकता है। बाकी वैक्सीन की तुलना में इसका रखरखाव ज्यादा आसान है। इसे 2 से 8 डिग्री तापमान पर स्टोर किया जा सकता है। ये 25 डिग्री के रूम टेम्परेचर पर भी खराब नहीं होती है। इस वजह से इसके रखरखाव के लिए कोल्ड चेन की जरूरत भी नहीं पड़ती है।