पंकज सुबीर. खेलों का आविष्कार मानव ने जीत या हार के लिए नहीं किया था, अपने मनोरंजन के लिए किया था और ये बात एकदम सच है कि बीते 46 दिनों में सभी टीमों ने मिल कर दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया। रोहित, गिल, विराट, श्रेयस और राहुल ने बल्ले से तो शमी, बुमराह, सिराज, कुलदीप और जडेजा ने गेंद से हम लोगों को रोमांचित बनाए रखा। आप क्यों 19 नवंबर को ही स्मृतियों में बनाए रखना चाहते हैं ? उससे पहले के मैचों को क्यों नहीं याद रखना चाहते ? याद रखिए शमी, सिराज और बुमराह द्वारा बोल्ड होते, स्लिप पर कैच होते और पगबाधा होते बल्लेबाज, रोहित, विराट, गिल, राहुल और श्रेयस द्वारा लगाए गए लंबे-लंबे छक्के, शतक और अर्धशतक। लेकिन इसमें हमारी गलती नहीं है, हमारी कंडिशनिंग की गलती है। हमारी फिल्मों में हमें दिखाया जाता है कि फिल्म के अंत में नायक विजयी रहता है और नायक के विजय भाव को अपने अंदर बसा कर हम सिनेमा हॉल से बाहर निकलते हैं।
हर दिन हर किसी का नहीं होता
असल में फिल्म देखते समय हम नायक के साथ एकाकार हो जाते हैं, जब अंत में नायक जीतता है, तो हमें ऐसा लगता है कि नायक नहीं हम ही जीते हैं। यदि किसी फिल्म में नायक अंत में जीतता नहीं है, तो वह फिल्म फ्लॉप हो जाती है। भले ही फिल्म ने पूरे समय दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया हो। श्रीदेवी और कमल हासन की फिल्म "सदमा" को याद कीजिए। फिल्म कमाल की थी, मगर दर्शकों को यह पसंद नहीं आया क्योंकि अंत में कमल हासन को बिना पहचाने श्रीदेवी रेल में बैठ कर चली जाती है, कमल हासन स्टेशन पर अपने आपको याद दिलाने के लिए बंदर की तरह नाचता रह जाता है। 19 नवंबर के अंत से पूरे विश्वकप के उल्लास को कम मत कीजिए, हमारी टीम ने हमारा भरपूर मनोरंजन किया है बाकी मैचों में, यह बात याद रखिए। हर दिन हर किसी का नहीं होता, कल भारतीय टीम का दिन नहीं था। अब दिन होता तो ये 240 रन भी बहुत थे डिफेंड करने के लिए। तब, जब आपके पास सारे विश्वस्तरीय गेंदबाज हों।
खेल के अंत में कोई एक ही जीतता है
मुझे याद आ रहा है कि जब मैं इछावर में रहता था और अपनी क्रिकेट टीम "प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र इछावर" का कप्तान भी था। तब हम 20-20 मैच ही खेलते थे। एक बार हम इछावर के पास गांव ब्रजेश नगर में टूर्नामेंट का फाइनल खेल रहे थे और पहले बैटिंग करते हुए हम 18 रन पर ऑल आउट हो गए थे। गेंद जमीन पर पड़ने के बाद जमीन से चिपकती हुई आ रही थी। हमने सोचा कि अब तो क्या जीतेंगे, मगर हमारे स्पिन बॉलर मनीष ने मुझसे कहा- "छुट्टू (मेरा घर का नाम, इछावर के दोस्त आज भी मुझे पंकज सुबीर नाम से नहीं जानते, सब छुट्टू नाम से ही जानते हैं ) चिंता की बात नहीं है, उनकी गेंदें सुर्रा (जमीन से चिपकती हुई) जा रही हैं, तो हमारी भी जाएंगी।" मनीष सुर्रा विशेषज्ञ था और दिन हमारा था और सामने खेल रही सीहोर की मजबूत टीम को हमारी छोटे कस्बे इछावर की टीम ने 9 रन पर आल आउट कर ट्रॉफी जीत ली थी। कल भारत का दिन नहीं था, कल का दिन ऑस्ट्रेलिया का था। होता तो बुमराह, शमी, सिराज पहले पंद्रह ओवर में ही मैच को हमारे पक्ष में निर्णायक रूप से झुका देते। कोई भी हारने के लिए नहीं खेलता, सभी जीतने के लिए ही खेलते हैं, मगर खेल का नियम है कि जीतेगा कोई एक ही।
ये तो होना ही था
अति महत्त्वाकांक्षी माता-पिता के बच्चे जब प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होते हैं, तो वह असल में माता-पिता की असफलता होती है। माता-पिता जब अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों के कंधों पर रख देते हैं तो बच्चों के कदम लड़खड़ा जाते हैं। कल की हार टीम की हार नहीं है, हम क्रिकेट प्रेमियों की हार है, जिन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ टीम पर रख दिया। हमें पागलों की तरह केवल और केवल जीत ही चाहिए थी। भारत में मैच, सवा लाख से अधिक पगलाए हुए दर्शकों की स्टैंड्स में उपस्थिति, इतने कारण थे कि ये तो होना ही था। एक और घटना सुनाता हूं, एक बार हमारी टीम इछावर की प्रतिष्ठित "मुरलीधर जोशी स्मृति प्रतियोगिता" के फाइनल में पहुंच गई थी। मैच इछावर में ही था, पापा की पोस्टिंग वहां ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के रूप में थी। टीम में हम सब अस्पताल कैंपस के ही बच्चे थे, जिनके पिता या मां-पापा के अधीनस्थ कार्यरत थे। पापा हौसला अफजाई के लिए मैच देखने पहुंच गए। हम दोनों भाइयों के लिए पापा और बाकी बच्चों के लिए बड़े साहब दर्शकों में आ चुके थे। हम इतने नर्वस हुए कि जीतने की पूरी संभावनाओं के बाद भी हार गए। सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोगों की उम्मीदों का बोझ ग्यारह लड़कों पर था, यह तो होना ही था।
खेल का अर्थ आनंद होता है जीत नहीं
मैंने अभी तक जितने भी विश्वकप देखे हैं उनमें ये सबसे रोमांचक और सबसे दर्शनीय था। (जबकि मैं आईपीएल के कारण क्रिकेट देखना लगभग छोड़ चुका था।) इसकी बहुत सी बातें यादों में बनी रहेंगी और उनकी बातें हम करते रहेंगे। आइए इंतज़ार करते हैं 2027 के विश्व कप का। शायद उसमें विराट, रोहित, शमी और बुमराह नहीं हों, लेकिन उनकी जगह दूसरे होंगे। 'कल और आएंगे नग़्मों की खिलती कलियां चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले', खिलाड़ी असफल होने के बाद जब मैदान पर रोता है, तब वह असफलता पर नहीं रो रहा होता है, वह असल में हम दर्शकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने की निराशा के कारण रो रहा होता है। हमें ही बढ़ कर कहना होगा "कोई बात नहीं बच्चों, कप हाथ में नहीं आया कोई बात नहीं, पर हमारे लिए तुम ही विजेता हो।" आइए अपने खिलाड़ियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट प्रदर्शन का उल्लास मनाते हैं। इनमें से बहुत से खिलाड़ियों का यह अंतिम विश्वकप है, आइए उनको कहते हैं कि खेल का अर्थ आनंद होता है और इस विश्वकप में आपके कारण हमने भरपूर आनंद लिया। 2027 में जब हम विश्वकप देख रहे होंगे तब आपको बहुत मिस करेंगे। बहुत अच्छा खेले लड़कों, बहुत अच्छा खेले। हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है। कुछ दिन आराम करो, फिर मिलते हैं।
- पंकज सुबीर