16 दिसंबर 2012 इसी तारीख को 9 साल पहले देश की राजधानी दिल्ली के चेहरे पर वो बदनुमा दाग लगा था जिसे मिटा पाना संभव नहीं। उस रात एक चलती बस में पांच बालिग और एक नाबालिग दरिंदे ने 23 साल पैरामेडिकल छात्रा के साथ हैवानियत की वो हदे पार की जिसे जानकर देशवासियों का कलेजा कांप उठा। इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं। संसद से सड़क तक लोगों का गुस्सा फूटा। निर्भया को दोषियों को फांसी दे दी गई।
निर्भया केस ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया
निर्भया केस के बाद भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन हिंसा के कानून को बदलने को लेकर बहस ने जोर पकड़ा। रेप लॉ में सुधार का काम शुरु हुआ। तीन माह के भीतर रेप और महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की समीक्षा की गई और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानून को सख्त बनाया गया।
निर्भया केस के बाद हुए महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानूनों में बदलाव
- आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 को दुष्कर्म विरोधी अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है।
रेप की परिभाषा विस्तृत हुई
निर्भया कांड के बाद रेप की परिभाषा व्यापक हो गई। संशोधित अधिनियम के तहत रेप के दायरे को बढ़ाया गया। निर्भया कांड से पहले सेक्सुएल पेनिट्रेशन को ही रेप माना जाता था। लेकिन इस कांड के बाद गलत तरीके से छेड़छाड़ और अन्य तरीके के यौन शोषण को भी रेप की धाराओं में शामिल किया गया।
पॉस्को एक्ट बना
बच्चों को लैंगिक उत्पीड़न से बचाने के लिए प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल ऑफेंसेस (पॉक्सो) एक्ट 2012 बनाया गया। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार हुए आरोपी को आसानी से जमानत भी नहीं मिलती है।
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