LUCKNOW. यूपी के माफिया डॉन अतीक अहमद का मटियामेट हो गया है। शनिवार, 15 अप्रैल की रात अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की भी हत्या कर दी गई है। दोनों को उस वक्त गोली मारी गई जब उन्हें मेडिकल चेकअप के लिए कॉल्विन अस्पताल ले जाया जा रहा था। इस हत्या के दो दिन पहले झांसी में अतीक के बेटे असद अहमद और शूटर मोहम्मद गुलाम को एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया था। अतीक 44 साल से इस अपराध की दुनिया का डॉन बना हुआ था। जिसकी पूरी कहानी 1 मिनट में खत्म हो गई। यहां जानेंगे उसके शुरुआत से अंत तक की पूरी कहानी।
अतीक पर 17 की उम्र में लगा था हत्या का आरोप, वसूलता था रंगदारी
माफिया डॉन अतीक अहमद की आपराधिक कहानी का आगाज आज से करीब 44 साल पहले 1979 में हुआ था। उस वक्त इलाहाबाद के चाकिया मोहल्ले में फिरोज अहमद का परिवार रहता था, जो तांगा चलाकर परिवार का गुजर-बसर करते थे। फिरोज का बेटा अतीक हाईस्कूल में फेल हो गया था। इसके बाद पढ़ाई लिखाई से उसका मन हट गया था। उसे अमीर बनने का चस्का लग गया। इसलिए वो गलत धंधे में पड़ गया और रंगदारी वसूलने लगा। महज 17 साल की उम्र में अतीक अहमद के सिर हत्या का आरोप लग चुका था। उस समय पुराने शहर में चांद बाबा का दौर था। पुलिस और नेता दोनों चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाहते थे। लिहाजा, अतीक अहमद को पुलिस और नेताओं का साथ मिला। लेकिन आगे चलकर अतीक अहमद, चांद बाबा से ज्यादा खतरनाक साबित हुआ।
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गेस्ट हाउस कांड का मुख्य आरोपी था अतीक
इसके बाद अतीक अहमद का नाम जून 1995 में लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में भी सामने आया। अतीक इस कांड के मुख्य आरोपियों में से एक था, जिन्होंने मायावती पर हमला किया था। मायावती ने गेस्ट हाउस कांड के कई आरोपियों को माफ कर दिया था, लेकिन अतीक अहमद को नहीं बख्शा। मायावती के सत्ता में आने के बाद अतीक अहमद की उल्टी गिनती शुरू हुई। मायावती शासन काल में अतीक अहमद पर कानूनी शिकंजा कसने के साथ-साथ उसकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने से लेकर कई बड़ी कार्रवाई हुई थी। यूपी में मायावती सरकार के दौरान अतीक अहमद जेल की सलाखों के पीछे ही रहा। बसपा के दौर में अतीक का दफ्तर गिरवाने के साथ-साथ उसकी संपत्तियां जब्त करवा कर उसे जेल भेजा गया था। मायावती के शासन में उसकी राजनीतिक पकड़ को कमजोर ही नहीं बल्कि पूरी तरह से खत्म कर दिया गया था।
2004 में सांसद बन गया था अतीक
इस हमले और हत्याकांड को समझने के लिए हमें करीब 19 साल पीछे जाना होगा। देश में आम चुनाव हो चुका था। यूपी की फूलपुर लोकसभा सीट से बाहुबली नेता अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। इससे पहले अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक था, लेकिन उनके सांसद बन जाने के बाद वो सीट खाली हो गई थी। कुछ दिनों बाद उपचुनाव का ऐलान हुआ। इस सीट पर हुए सपा ने सांसद अतीक अहमद के छोटे भाई अशरफ को अपना उम्मीदवार बनाया। अशरफ के सामने बसपा ने राजू पाल को अपना प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया। जब उपचुनाव हुआ तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए बसपा प्रत्याशी राजू पाल ने अतीक अहमद के भाई अशरफ को हरा दिया।
राजू पाल की जीत से अतीक के खेमे में मच गई थी खलबली
उपचुनाव में अशरफ की हार से अतीक अहमद के खेमे में खलबली थी, लेकिन धीरे-धीरे मामला शांत हो चुका था। मगर राजू पाल की जीत की खुशी ज्यादा दिन कायम ना रह सकी। पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद ही 25 जनवरी 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में देवी पाल और संदीप यादव नाम के दो लोगों की भी मौत हुई थी। जबकि दो अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस सनसनीखेज हत्याकांड ने यूपी की सियासत में भूचाल ला दिया था।
राजू पाल की हत्या में अतीक और अशरफ का नाम
प्रयागराज में हुए इस सनसनीखेज हत्याकांड में सीधे तौर पर तत्कालीन सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ का नाम सामने आया था। राजूपाल की पत्नी पूजा पाल ने एफआईआर दर्ज कराई थी। दिन दहाड़े विधायक राजू पाल की हत्या से पूरा इलाका सन्न था। बसपा ने सपा सांसद अतीक अहमद के खिलाफ धावा बोल रखा था। उसी दौरान दिवंगत विधायक राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने थाना धूमनगंज में हत्या का मामला दर्ज कराया था। उस रिपोर्ट में सासंद अतीक अहमद, उनके भाई अशरफ, खालिद अजीम को नामजद किया गया था। मामला दर्ज हो जाने के बाद पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू कर दी थी।
राजू पाल की हत्या केमुख्य गवाह को धमका रहे थे अतीक के गुर्गे
राजू पाल हत्याकांड में में उमेश पाल एक अहम चश्मदीद गवाह था। जब केस की छानबीन आगे बढ़ी तो उमेश पाल को धमकियां मिलने लगी थीं। उसने अपनी जान खतरा बताते हुए पुलिस और कोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई थी। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर उमेश पाल को यूपी पुलिस की तरफ से सुरक्षा के लिए दो गनर दिए गए थे।
चार्जशीट में अतीक समेत 11 लोगों के नाम
विधायक राजूपाल हत्याकांज की जांच पड़ताल और छानबीन में जुटी पुलिस ने रात-दिन एक कर दिया था। पुलिस ने इस हत्याकांड की विवेचना करने के बाद तत्कालीन सपा सांसद अतीक अहमद और उनके भाई समेत 11 लोगों के खिलाफ 6 अप्रैल 2005 को चार्जशीट दाखिल की थी।
राजू पाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे सीबीआई जांच के आदेश
सरकार द्वारा सीबी और सीआईडी की जांच से भी राजू पाल का परिवार नाखुश था। निराश होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले को सुनने के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत ने 22 जनवरी 2016 को इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का फरमान सुनाया था।
सीबीआई ने नए सिए से शुरू की थी जांच
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 20 अगस्त 2019 को राजू पाल हत्याकांड में नए सिरे से मामला दर्ज किया और छाबनीन शुरू कर दी। करीब तीन साल विवेचना करने के बाद सीबीआई ने सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।
1 अक्टूबर 2022 को आरोप तय हुए थे
विधायक राजू पाल हत्याकांड की सुनवाई करते हुए सीबीआई कोर्ट की स्पेशल जज कविता मिश्रा ने1 अक्टूबर 2022 को छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे। इस हत्याकांड में पूर्व सांसद अतीक अहमद के भाई पूर्व विधायक अशरफ सहित अन्य लोग शामिल थे। सभी आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या की साजिश और हत्या के प्रयास में आरोप तय किए गए थे। हालांकि, कोर्ट के सामने आरोपियों ने आरोपों से इनकार करते हुए ट्रायल की मांग की थी। मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट में आरोपी अशरफ और फरहान को जेल से लाकर पेश किया गया था। जबकि जमानत पर चल रहे रंजीत पाल, आबिद, इसरार अहमद और जुनैद खुद आकर कोर्ट में पेश हुए थे।
24 फरवरी को उमेश पाल की हत्या कर दी गई
इस हमले में 24 फरवरी 2023 को मारा गया उमेश पाल प्रयागराज के राजू पाल हत्याकांड का अहम चश्मदीद था। उसकी गवाही पर ही बाहुबली अतीक अहमद समेत सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। उमेश पाल को पहले भी धमकियां मिली थी। यही वजह है कि उसे यूपी पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर दो सुरक्षाकर्मी यानी गनर उपलब्ध कराए थे। 24 फरवरी को प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में उमेश पाल पर पूरी तैयारी के साथ जानलेवा हमला किया गया और उसकी हत्या कर दी गई।