जयराम शुक्ल, Rewa. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) की ओर से द्रोपदी मुर्मू (Droupadi murmu) को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी नामित (Nominate) कर आदिवासी (Tribal) वर्ग को गौरवान्वित होने का मौका दिया है। यह देश की आधी आबादी और आदिवासी वर्ग को मजबूती देने वाला कदम है। पीएम के इस फैसले से अचानक मध्यप्रदेश (MP)की आंखों में चमक आ गई है। इसकी वजह है मध्यप्रदेश का 70 साल पुराना सपना। 1952 में यदि डॉ. राममनोहर लोहिया की मुहिम को समर्थन मिल जाता तो देश की प्रथम राष्ट्रपति (First President of india) के रूप में हमेशा आदिवासी महिला का नाम रहता, वह भी मध्यप्रदेश के साथ।
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असल में 70 साल पहले मध्यप्रदेश की आदिवासी महिला देश की पहली राष्ट्रपति बनते—बनते रह गईं थीं। यह महिला थीं सिंगरौली की सुमित्री देवी, जिनका नाम 1952 में डॉ.राममनोहर लोहिया ने राष्ट्रपति के लिए तय किया था। डॉक्टर लोहिया ने सिंगरौली से चुनी गईं अनुसूचित जनजाति समाज की सुमित्री देवी (Sumitri Devi) को कांग्रेस के डॉ.राजेन्द्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) के मुकाबले सोशलिस्ट पार्टी की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया था। उन्होंने इसके लिए काशिश भी भरपूर की, लेकिन राष्ट्रपति चुने जाने के लिए सांसदों व विधायकों की जरूरी संख्या न जुट पाने की वजह से सुमित्री देवी उम्मीदवार नहीं बन सकीं, लेकिन डॉ.लोहिया ने इस वंचित समाज की हिस्सेदारी के सवाल को वैश्विक बना दिया था। उस समय डॉक्टर लोहिया ने 'महारानी के मुकाबले मेहतरानी' और 'इलाकेदार के मुकाबले पल्लेदार' को लोकसभा व अन्य चुनावों में खड़ा करके भारत की सामाजिक विषमता का प्रश्न विमर्श के फलक पर ला दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने ओडिशा की द्रौपदी मुर्मू का नाम अगले राष्ट्रपति के लिए तय करके उस लौ को ऐसी मशाल में बदल दिया, जिसके आलोक में भारत में समता मूलक समाज की ठोस इमारत खड़ी होना है।
जानिए कौन थीं लोहिया की उम्मीदवार सुमित्री देवी
सिंगरौली की सुमित्री देवी में डॉ.राममनोहर लोहिया ने राष्ट्रपति की छवि देखी थी। 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में सिंगरौली (SINGROULI) विधानसभा सीट(द्वि सदस्यीय) से सुमित्रा देवी खैरवार व श्याम कार्तिक सोशलिस्ट पार्टी से निर्वाचित हुए। यह वह दौर था जब कांग्रेस की आँधी चल रही थी। पंडित नेहरू का तिलस्म छाया हुआ था। विंध्य प्रदेश के 60 सदस्यीय सदन में सोशलिस्ट पार्टी के 11 सदस्य चुनकर पहुंचे थे। सीधी-सिंगरौली से कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था, न विधानसभा में न लोकसभा में। विंध्य में समाजवादी आन्दोलन परवान चढ़ा था और लोहिया शोषित, पीड़ित वर्ग के मसीहा के तौर पर स्थापित हो चुके थे। सुमित्री देवी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके उन्होंने दलित-वंचित समाज में आशा की एक लौ जलाई थी।
एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू
चलिए पहले जान लें कि द्रोपदी मुर्मू कौन हैं..? द्रौपदी मुर्मू ओडिशा ( Odisha) के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर की निवासी हैं। 20 जून को उन्होंने अपना 64वां जन्म दिन मनाया। वे झारखंड की राज्यपाल (छह वर्ष तक) रह चुकी है। 2004 व 2009 में वे ओडिशा विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुईं। नवीन पटनायक मंत्रिमण्डल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री थी। द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्ष, सादगी व कर्मठता को परिभाषित करने वाला रहा। उनका करियर एक जूनियर क्लर्क से शुरू हुआ। राजनीति की यात्रा वार्ड पार्षद से नगर पंचायत उपाध्यक्ष से होता हुआ विधायक, मंत्री और राज्यपाल तक पहुंचा। अब वे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजित होंगी यह लगभग तय है। उनके मुकाबले विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। द्रौपदी मुर्मू 2017 मेंं भी चर्चाओं में थीं जब राष्ट्रपति पद के लिए उनका नाम चला था। यद्यपि बाद में उनकी जगह बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद का नाम तय हुआ।
18 जुलाई को होना है 15 वें राष्ट्रपति का चुनाव
देश के 15 वें राष्ट्रपति के लिए चुनाव प्रक्रिया 15 जून से शुरू हो गई है। प्रत्याशियों द्वारा नामांकन 29 जून तक भरे जाएंगे। अगले दिन यानी 30 जून को नामांकन पत्रों की स्क्रूटनी होगी। इसके बाद 2 जुलाई तक नाम वापसी के बाद 18 जुलाई को मतदान किया जाना है। जरूरत पड़ने पर 21 जुलाई को मतगणना की जाएगी। इसके बाद 25 जुलाई को अगले राष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाएगी। इसी दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल खत्म हो रहा है।