मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे ने ठुकराया 'सर्वदलीय प्रस्ताव', अब पानी भी त्यागा, महाराष्ट्र में बढ़ सकती है हिंसा

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Pratibha Rana
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मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे ने ठुकराया 'सर्वदलीय प्रस्ताव', अब पानी भी त्यागा, महाराष्ट्र में बढ़ सकती है हिंसा

Mumbai. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की आग अब और तेज भड़क सकती है। मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने खाना बंद करने के बाद अब पानी पीना भी छोड़ दिया है। मनोज के ऐलान के बाद अब महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल आ गया है। आशंका जताई जा रही है कि आंदोलन और ज्यादा हिंसक हो सकता है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में जारी हिंसा को रोकने के लिए बुधवार (1 नवंबर) को सर्व दलीय बैठक बुलाई गई। ढाई घंटे तक चली बैठक में सभी पार्टियों ने 'मराठा आरक्षण' का समर्थन किया और मनोज जरांगे पाटिल से भूख हड़ताल खत्म करने की गुजारिश की, लेकिन मामला काबू में नहीं आया।

बैठक में हल नहीं निकला, इसलिए अब पानी पीना बंद...

मनोज जरांगे ने बुधवार को कहा, सभी राजनीतिक दलों की बैठक हुई, लेकिन मराठा आरक्षण को लेकर कोई नतीजा नहीं निकल सका। इसलिए अब से मैंने पानी पीना भी बंद कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार को मेरी एक सलाह है। आप कुछ मराठा युवाओं के खिलाफ मामला तो दर्ज कर सकते हैं, लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि मराठों की आबादी करीब 6 करोड़ है। इसलिए सरकार को फैसला करना ही होगा।

चेतावनी : जितनी देर होगी, उतनी कीमत चुकानी पड़ेगी

मराठा आरक्षण की मांग को लेकर धरने पर बैठे मनोज ने आगे कहा, मैं राज्य सरकार को चेतावनी दे रहा हूं कि आप आरक्षण देने के लिए कदम उठाने में जितना विलंब करेंगे, इसकी कीमत उतनी ही ज्यादा चुकानी पड़ेगी। इस मुद्दे पर सरकार को बात करनी चाहिए और अतिरिक्त समय मांगना चाहिए। मैं मराठा समुदाय से वादा करता हूं कि हम आरक्षण का अधिकार हासिल करने जा रहे हैं और हम जीतेंगे।

मनोज की अपील : हिंसा का रास्ता छोड़ें, सरकार पर केस दर्ज कराएं

जरांगे ने कहा, मैं मराठा समुदाय से भी अपील करता हूं कि वे अदालत में अपील करें और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ पुलिस केस दर्ज कराएं। मराठा समुदाय के लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ें, लेकिन हिंसा का रास्ता और आत्महत्या जैसा कदम ना उठाएं। विधायक बच्चू कडू मुझसे मिलने आए थे। उन्होंने बताया कि उनके पिता एक मराठा हैं और उनके पास कुनबी जाति का प्रमाण पत्र भी है। वह मराठों को आरक्षण देने की अपील करने वाले पहले राजनीतिज्ञ हैं।

शरद पवार से जरांगे बोले- देरी की वजह बताए सरकार

मीटिंग में एनसीपी चीफ शरद पवार भी पहुंचे, हालांकि मनोज जरांगे पाटील ने भूख हड़ताल खत्म करने से इनकार करते हुए पानी पीना भी छोड़ दिया है। लेकिन उन्होंने बातचीत का रास्ता खुला रखा है। मनोज जरांगे ने कहा है कि अगर सरकार को और वक्त चाहिए वो उनके आंदोलन स्थल पर आकर यह बात कहे और इसकी वजह बताए, वरना वह मराठा आरक्षण मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा।

ऑल पार्टी मीटिंग : विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण देने की मांग

बुधवार को हुई ऑल पार्टी मीटिंग (सर्व दलीय बैठक) में कुछ प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पास किया गया, जिसमें कानून व्यवस्था बनाए रखने की बात भी थी। इस प्रस्ताव में ये भी कहा गया कि सभी पार्टियां मराठा आरक्षण के हक में हैं और आरक्षण देने के लिए जो काम होना है, उसपर एकसाथ काम करेंगी। इससे जुड़ी कानूनी औपचारिकताएं भी जल्द पूरी कर ली जाएंगी। सभी पार्टियों ने माना कि आरक्षण को फाइनल रूप देने के लिए कुछ और वक्त की जरूरत है। मीटिंग में शामिल कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार और उद्धव गुट के विधायक अंबादास दानवे ने मांग उठाई कि जब राज्य और केंद्र दोनों में बीजेपी की सरकार है तो संसद में विशेष सत्र बुलाकर मराठा समुदाय को आरक्षण दिया जाना चाहिए।

क्या है मराठा आरक्षण का मुद्दा?

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठाओं का बड़ा प्रभाव माना जाता है। राज्य में मराठा समुदाय की आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है। 2018 में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए बड़ा आंदोलन हुआ था। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा में बिल पास किया था। इसके तहत राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था।

अब तक हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर

- बिल के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई।

- बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरक्षण रद्द नहीं किया था, हालांकि इसे घटाकर शिक्षण संस्थानों में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया।

- इस बिल के खिलाफ मेडिकल छात्र बॉम्बे हाई कोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने आरक्षण को रद्द तो नहीं किया, लेकिन 17 जून 2019 को अपने एक फैसले में इसे घटाकर शिक्षण संस्थानों में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया।

- हाई कोर्ट ने कहा था कि अपवाद के तौर पर 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।

- हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था।


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