लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का चुनाव प्रचार थमने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक कन्याकुमारी पहुंच गए हैं। वे यहां स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडपम् में ध्यान लगा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक पीएम मोदी रॉक मेमोरियल पर 45 घंटे तक ध्यान लगाएंगे। इसके बाद वो 1 जून की शाम वो बाहर आएंगे। इससे पहले गुरुवार को कन्याकुमारी पहुंचने के बाद पीएम मोदी ने सबसे पहले उस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी जो देवी कन्याकुमारी को समर्पित है। हालांकि इस मंदिर को भगवती अम्मन मंदिर भी कहा जाता है।
131 साल पहले किया था ध्यान
आज से ठीक 131 साल पहले जब स्वामी विवेकानंद ( Swami Vivekananda ) 1892 में कन्याकुमारी आए थे, तब उन्होंने भी समुद्र की शिला पर ध्यान लगाने से पहले इसी मंदिर में भक्तिपाठक्तिपाठ किया था और आज प्रधानमंत्री मोदी ( Prime Minister Modi ) ने भी अपना ध्यान इसी मंदिर में दर्शन के साथ शुरू किया है। ये ध्यान पीएम ने गुरुवार शाम को 6 बजकर 45 मिनट पर शुरू, जो अब 1 जून की दोपहर 3 बजे तक चलेगा और इस तरह प्रधानमंत्री मोदी पूरे 45 घंटे तक ध्यानमग्न रहेंगे। जानकारी के मुताबिक ध्यान करने के दौरान वो किसी भी तरह का भोजन ग्रहण नहीं करेंगे और सिर्फ नारियल पानी, ग्रेप जूस और पानी ही ग्रहण करने वाले हैं। ध्यान की प्रक्रिया में पीएम मोदी 40 घंटे तक मौन धारण करके रखेंगे और ध्यान मंडपम् में जो बड़े से ऊं की आकृति है ,वहां उनका ये ध्यान चलेगा।
पीएम नरेंद्र मोदी ने की अम्मन देवी की पूजा , 45 घंटे का ध्यान प्रारंभ
स्वामी विवेकानंद ने भारत भ्रमण किया
साल 1892 में जब स्वामी विवेकानंद ने कन्याकुमारी की इस शिला पर ध्यान लगाया था। तब इस ध्यान ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत पर केंद्रित किया था। ये वो दौर था, जब स्वामी विवेकानंद जीवन दर्शन में अध्यात्म और हिन्दू धर्म की विशालता को आत्मसात कर रहे थे। उन्होंने तपस्या करने के लिए एक लंबी यात्रा को चुना था। इसमें वो चार वर्षों तक पूरे भारत का भ्रमण करने वाले थे और इस यात्रा का समापन कन्याकुमारी में होना था।
नरेंद्र नाथ दत्त नाम से जाने जाते थे विवेकानंद
दरअसल इस शिला पर पहुंचने से पहले स्वामी विवेकानंद, स्वामी विवेकानंद नहीं थे, बल्कि वो इससे पहले नरेंद्र नाथ दत्त नाम से जाने जाते थे, जिनका जन्म कलकत्ता में हुआ था। लेकिन कन्याकुमारी पहुंचकर उन्होंने कड़ी तपस्या की और रॉक मेमोरियल पर तीन दिन और तीन रात तक ध्यान लगाया था। वहीं इस ध्यान से उन्हें जो ज्ञान मिला, उसी ज्ञान ने उन्हें स्वामी विवेकानंद बनाया था।
धर्म संसद में दिया था भाषण
धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने जो ज्ञान दिया, उसने भारत और हिन्दू धर्म के प्रति पूरी दुनिया का नजरिया बदल दिया था। उन्होंने कहा था कि मुझे गर्व है, मैं उस हिन्दू धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। मुझे गर्व है, मैं उस भारत से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी थी। मुझे गर्व है हमने अपने दिल में इजरायल की वो पवित्र यादें संजो कर रखी, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। जानकारी के मुताबिक स्वामी विवेकानंद ने 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को यहां तप किया था। स्वामी जी ने जहां तप किया, उस स्मारक का नाम भी स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा गया है। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ( A P J Abdul Kalam ) ने भी यहां दो घंटे तक ध्यान लगाया था।
यहां शिव-पार्वती की बसी शक्तियां
इस शिला के कण-कण में भगवान शिव और देवी पार्वती की शक्ति बसी है। मान्यता है कि देवी कन्याकुमारी ने इसी शिला पर एक पैर पर खड़े होकर भगवान शिव के लिए तपस्या की थी। देवी कन्याकुमारी, माता पार्वती का ही रूप थीं। दिसंबर 1892 में जब स्वामी विवेकानंद भ्रमण करते हुए कन्याकुमारी पहुंचे और उन्हें ये पता चला कि समुद्र तट से कुछ दूर पानी के बीच एक ऐसी शिला है। जहां देवी कन्या कुमारी ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी तो उन्होंने निश्चय कर लिया कि वो भी देवी कन्याकुमारी का स्मरण करके उसी शिला पर भगवान शिव की शक्ति से अपने मन में अध्यात्म को आत्मसात करेंगे और ध्यान लगाएंगे और अब यही प्रधानमंत्री मोदी भी करने वाले हैं।