मुंबई धमाके के 17 साल: आठ साल से अधर में लटकी पांच गुनाहगारों की फांसी की पुष्टि

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BP Shrivastava
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 मुंबई धमाके के 17 साल: आठ साल से अधर में लटकी पांच गुनाहगारों की फांसी की पुष्टि

Mumbai. 17 साल पहले 11 जुलाई की शाम को व्यस्त समय में मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक हुए शक्तिशाली बम विस्फोटों के मामले में बांबे हाई कोर्ट ने अभी तक पांच दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि पर सुनवाई शुरू नहीं की है। 11 जुलाई 2006 को महानगर की लोकल ट्रेनों की पश्चिमी लाइन पर अलग-अलग स्थानों पर 15 मिनट के भीतर सात विस्फोट हुए थे और इसमें 180 से अधिक लोग की जान गई थी जबकि 800 से अधिक घायल हुए।



11 जुलाई 2006 को एक के बाद एक 7 विस्फोट हुए थे



पहला बम चर्चगेट से बोरीवली जाने वाली ट्रेन में शाम करीब 6: 20 पर हुआ। उस वक्त यह ट्रेन खार और सांताक्रुज स्टेशनों के बीच थी। लगभग उसी समय बांद्रा और खार के बीच एक लोकल ट्रेन में एक और बम विस्फोट हुआ। इसके बाद जोगेश्वरी, माहिम, मीरा रोड-भायंदर, माटुंगा-माहिम और बोरीवली में पांच और विस्फोट हुए। इस मामले में 2006 और 2008 के बीच महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के 13 सदस्यों को गिरफ्तार किया था।



10,667 पन्नों का आरोप पत्र 



एटीएस ने कोर्ट में 10,667 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था। उसके मुताबिक, एक आरोपित ने धमाकों में इस्तेमाल के लिए 15 से 20 किलोग्राम आरडीएक्स खरीदा था। आतंकियों ने प्रेशर कुकरों में अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल कीलों और आरडीएक्स भर विस्फोटों को अंजाम दिया था।



2015 में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया



सितंबर 2015 में ट्रायल कोर्ट ने 12 आरोपितों को दोषी ठहराते हुए उनमें से पांच को मौत की सजा सुनाई थी। सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जबकि एक आरोपित को बरी कर दिया गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए बांबे हाई कोर्ट में अपील दायर की। ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि हाई कोर्ट द्वारा की जानी चाहिए। दोषियों ने भी अपनी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए अपील दायर की।



2015 से हाई कोर्ट में सुनवाई रुकी हुई 



2015 के बाद से याचिकाओं पर हाई कोर्ट द्वारा सुनवाई की जानी बाकी है। तब से अपीलें नौ अलग-अलग पीठों के समक्ष सुनवाई के लिए आई हैं। नवंबर 2022 में जस्टिस एएस गडकरी और पीडी नाइक ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। तब से मामला किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया गया है।


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