New Delhi. भारत की सियासत एक ऐसा ऊंट है, जो कभी भी, किसी भी करवट में बैठ सकता है। बस उद्देश्य पूरा होना चाहिए। ऐसा ही इन दिनों विपक्ष में चल रहा है। संसद के मानसून सत्र में आए अविश्वास प्रस्ताव की बहस से बने नैरेटिव को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष अपने-अपने सियासी नफा-नुकसान का आकलन करने में जुटा हुआ है, लेकिन विपक्षी खेमा फिलहाल इस बात से संतुष्ट है कि नौ साल बाद पहली बार विपक्षी पार्टियों के बीच दूरियां घटी हैं। संसद के दोनों सदनों में नए गठबंधन (I.N.D.I.A.) के रूप में सामने आए विपक्षी दलों ने सभी मुद्दों पर ‘एक रणनीति और एक सुर’ के साथ अपनी साझी ताकत से मोदी सरकार को चुनौती देने की भरपूर कोशिश की है। भले ही अविश्वास प्रस्ताव में विजय नहीं पा सके, लेकिन इसने I.N.D.I.A. के दलों के लिए पुरानी आपसी कटुता को खत्म करने का एक मंच जरूर तैयार कर दिया। I.N.D.I.A. 2024 के चुनाव में भाजपा-एनडीए के खिलाफ साझी लड़ाई के लिए इसे एक महत्वपूर्ण आरंभ मान रहा है।
विपक्षी खेमे की आपसी दूरियां घटने की सबसे अहम नजीर तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का संसद में कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना रहा।
पहले विपक्ष के तीनों ही दल रह चुके एक-दूसरे के विरोधी
बेंगलुरु में I.N.D.I.A. के गठन से पहले तक कांग्रेस पर लगातार सियासी हमला करते रहे इन दोनों दलों (टीएमसी-आप) का रुख जग जाहिर था। 2019 के बाद से विवादित कृषि कानूनों, पेगासस से लेकर गौतम अदाणी विवाद जैसे कुछ मुद्दों को छोड़ टीएमसी और आप संसद में कांग्रेस की सियासी लाइन से अलग ही थे। इसके साथ ही राजनीतिक मोर्चे पर भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने में हिचक नहीं दिखाई, लेकिन शायद यह 2024 के लिए बने नए विपक्षी गठबंधन की सियासी मिठास का असर है कि 17वीं लोकसभा के आखिरी मानसून सत्र में आप और टीएमसी ने I.N.D.I.A. के अन्य घटक दलों की तरह कांग्रेस के साथ चलने से गुरेज नहीं किया। कांग्रेस ने भी इन दोनों पार्टियों से दूरी घटाने का संदेश देने में कोताही करती नहीं दिखी।
5 मौके... जिससे साफ नजर आई एकजुटता
मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोनों सदनों में बयान की मांग पर एकजुट रहे।
लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में राहुल गांधी के संबोधन के दौरान भी समर्थन में रहे।
अधीर रंजन चौधरी के निलंबन प्रकरण पर सभी एक विपक्षी दल एक दिखे।
राहुल गांधी के संबोधन के दौरान उनके समर्थन में महुआ मोइत्रा, कल्याण बनर्जी जैसे टीएमसी सांसदों का सत्तापक्ष के खिलाफ जैसा तेवर दिखा, वह नौ साल में शायद ही देखा गया हो।
कांग्रेस ने भी टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं को संसदीय रणनीति में अहमियत देकर तो दिल्ली की सेवाओं से जुड़े विधेयक का दोनों सदनों में पूरजोर विरोध कर यह संदेश दिया कि आप अब उसके लिए राजनीतिक रूप से अग्राहय नहीं है।
सरकार के विधेयकों का मिलकर किया विरोध
विपक्षी पार्टियों की कम हुई दूरियां केवल यहीं तक सीमित नहीं रही, बल्कि डाटा प्रोटेक्शन बिल, बायोडायवर्सिटी संशोधन बिल से लेकर सत्र खत्म होने के एक दिन पहले राज्यसभा में पेश हुए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव संबंधी विधेयक का विरोध करने में भी I.N.D.I.A. की एकजुटता अटूट रही। विपक्षी खेमे के दलों के बीच आपसी मनमुटाव खत्म करने की कुछ पहल भी शीर्ष नेताओं के स्तर पर सत्र के दौरान दिखाई पड़ी।
विपक्ष की ‘नई तस्वीर’ 31 अगस्त की तीसरी बैठक में निभाएगी अहम रोल
राज्यसभा में आप सदस्य संजय सिंह को निलंबित कर दिया गया तो वे संसद परिसर में ही धरने पर बैठ गए। एक दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तो दूसरे दिन सोनिया गांधी ने धरना स्थल पर जाकर संजय सिंह को अपना समर्थन दे दिया। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाली के बाद सदन में वापसी पर उनका गर्मजोशी से स्वागत करने में बिल्कुल भी झिझक नहीं दिखाई। विपक्षी तालमेल की इस तस्वीर को कांग्रेस नेता जयराम रमेश मुंबई में 31 अगस्त और एक सितंबर को I.N.D.I.A. की तीसरी बैठक के लिए अहम मान रहे हैं।