Budget: भारत सरकार का अंतरिम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। ऐसे में यह जान लें कि सरकार पर वर्तमान में कितना कर्ज है और उसका कितना ब्याज चुकाना पड़ रहा है। सरकार का कुल बजट अगर 100 रुपए है, तो उसका 20 प्रतिशत यानी 20 रुपए तो सिर्फ कर्ज और उसके ब्याज चुकाने में जाता है। ये देश के कुल रक्षा बजट का ढाई गुना, हेल्थ बजट का 10 गुना और एजुकेशन बजट का 7 गुना है। वर्तमान में केंद्र सरकार पर 161 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। केंद्र पर कर्ज देश की GDP की तुलना में 60% से ज्यादा हो गया है, लेकिन क्या आपको पता है, ये कर्ज आता कहां से है। इस स्टोरी में उसी का पूरा हिसाब-किताब जानते हैं...
पहला सवाल: सरकार को कहां से मिलता है कर्ज?
सरकार कई माध्यमों से कर्ज ले सकती है। इसके 4 तरीके हैं...
1. देसी कर्ज: इसमें बीमा कंपनी, कॉर्पोरेट कंपनी, आरबीआई, अन्य दूसरे बैंक आते हैं।
2. सार्वजनिक कर्ज: ट्रेजरी बिल, गोल्ड बॉन्ड, स्मॉल सेविंग स्कीम आदि।
3. विदेशी कर्ज: आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, अन्य अंतरराष्ट्रीय बैंक।
4. अन्य कर्ज: ये परिस्थिति के मुताबिक अलग-अलग तरीके के हो सकते हैं। मसलन- 1990 में सरकार ने सोना गिरवी रखकर पैसा उठाया।
दूसरा सवाल: वर्तमान में भारत सरकार पर कितना कर्ज है और 20 सालों में कितना बढ़ा है?
20 मार्च 2023 को सांसद नागेश्वर राव ने सरकारी कर्ज के बारे में सवाल पूछा था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि 31 मार्च 2023 तक भारत सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। सितंबर 2023 में भारत पर कर्ज 161 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। इसका मतलब है कि 6 महीने में भारत सरकार पर करीब 5 लाख करोड़ रुपए यानी 4% कर्ज बढ़ा है।
हालांकि, बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2023 में देश पर कुल कर्ज 205 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इसमें से भारत सरकार पर 161 लाख करोड़ रुपए, जबकि राज्य सरकारों पर 44 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है।
भारत सरकार पर 9 साल में 192 फीसदी कर्ज बढ़ा:2004 में जब मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो भारत सरकार पर कुल कर्ज 17 लाख करोड़ रुपए था। 2014 तक तीन गुना से ज्यादा बढ़कर ये 55 लाख करोड़ रुपए हो गया। जो सितंबर 2023 तक बढ़कर 161 लाख करोड़ हो गया है। इस हिसाब से देखें तो पिछले 9 साल में भारत सरकार पर 192% कर्ज बढ़ा है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा लिए गए देश और विदेश, दोनों तरह के कर्ज शामिल हैं।
तीसरा सवाल: भारत में हर व्यक्ति पर कितना कर्ज है?
सितंबर 2023 में देश पर कुल कर्ज 205 लाख करोड़ रुपए हो गया। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों के कर्ज शामिल हैं। भारत की कुल आबादी 140 करोड़ मान लें तो आज के समय में हर भारतीय पर 1.46 लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज है।
चौथा सवाल: विदेश से कर्ज लेने के मामले में केंद्र की UPA सरकार आगे है या NDA सरकार?
2005 से 2013 तक 9 साल में मनमोहन सरकार के दौरान विदेशी कर्ज 10 लाख करोड़ रुपए से 34.03 लाख करोड़ रुपए हो गया यानी 240% कर्ज बढ़ गया। वहीं, मोदी सरकार के कार्यकाल में केंद्र सरकार ने विदेश से कुल 17.31 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया यानी कर्ज में 46.78% की वृद्धि हुई।
पांचवां सवाल : देसी कर्ज के मामले में केंद्र की UPA सरकार आगे है या NDA सरकार?
2005 से 2013 तक 9 साल में मनमोहन सरकार के दौरान देसी कर्ज 13 लाख करोड़ रुपए से 42 लाख करोड़ रुपए हो गया यानी 223% की ग्रोथ हुई। वहीं, मोदी सरकार के कार्यकाल में केंद्र सरकार ने कुल 89 लाख करोड़ रुपए का देसी कर्ज लिया यानी कर्ज में 250% की वृद्धि हुई।
छठा सवाल: सरकार पर किन वजहों से कर्ज बढ़ता है?
अर्थशास्त्री अरुण कुमार के मुताबिक सरकार का कर्ज दो बातों पर निर्भर करता है... पहला सरकार की आमदमी कितनी है दूसरा सरकार का खर्च कितना है।
अगर खर्च आमदनी से ज्यादा हो तो सरकार को कर्ज लेना ही होता है। सरकार जैसे ही कर्ज लेती है, इससे राजस्व घाटा बढ़ता है। इसका मतलब ये हुआ कि सरकार का खर्च राजस्व से होने वाली कमाई से ज्यादा है। आमतौर पर राजस्व घाटा तब ज्यादा होता है जब सरकार कर्ज के पैसे को वहां खर्च करती है, जिससे रिटर्न नहीं आता है।
सातवां सवाल: सरकार पैसा कर्ज लेकर कहां खर्च करती है?
2020 में आई कोरोना महामारी के बाद से भारत सरकार कई तरह की सब्सिडी दे रही है। जैसे...
- 1. 80 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त अनाज
- 2. करीब 10 करोड़ महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत मुफ्त गैस सिलेंडर
- 3. करीब 9 करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपए
- 4. PM आवास योजना के तहत दो करोड़ लोगों को घर बनाने में आर्थिक सहायता
अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता के मुताबिक 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने कई फ्रीबीज योजनाओं की शुरुआत की है। लोगों को मुफ्त की चीजें देने के लिए सरकार पैसा कर्ज पर लेती है। सब्सिडी, डिफेंस और इसी तरह के दूसरे सरकारी खर्चों की वजह से देश का वित्तीय घाटा बढ़ता है। फ्रीबीज योजनाओं के मामले में बीजेपी की तरह ही राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने भी कई योजनाएं लागू की। जैसे- राजस्थान में इंदिरा गांधी फ्री मोबाइल योजना, फ्री स्कूटी योजना, फ्री राशन योजना आदि।
आठवां सवाल: देश पर कर्ज और महंगाई के बीच का संबंध क्या है?
इस मामले में केयर रेटिंग एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के मुताबिक, ‘देश पर कर्ज बढ़ने का महंगाई से कोई सीधा संबंध नहीं है। सरकार कर्ज के पैसे को आय बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। कर्ज का पैसा जब बाजार में आता है तो इससे सरकार का रेवेन्यू बढ़ता है।'
साथ ही उन्होंने कहा कि कर्ज के पैसे का गलत इस्तेमाल हो तो महंगाई बढ़ भी सकती है। जैसे- कर्ज लेकर पैसा आम लोगों में बांट दिया जाए तो लोग ज्यादा चीजें खरीदने लगेंगे। इससे बाजार में चीजों की मांग बढ़ेगी। मांग बढ़ने के बाद आपूर्ति सही नहीं रही तो चीजों की कीमत बढ़ेगी।
वहीं, एक अन्य अर्थशास्त्री सुव्रोकमल दत्ता का मानना है कि कर्ज लेना हमेशा किसी देश के लिए खराब ही नहीं होता है। भारत की इकोनॉमी 3 ट्रिलियन से ज्यादा की हो गई है। इस हिसाब से देखें तो 155 लाख करोड़ रुपए कर्ज ज्यादा नहीं है। ये पैसा सरकार वंदे भारत जैसी ट्रेन चलाने, रोड और एयरपोर्ट बनाने पर खर्च करती है, जो देश के विकास के लिए जरूरी है।
नौवां सवाल: दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देश कौन हैं?
दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में जापान जैसे देश शामिल हैं। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी कर्ज लेने के मामले में भारत से आगे है। अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि IMF(International Monetary Fund) अमेरिका या दूसरे विकसित देशों के बजाय भारत को ज्यादा कर्ज लेने पर तीन वजहों से चेतावनी दे रहा है...
- अमेरिका जैसे देश ये कर्ज अपने ही रिजर्व बैंक से लेते हैं। जबकि भारत वैश्विक संस्थाओं या बड़ी-बड़ी प्राइवेट कंपनियों से कर्ज लेता है। इस स्थिति में भारत के लिए कर्ज चुकाना ज्यादा मुश्किल होगा।
- अमेरिका और चीन जैसे देशों के पास खुद का कमाया हुआ पैसा है। उनके पास रिजर्व मनी भारत से कई गुना ज्यादा है। डॉलर दुनिया के कई देशों में करेंसी की तरह खरीदने-बेचने में इस्तेमाल होता है। इस स्थिति में अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए कर्ज तोड़ना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। इसकी वजह ये है कि उनका डॉलर जितना मजबूत होगा, उन्हें उतना ही कम इंट्रेस्ट देना होगा। जबकि भारत के मामले में ऐसा नहीं है।
- भारत की इकोनॉमी में ज्यादातर पैसा पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट और FDI से आता है। जबकि विकसित देशों के साथ ऐसा नहीं है। वहां की इकोनॉमी भारत से काफी ज्यादा मजबूत है। इसका उदाहरण ये है कि 2008 में फाइनेंशियल क्राइसिस जिस अमेरिका से शुरू हुआ, उससे सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका को ही हुआ था।