साल 2001, भारत के इतिहास का काला दिन शायद ही कोई भूला पाए। भारतीय संसद में रोजाना की तरह कार्यवाही चल रही थी। लेकिन किसे पता था कि चंद मिनटों में सबकुछ बिखरने वाला है। इन गलियारों का माहौल बदलने वाला है। यहां एक काला इतिहास रचने वाला है। 20 साल बाद आज भी संसद में हुए धमाके की गूंज कायम है।
हमले की पूरी कहानी
संसद के शीतकालीन सत्र की सरगर्मियां तेज़ थीं। विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित की जा चुकी थी। सदन स्थगित होते ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकल कर अपने-अपने सरकारी निवास के लिए कूच कर चके थे। बहुत से सांसद भी वहां से जा चुके थे। पर गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी अपने कई साथी मंत्रियों और सांसदों के साथ अब भी लोकसभा में ही मौजूद थे। तभी सफेद एंबेसडर कार से जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के पांच आतंकी संसद भवन परिसर में प्रवेश करते हैं। एक आतंकी संसद भवन के गेट पर ही खुद को बम से उड़ा लेता है।
उपराष्ट्रपति की कार से टकराए आतंकी और फिर...
उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत के ड्राइवर शेखर संसद में राज्यसभा के गेट नंबर 11 के बाहर उनके आने का इंतजार कर रहे थे। तभी आतंकियों की कार उपराष्ट्रपति की कार से टकरा जाती है। बस फिर क्या था, घबराकर आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। शेखर अपनी जान बचाते हुए कार के पीछे छुप जाते हैं। इसके तुरंत बाद उपराष्ट्रपति के सुरक्षा गार्ड भी मोर्चा संभाल लेते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी को फोन लगाते हैं आडवाणी
गोलीबारी से महज कुछ ही दूरी पर संसद भवन में दफ्तर में मौजूद गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भी तब तक हमले की खबर मिल चुकी थी। लिहाजा लालकृष्ण आडवाणी समेत तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को फौरन सदन के अंदर ही महफूज जगहों पर ले जाया गया। और तेजी से संसद भवन के दरवाजों को बंद कर दिया जाता है। जिसकी वजह से कोई आतंकवादी संसद भवन के अंदर नहीं घुस पाया और एक बहुत बड़ा हादसा होने से टल गया। आ़डवाणी घटना की सूचना देने के लिए फौरन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन लगाते हैं।
सभी आंतकियों का हुआ खात्मा, अफजल गुरू को हुई फांसी
हमले में सुरक्षाकर्मियों ने सभी 5 आतंकी मार गिराए गए। वहीं, 9 लोगों की जान चली गई तो कई घायल हो गए। इस आतंकी हमले के पीछे मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन समेत पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई शामिल थी। 12 साल बाद नौ फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई थी।
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