AFSPA कानून? देश में दशकों बाद अफ्सपा का क्षेत्र घटा, क्या है इसकी उपयोगिता

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 AFSPA कानून? देश में दशकों बाद अफ्सपा का क्षेत्र घटा, क्या है इसकी उपयोगिता

भोपाल. केंद्र सरकार ने आज उत्तर पूर्वी राज्यों की दृष्टि से बड़ा कदम उठाते हुए असम, नगालैंड व मणिपुर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) का क्षेत्र सीमित करने का फैसला किया है। नागालैंड में सेना की पैरा-एसएफ यूनिट के गलत ऑपरेशन और फिर उग्र भीड़ पर फायरिंग के बाद सवाल खड़े हो रहे हैं कि राज्य से अफ्सपा (AFSPA) हटा देना चाहिए या नहीं। खुद नागालैंड के मुख्यमंत्री अब राज्य से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानि (AFSPA) हटाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि सुरक्षाबलों को मिलने वाले इस विशेष-अधिकार की आखिर जरूरत क्यों पड़ती है और इससे सैनिकों को कानून से 'इम्युनिटी' कैसे मिलती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से दशकों से उपेक्षित महसूस कर रहे उत्तर पूर्वी राज्यों में शांति व समृद्धि का नया युग शुरू होगा। 





गृह मंत्री ने बधाई दी: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दशकों से उपेक्षित महसूस कर रहे उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रति पीएम नरेंद्र मोदी की वचनबद्धता के कारण वहां शांति, समृद्धि व विकास का नया युग नजर आ रहा है। इस मौके पर मैं उत्तर-पूर्व की जनता को बधाई देता हूं। 





अफ्सपा एक्ट क्या है: आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पावर एक्ट यानि (AFSPA) संसद द्वारा बनाया गया कानून है, जिसे वर्ष 1958 में लागू किया गया था। इस कानून को अशांत-क्षेत्र में लागू किया जाता है, जहां राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन कानून-व्यवस्था संभालने में नाकाम रहती है। ये ऐसी 'खतरनाक स्थिति' में लागू किया जाता है, जहां पुलिस और अर्द्धसैनिक बल आतंकवाद, उग्रवाद या फिर बाहरी ताकतों से लड़ने में नाकाम साबित होती हैं। अफस्पा कानून को केंद्र सरकार लागू करती है। अमूमन राज्य सरकार जब कानून व्यवस्था संभालने में नाकाम रहती हैं और केंद्र सरकार से मदद मांगती हैं तो केंद्र सरकार उस क्षेत्र को 'डिस्टर्ब एरिया' घोषित कर आंतरिक सुरक्षा के लिए सेना को तैनात कर देती है। 





अफ्सपा भारत में कहां लागू हुआ: केंद्र सरकार को अगर ऐसा लगता है कि ये इलाका या फिर इस राज्य में अलगाववाद चरम पर है और यहां के लोग गणराज्य से अलग एक देश की मांग कर रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में भी केंद्र सरकार अफ्सपा कानून लागू कर सेना की तैनाती कर सकती है। जैसाकि नागालैंड की हालात पिछले पचास सालों से रहे हैं। वहां नागा समुदाय के अलगाववादी और चरमपंथी संगठन अपने को स्वतंत्र घोषित करते हैं।





उनकी राज्य में पैरलल-सरकार चलती है। वे राज्य के दुकानदारों, व्यवसायियों और व्यापारियों से टैक्स के रूप में जबरन वसूली, रंगदारी, फिरौती के लिए अपहरण करते आए हैं। सीमापार से इन संगठनों को फंड से लेकर हथियारों तक की सप्लाई होती आई है। कई संगठनों ने अपनी खुद की मिलिशिया-फोर्स तक खड़ी कर रखी है और उनके रैंक ठीक वैसे ही होते हैं, जैसे कि सेना में होते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय हर छह महीने के लिए (AFSPA) कानून को लागू करता है और जरूरत पड़ने पर फिर से इसे लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर देता है। 





अफस्पा ही क्यों लगाते थे: AFSPA कानून के तहत सैनिकों को बिना किसी अरेस्ट वॉरेंट के किसी भी नागरिक को गिरफ्तार करने का अधिकार है। हालांकि, अब गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस के हवाले ही कर दिया जाता है। इसके अलावा, गोली चलाने के लिए भी किसी की इजाजत नहीं लेनी पड़ती है। अगर सेना की गोली से किसी की मौत हो जाती है तो उसपर हत्या का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। अगर राज्य सरकार या फिर पुलिस-प्रशासन सैनिक या फिर सेना की किसी यूनिट के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज कर भी लेती है तो अदालत में अभियोग के लिए केंद्र सरकार की इजाजत जरूरी होती है। 





अफस्पा पर सेना का पक्ष: अफस्पा कानून को लेकर सेना और सैनिकों को अपना तर्क है। सेना का मानना है कि आंतरिक सुरक्षा या फिर किसी राज्य में कानून-व्यवस्था सुधारने के लिए सेना के पास पुलिस जैसे आईपीसी, सीआरपीसी इत्यादि कानून नहीं हैं। ऐसे में शांति बहाली के लिए सेना को अफस्पा कानून बेहद जरूरी है। साथ ही सैनिकों की हर दो-तीन साल में पोस्टिंग बदलती रहती है यानि तबादला होता रहता है। सैनिकों की तैनाती देश के अलग-अलग हिस्सों में या फिर सीमावर्ती दूरस्थ इलाकों में रहना होता है। ऐसे में उनके लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाना बेहद मुश्किल काम है।  





सैनिकों को किसी भी ऑपरेशन में जाते वक्त अपने दिलो-दिमाग में ये नहीं सोचना चाहिए कि किसी आतंकवादी या उग्रवादी को मारने के बाद हत्या का मामला तो दर्ज नहीं हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्रीय सुरक्षा को बहुत नुकसान हो सकता है। सेना की लीगल-ब्रांच का हिस्सा बनने से पहले इंफेंट्री बटालियन का हिस्सा रह चुके कर्नल अमित कुमार ने नागालैंड की घटना पर खेद जताया लेकिन उन्होनें ये भी कहा कि किसी भी ऑपरेशन में पहली कार्रवाई बेहद महत्वपूर्ण होती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो पुलवामा जैसे बड़े हमले हो जाते हैं।





अफस्पा इन प्रदेशों में लागू है: इस वक्त AFSPA कानून जम्मू-कश्मीर के अलावा उत्तर-पूर्व के अधिकतर राज्यों में लागू है। मणिपुर की राजधानी, इम्फाल और अरूणाचल प्रदेश के कुछ जिलों को छोड़ दें तो लगभग पूरे उत्तर-पूर्व में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम कानून (अफस्पा) लागू है। लेकिन हाल के वर्षों में कश्मीर हो या उत्तर-पूर्व के राज्य, इस कानून को हटाने की मांग उठती रही है। मणिपुर एनकाउंटर मामलों में सुप्रीम कोर्ट अफस्पा कानून और सेना की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर चुकी है।





आलोचना का ये नतीजा है कि सेना-प्रमुख के दस प्रमुख चार्टर में किसी भी ऑपरेशन के दौरान स्थानीय पुलिस को सूचना देने का साफ निर्देश है। लेकिन नागालैंड का (गलत) ऑपरेशन क्योंकि स्पेशल-फोर्सेज का था इसलिए पुलिस को पहले से जानकारी नहीं दी गई थी।



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