DELHI: 'सदैव अटल' रहेंगे वाजपेयी, जिस चेहरे का आकर्षण से पूरा देश पर छाया था, भारत रत्न मिलते समय देश वही नहीं देख पाया

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Shivasheesh Tiwari
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DELHI: 'सदैव अटल' रहेंगे वाजपेयी, जिस चेहरे का आकर्षण से पूरा देश पर छाया  था, भारत रत्न मिलते समय देश वही नहीं देख पाया

DELHI. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज यानी 16 अगस्त को पुण्यतिथि है। इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर बीजेपी ने ट्वीट किया कि भारतीय जनता पार्टी के पितृ पुरुष, करोड़ों कार्यकर्ताओं के पथ प्रदर्शक और हमारे प्रेरणा स्रोत, पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि। अटल बिहारी वाजपेयी को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने घर जाकर  भारत रत्न दिया था। इसके फोटो मीडिया में जारी किए गए थे लेकिन उन फोटों में वाजपेयी का चेहरा छिपा लिया गया था। क्योंकि लंबी बीमारी के कारण वाजपेयी का चेहरा अपना मूल रूप छोड़ चुका था। 





इस अवसर पर प्रार्थना सभा का भी आयोजन किया गया। मालूम हो कि 'सदैव अटल'' वाजपेयी का स्मारक है। साल 2018 में आज ही के दिन दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। वाजपेयी को 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।







— BJP (@BJP4India) August 16, 2022





मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था जन्म





बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। बीजेपी के दिग्गज नेता और प्रधानमंत्री के अलावा अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी कवि, लेखक, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी थे। वह जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे। वाजपेयी एक ऐसे नेता थे, जिन्हें हर राजनैतिक दल स्वीकार करता था। 







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नेहरू और वाजपेयी के संबंधों का रूप





वाजपेयी अपनी जबरदस्त भाषा शैली और लेखन के लिए जाने जाते थे। जब वे पहली बार सांसद पहुंचे थे तो जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। नए सांसद होने के बाद भी अटल संसद में नेहरू की खुलकर आलोचना करते थे। देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू भी अटल को पसंद करते थे। उन्होंने एक बार कहा था कि अटल एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। 29 मई 1964 को अटल ने संसद में नेहरू को श्रद्धांजलि देते हुए कहा- 'आज एक सपना खत्म हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक ऐसा सपना था, जिसमें भूखमरी, भय डर नहीं था, यह ऐसा गीत था जिसमें गीता की गूंज थी तो गुलाब की महक थी।'



वाजपेयी ने नेहरू के लिए आगे कहा 'यह चिराग की ऐसी लौ थी जो पूरी रात जलती थी, हर अंधेरे का इसने सामना किया, इसने हमें रास्ता दिखाया और एक सुबह निर्वाण की प्राप्ति कर ली। मृत्यु निश्चित है, शरीर नश्वर है। वह सुनहरा शरीर जिसे कल हमने चिता के हवाले किया उसे तो खत्म होना ही था, लेकिन क्या मौत को भी इतने धीरे से आना था, जब दोस्त सो रहे थे, गार्ड भी झपकी ले रहे थे, हमसे हमारे जीवन के अमूल्य तोहफे को लूट लिया गया।'



'आज भारत माता दुखी हैं, उन्होंने अपने सबसे कीमती सपूत खो दिया। मानवता आज दुखी है, उसने अपना सेवक खो दिया। शांति बेचैन है, उसने अपना संरक्षक खो दिया। आम आदमी ने अपनी आंखों की रौशनी खो दी है, पर्दा नीचे गिर गया है। दुनिया जिस चलचित्र को ध्यान से देख रही थी, उसके मुख्य किरदार ने अपना अंतिम दृश्य पूरा किया और सर झुकाकर विदा हो गया।'





जब ग्वालियर से चुनाव हारे थे वाजपेयी





पूर्व पीएम वाजपेयी के जीवन से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं। ऐसा ही एक किस्सा उस वक्त का है जब वह अपनी हार पर हंसने लगे थे। ये बात 1984 की है। इस साल लोकसभा चुनाव में ग्वालियर सीट से बीजेपी के टिकट पर वाजपेयी खड़े हुए थे। कांग्रेस उम्मीदवार माधवराव सिंधिया से उनका मुकाबला था। वाजपेयी यह लड़ाई हार गए। जब उनसे हार का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा- 'मेरी हार का मुझे गम नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने मां-बेटे की बगावत को सड़क पर आने से रोक दिया। अगर मैं ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ा तो माधवराव सिंधिया के खिलाफ राजमाता चुनाव लड़तीं। मैं नहीं चाहता था कि ऐसा हो।' राजमाता विजयाराजे सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के समय से साथ रहे। विजयाराजे सिंधिया वाजपेयी को अपना पुत्र मानती थीं। 





पद यात्रा पर वाजपेयी जी ने दिया था मजेदार जवाब





जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। उस समय उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की घटना के खिलाफ अटल बिहारी वाजपेयी ने पदयात्रा की थी। तब उस समय उनके मित्र अप्पा घटाटे ने पूछा था, पदयात्रा कब तक चलेगी। तब उस सवाल के जवाब में वाजपेयी ने कहा था कि जब तक पद नहीं मिलता, तब तक यात्रा चलती रहेगी।





इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं





अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वाकपटुता के चलते कई बार गंभीर सवालों से भी बचकर निकल जाते थे। यह उनकी कला थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब कांग्रेस 401 सीटें जीतकर, प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर आयी थी, तो उस समय लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, यह लोकसभा नहीं, शोकसभा के चुनाव थे। उसी समय अटल जी ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी थी और कांग्रेस को हराने के लिए वीपी सिंह के साथ गठबंधन जरूरी था। बहुत समझाने के बाद वीपी सिंह गठबंधन के लिए राजी हुए। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब एक पत्रकार ने वाजपेयी से पूछा कि चुनाव के बाद अगर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनती है, तो आप प्रधानमंत्री पद संभालने के लिए तैयार हैं। इस पर वाजपेयी ने मुस्कुराते हुए कहा कि इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं।





बहन का हाथ पकड़ रोने लगते थे वाजपेयी





कमला दीक्षित जब तक जिंदा थीं तब तक अटल को राखी बांधने आती रहीं। 2015 में उनके निधन के बाद ही यह सिलसिला थमा। 7 भाई बहनों में सबसे छोटी थीं कमला। वह अटल से दो साल छोटी थीं। जैसे ही अटल की छोटी बहन आती थीं, अटल उनका हाथ पकड़कर उन्हें निहारते रहते थे। शब्दों की जगह आंसू से वह अपनी बात छोटी बहन को बताते थे। बड़े भाई की आंखों से टप-टप गिरते आंसू से बहन कमला भी रो पड़ती थीं। कभी अपनी आवाज से पूरे देश को मंत्रमुग्ध करने वाले अटल की आवाज बाद के दिनों में स्ट्रोक के कारण प्रभावित हुई थी। एक ऐसा शख्स जो अपने भाषण और वाक कला के लिए मशहूर था, वह घंटों बिना कुछ बोले अपनी बहन का हाथ पकड़कर उसे निहारता रहता था।







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अटल बिहारी वाजपेयी को राखी बांधती कमला दीक्षित 







किताब में रखकर भेजा था प्रेमपत्र





वाजपेयी की करीबी मित्र राजकुमारी, इंदिरा गांधी की सेकंड कजिन थीं। इंदौर में पैदा हुईं, फिर पापा की नौकरी के चलते ग्वालियर आ गईं। यहीं विक्टोरिया कॉलेज में उन्हें अटल मिले। ग्रेजुएशन के दौरान अटल ने उनके लिए किताब में प्रेमपत्र रखा, पर ये राजकुमारी को नहीं मिला। कहीं और चला गया। ऐसे ही राजकुमारी का खत अटल को नहीं मिल पाया। फिर राजकुमारी की शादी दिल्ली के प्रोफेसर कौल से हो गई। वाजपेयी इनके साथ ही रहा करते थे। जब सांसद हो गए, तो कौल परिवार उनके साथ रहने आ गया। राजकुमारी की छोटी बेटी नमिता वाजपेयी की दत्तक पुत्री हो गईं और अभी भी उनके साथ ही रहती हैं। मिसेज कौल का 2014 में देहांत हो गया।







परिवार के साथ वाजपेयी



परिवार के साथ वाजपेयी







वाजपेयी को मिले ये पुरस्कार







  • वाजपेयी को 1992 में पद्म विभूषण



  • 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय से डी लिट की उपाधि मिली थी


  • 1994 में वाजपेयी को लोकमान्य तिलक पुरस्कार


  • 1994 में श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार और भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से नवाजा गया


  • 2015 में मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय जिया लाल बैरवा (देवली) से डी लिट की उपाधि मिली


  • बांग्लादेश सरकार की तरफ से 'फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर अवॉर्ड'


  • भारत सरकार की ओर से देश के सबसे बड़े पुरस्कार भारतरत्न से सम्मानित किया गया     




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