शरत आज भी जिंदा हैं: महिलाओं को सतीत्व से फेमिनिज्म की ओर ले जाने वाले लेखक

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शरत आज भी जिंदा हैं: महिलाओं को सतीत्व से फेमिनिज्म की ओर ले जाने वाले लेखक

कोलकाता. बंगाल की धरती ने कई दिग्गज लेखकों, राजनेताओं, हस्तियों को पैदा किया है। इन्हीं में से एक थे शरत चंद्र चट्टोपाध्याय। 15 सितंबर 1876 को हुगली के देवानंदपुर में जन्मे शरत का आज ही के दिन यानी 16 जनवरी 1938 को कोलकाता में 61 साल की उम्र में निधन हो गया था। उन्होंने जो लिखा, वो आज भी पूरे देश में पढ़ा जाता है। उनके उपन्यासों पर बॉलीवुड में फिल्में भी बन चुकी हैं। विष्णु प्रभाकर ने आवारा मसीहा नाम से उनकी जीवनी लिखी है।



18 की उम्र में लिखा था पहला उपन्यास: शरत ने करीब 18 की उम्र में बासा (घर) उपन्यास लिखा, पर यह प्रकाशित नहीं हुआ। शरत के नौ भाई-बहन थे। शरत ललित कला के छात्र थे, पर आर्थिक तंगी के कारण पढ़ नहीं सके। जीवनयापन के लिए शरत बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क का काम किया, पर सरकारी नौकरी में उनका मन नहीं लगा। कुछ समय बाद वो कलकत्ता आ गए और गंभीरता से लिखना शुरू किया। 



लोगों ने कहा कि रवींद्र नाम बदलकर लिख रहे: बर्मा से कलकत्ता पहुंचे शरत ने अपनी कुछ रचनाएं कलकत्ते के एक मित्र के यहां रखी थीं। शरत को बिना बताए एक रचना पर 1907 में बड़ी दीदी धारावाहिक चलाया गया। इसके एक-दो एपिसोड ने ही धूम मचा दी थी। लोग कहने लगे कि रवींन्द्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। घटना की जानकारी शरत को 5 साल बाद मिली। चरित्रहीन को छपने में कई मुसीबतें आईं। उस समय भारतवर्ष के संपादक रहे द्विजेंद्रलाल राय ने तो इसे सदाचार के खिलाफ बताकर छापने से मना कर दिया था।



ये विचार जानिए: शरत लिखते हैं- औरतों को हमने जो केवल औरत बनाकर ही रखा है, मनुष्य नहीं बनने दिया, उसका प्रायश्चित स्वराज्य के पहले देश को करना ही चाहिए। अपने स्वार्थ की खातिर जिस देश ने जिस दिन से केवल उसके सतीत्व को ही बड़ा करके देखा है, उसके मनुष्यत्व का कोई ख्याल नहीं किया, उसे उसका कर्ज पहले चुकाना ही होगा। शरत की रचनाओं में पुरुष पात्रों से ज्यादा उनकी नायिकाएं यानी महिला किरदार ताकतवर हैं। शरत के उपन्यासों में नारी परंपरागत बंधनों से छटपटाती नजर आती हैं। पुरुष और स्त्री के संबंधों के पक्षों को नए आधार पर स्थापित करने के लिए शरत को लोकप्रियता मिली।



प्रमुख रचनाएं: पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, बाम्हन की लड़की, विप्रदास, देना पावना प्रमुख हैं। बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर पथेर दावी उपन्यास लिखा। पहले यह ‘बंग वाणी’ में धारावाहिक रूप से निकाला, फिर बुक के रूप में छपा तो 3 हजार का संस्करण 3 महीने में खत्म हो गए। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया। शरत के उपन्यासों के कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। 



इन पर फिल्में बन चुकीं: शरत के उपन्यास चरित्रहीन पर 1974 में इसी नाम से फिल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर 3 बार फिल्म बनाई गई। पहली बार देवदास में हीरो कुंदन लाल सहगल थे। दूसरी देवदास में दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला और तीसरी देवदास में शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय थे। उनकी लिखी परिणीता पर भी दो बार फिल्म बनीं।



शरत के कुछ कोट्स




  • लिखने में शीघ्रता मुंशी की योग्यता है लेखक की नहीं।


  • मनुष्य की मौत कष्टदायक है,  पर इससे भी ज्यादा कष्टदायक है मनुष्यत्व की मौत।

  • जो अचानक ही जल उठते हैं और झटपट बुझ भी जाते हैं, उनके पीछे हमेशा एक आदमी रहना चाहिए, जो जरूरत के मुताबिक उनके लिए पानी और फूस जुटा दिया।


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