रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र निर्धारित समय से 3 दिन पहले खत्म हो गया। लेकिन यह सत्र विपक्ष (बीजेपी) के बेहद तीखे तेवरों और सदन के अभिलेखों में उन तल्ख बातों के लिए जाना जाएगा, जिसे लेकर 5वीं विधानसभा के इस 13वें सत्र के पहले नहीं देखा गया। विधायक सौरभ सिंह, अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, शिवरतन शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के तेवर, शब्द, भाव-भंगिमाएं इस कदर आक्रामक थे कि सदन की अब से पहले की कार्यवाहियों को देखते आ रहे खबरनवीस भी भौंचक्के रह गए।
एक तरफ कांग्रेस का सत्तर का हिमालयी बहुमत और सामने केवल 14 पर सिमटी बीजेपी का विधायक दल, लेकिन इस बार इस नन्हीं संख्या ने सरकार के मर्म पर प्रहार किया और लगातार करते रहे। हालांकि, विपक्षी मुखरता, तेवर या उनके वो शब्द मीडिया के पर्दे या पन्ने पर वो जगह नहीं बना पाए। छत्तीसगढ़ में बीजेपी के जितने विधायक (14) हैं, वो हॉलीवुड फिल्म 300 की याद दिलाते हैं। फिल्म में एक राज्य के 300 सैनिक, पूरी विरोधी सेना पर भारी पड़ते हैं।
तेवरों ने बीजेपी की दिशा तय की: आने वाले डेढ़ साल के भीतर छत्तीसगढ़ चुनावी महासमर के बीच होगा। ऐसे में इस 13वें सत्र में विपक्ष के तेवर यह बताते हैं कि बीते दिनों बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महासचिव शिवप्रकाश और प्रदेश संगठन प्रभारी डी पुरंदेश्वरी की बौद्धिक ट्रेनिंग सार्थक रही। इसमें यह ताकीद थी कि मुद्दे ठोस हों, जनता से जुड़े हों और सदन से सड़क तक की भूमिका बननी चाहिए।
सदन में ऐसे गूंजी विपक्ष के विधायकों की आवाज
1. अजय चंद्राकर:
प्रदेश का तंत्र जो संविधान से चलायमान है, वह संविधानेतर शक्तियों से संचालित है। यहां कानून का शासन है या शासक का कानून है? प्रदेश में समानांतर सरकार चल रही है। गवर्नर के भाषण में सुराजी गांव छपता है, बजट में छपता है। कॉन्सेप्ट पेपर कहाँ है? स्कूल की बिजली, गांव की बिजली काटना, गांव के फंड को रोकना यही सुराजी गाँव है? फ्लैगशिप योजना नरुआ-गरुआ घुरवा बाड़ी कहते हैं तो उसमें चर्चा क्यों नहीं करते? बजटेड नहीं करते,अभिसरण करते हैं। किसी भी पैसे को डालते हैं। 2000 गौठान आत्मनिर्भर हो गए, उसकी परिभाषा क्या है? उसका कॉन्सेप्ट क्या है? पैसा जो मुख्यमंत्री जी बोलें, उसी में लग जाए, क्या यही कॉन्सेप्ट है। जिसका कहीं अता पता नहीं है, ना सिर है ना पूंछ है और इसके लिए हम विनियोग पारित कर दें।
2. बृजमोहन अग्रवाल: मुख्यमंत्री का मंत्रियों पर विश्वास नहीं है और मंत्रियों का अधिकारियों पर। विधायकों का मंत्री पर और अधिकारियों पर भरोसा नहीं है, ये सरकार चूं-चूं का मुरब्बा है। प्रदेश में सब कुछ तय है, का नारा चल रहा है। रेत के प्रति ट्रक तय है, शराब की प्रति बॉटल के पीछे सब तय है। सीमेंट की हर बोरी के पीछे, सरकारी भर्ती में हर पद के पीछे, अवैध प्लॉटिंग के पीछे सब कुछ तय है। सप्लाई में प्रति नग के पीछे तय है, ठेका टेंडर में कितना प्रतिशत होगा, ये भी तय है।
कांग्रेस के सबसे बड़े नेता उत्तर प्रदेश की सभा में बोलते हैं कि हर जिले में फूड पार्क की स्थापना हो गई है। किसान टमाटर फूड पार्क के अंदर जाता है,टमाटर रखता है और पैसा लेकर तुरंत बाहर आ जाता है। मैं, कार्यकर्ता, छत्तीसगढ़ की जनता टॉर्च लेकर, लालटेन लेकर, मोमबत्ती लेकर, चिमनी लेकर, दिया लेकर चाहेंगे कि माननीय मंत्री भी सब साथ चलें। तारीख भी आप लोग बता दें कि कब चलना है। छत्तीसगढ़ के कौन से जिले में फूडपार्क लगा है। यह सरकार उधार के बोझ से दबी हुई, झूठ के संस्कार से पली हुई, जिम्मेदारियों से भगोड़ी सरकार है। सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें, झूठे बयान सिर्फ अखबारों में छपवाने के लिए होते हैं। इससे काम नहीं चलने वाला। आप चाहे जितना छपवा लो, विरोधी दल की खबरें रुकवा लो। आत्मानंद स्कूल पर ध्यानाकर्षण उठाया था, अखबारों को फोन गए कि न्यूज नहीं छपना चाहिए।
3. सौरभ सिंह: छत्तीसगढ़ मॉडल की बात करते हैं, यह चार चीजों पर निर्भर है। मनरेगा, डीएमएफ कैंपा और 15वां वित्त आयोग। ये चारों केंद्र सरकार की योजनाएं हैं। छत्तीसगढ़ मॉडल उसी के बदौलत चल रहा है। लेकिन जो मॉडल दिखाया जाता है और जो है वो बहुत अलग है। मनरेगा में 9% कमीशन मांगा जाता है। कलेक्टर डीएमएफ की व्यवस्था को 25% में बेच रहे हैं। कहा यह जाता है कि ऊपर से फोन आ रहा है।
कौन सा हाउस, कैसा हाउस (सदन)? जमीन का गाइडलाइन रेट 40% गिरा दिया गया। कौन सा राज्य है, जो गाइडलाइन रेट को नीचे गिराकर अपनी जमीन, अपनी संपत्ति का मूल्य कम करेगा। अगर आपने 40% रेट गिराया है तो जिनका लैंड एक्वीजिशन होता है उन किसानों का दर्द पूछिए, जिनकी जमीन नेशनल हाईवे में जा रही है। रेट 25% बढ़ना था, वह 40% नीचे हो गया। रेट कम है तो बैंक में लोन कम मिलेगा। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि ब्लैकमनी की पार्किंग हो। ब्लैक मनी का पैसा यहां पर आए।
4. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह: प्रदेश की आर्थिक स्थिति अर्थी पर आ गई है। कर्ज लिए जाने का कोई विरोध नहीं होता, लेकिन उसके साथ-साथ राज्य के आर्थिक संसाधन भी बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए। घाटा बढ़ता जा रहा है, ब्याज का भुगतान बढ़ रहा है। कलेक्टर और एसपी ताश की गड्डी की तरह फेंटे जा रहे हैं। तीन साल हुआ नहीं, चार बार ट्रांसफर।
छत्तीसगढ़ में एक प्रकार से घोषित-अघोषित आपातकाल और प्रशासनिक आतंकवाद है। संविधान की धज्जियां उड़ रही हैं, सरकार के खिलाफ कलम उठाने वालों के ऊपर जिस प्रकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को साजिश में फंसाया जा रहा है, पत्रकारों के खिलाफ दमन चक्र चल रहा है। इस सरकार को निर्णय लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम लगता है, समिति का गठन कर दो। कोरबा से प्रति टन 25 रुपए दिए बिना कोई ट्रक पास नहीं हो सकता, जब तक 25 रुपए टन नहीं देगा, तब तक वहां से निकल नहीं सकता। महीने का हिसाब 120 करोड़ और सालभर का हिसाब 1400 करोड़ होता है, आखिर यह जाता कहां है?
मुख्यमंत्री बघेल का जवाब: ‘आप लोग (विपक्षी विधायक) जब भी कुछ बोलते हैं तो गंभीरता रखिए, आपकी बातें सुर्खियां बनती हैं। खनन को लेकर या दूसरी बातें कही गई हैं, उसका प्रमाण ला दीजिए। यह सरकार भ्रष्टाचार को स्वीकार नहीं करती। हम प्रमाण सही पाएंगे तो कड़ी कार्रवाई भी करेंगे।’
हालांकि, सदन के भीतर विपक्ष के तेवर चाहे जितने आक्रामक हों, उसे लेकर सरकार को दिक्कत इसलिए भी नहीं होती, क्योंकि विपक्षी तेवरों को मीडिया में वो जगह नहीं मिलती, सुर्खियां तो खैर दूर की कौड़ी है। छत्तीसगढ़ में तो फिलहाल यही चलन में है।