BHOPAL. मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों और उसके बाद लोकसभा चुनावों के लिए मिशन-2023-24 की तैयारी में जुटी बीजेपी ने लंबे समय बाद अपने संसदीय बोर्ड में बदलाव कर दिया है। इस पूरी उठापटक में चुनावी जमावट साफ नजर आ रही है तो जातीय समीकरण को इस बदलाव में मुख्य आधार बनाया गया है।
MP में दलित कार्ड खेलने की तैयारी
मध्यप्रदेश में दलित कार्ड खेलने की तैयारी में सात बार सांसद रहे सत्यनारायण जटिया को महत्व दिया गया है तो आदिवासी वर्ग को साधने के लिए पहली बार पूर्वोतर के सर्बानंद सोनोवाल को संसदीय बोर्ड के साथ ही चुनाव समिति में भी जगह दी गई है। इसके ओबीसी से आने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटाया गया है तो उनके बदले ओबीसी वर्ग के दो नए चेहरों को चुना गया है। सिख नेता को पहली बार बोर्ड में रखा गया है तो पंजाब की हार का असर भी इस बदलाव में नजर आ रहा है।
बीजेपी ने यूपी चुनाव में खेला था ओबीसी कार्ड
बीजेपी ने यूपी चुनाव में ओबीसी कार्ड खेला था, इसका असर भी वहां देखा गया। अब बीजेपी का जोर ओबीसी के साथ एससी-एसटी वोटर्स को अपने साथ जोड़ने पर है। आदिवासी कार्ड खेलते हुए बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू का नाम देश के सर्वोच्च पद के लिए आगे किया और वे राष्ट्रपति चुनी गईं। अब पार्टी की सबसे पॉवरफुल मानी जाने वाली समिति संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति के गठन में भी जातीय समीकरण नजर आ रहे हैं। जातियों के अलावा सभी क्षेत्रों को साधने की कोशिश इस जमावट में की गई है, खासकर पिछले दिनों जिन राज्यों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है, वहां अपनी समितियों के द्वारा लोकसभा चुनावों के लिए जमावट बीजेपी ने की है।
संसदीय बोर्ड में एक साल से खाली पड़े थे 5 पद
करीब एक साल से संसदीय बोर्ड के 11 में से पांच पद खाली पड़े हुए थे। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार के निधन के बाद तीन पद खाली थे तो थावरचंद गहलोत के राज्यपाल बनने से एक पद खाली था तो एम वैंकेया नायडू के उपराष्ट्रपति बनने से भी एक पद खाली था।
हर चेहरे को मिशन 2023-24 के हिसाब से जातीय आधार पर कसा गया
खाली पदों को भरने के साथ ही बीजेपी ने सीएम शिवराज और केंद्रीय मंत्री गडकरी के रिप्लेसमेंट से भी दो नए चेहरों को बोर्ड में शामिल किया है। मगर हर पद पर जातीय समीकरण को खास तवज्जो दी है। बोर्ड में शामिल किए गए हर चेहरे को मिशन 2023-24 के हिसाब से जातीय आधार पर कसा गया है। मध्यप्रदेश से दलित वर्ग के थावरचंद गहलोत से खाली हुई सीट पर उसी वर्ग के एक बड़ा चेहरा माने जाने वाले सत्यनारायण जटिया को दोनों समितियों में रखा गया है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ओबीसी से आते हैं, उन्हें हटाया तो हरियाणा की पूर्व सांसद सुधा यादव और तेलंगाना के के लक्ष्मण और महाराष्ट्र के भूपेंद्र यादव जैसे बड़े चेहरे को बोर्ड में शामिल कर ओबीसी वर्ग के प्रति अपनी प्राथमिकता दिखाई है। लक्ष्मण तो बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।
चुनाव समिति में गडकरी की जगह देवेंद्र फडणवीस को मिली जगह
मराठा नेता गडकरी की जगह चुनाव समिति में देवेंद्र फडणवीस को जगह दी गई है। वहीं केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के जरिए महाराष्ट्र के ओबीसी वोटर्स पर बीजेपी ने नजर रखी है। पहली बार पूर्वोत्तर से किसी नेता को बोर्ड में शामिल किया गया है यहां से असर के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल को बोर्ड में सदस्य बनाया गया है। किसी सिख नेता को भी पहली बार बीजेपी की सबसे प्रमुख समिति में शामिल किया गया है। पंजाब के इकबाल सिंह लालपुरा को बोर्ड में लिया गया है, वे बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख हैं। लालपुरा की नियुक्ति पंजाब में हाल ही में मिली हार का नतीजा भी बताया जा रहा है तो अल्पसंख्यक वर्ग को साधने की कवायद भी है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय में पैठ जमाने के उद्देश्य से बीएस येदियुरप्पा को भी एक बार फिर महत्व दिया है। उन्हें बीजेपी ने पूर्व में सीएम के पद से हटा दिया था, जिससे वे नाराज चल रहे थे। अब चुनावी जमावट में फिर से उनका कद बढ़ गया है।
फिर पीढ़ी परिवर्तन की झलक
बीजेपी द्वारा संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में किया गया बदलाव पीढ़ी परिवर्तन का संकेत भी माना जा रहा है। आठ साल पहले 2014 में पूर्व पीएम स्व. वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी जैसे दिग्गज चेहरों को संसदीय बोर्ड से अलग रखने जैसा कदम उठाने का साहस अमित शाह ने दिखाया था। तब छह साल बाद नरेंद्र मोदी को संसदीय समिति में शामिल किया गया था तो एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान, थावरचंद गहलोत, अनंत कुमार, नड्डा को पीढ़ी परिवर्तन का दौर बताते हुए जगह दी गई थी। इस संसदीय बोर्ड में राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, नितिन गडकरी, थावरचंद गहलोत, रामलाल भी शामिल थे। चुनाव समिति में भी लगभग यही सब शामिल थे। इसके बाद 2019 में भी शिवराज सिंह चौहान, थावरचंद, बीएल संतोष, गडकरी, राजनाथ आदि को शामिल रखा था। बाद में तीन सदस्य सुषमा स्वराज, जेटली के निधन के बाद भूपेंद्र यादव, धर्मेंद्र प्रधान आदि को सदस्य बनाया गया। जो अब नई टीम में शामिल नहीं हैं। सीएम शिवराज और केंद्रीय मंत्री गडकरी को संसदीय बोर्ड व चुनाव समिति से अलग रखने का खास कारण अब फिर पीढ़ी परिवर्तन बताया जा रहा है। उनकी जगह महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने ली है।
कोई सीएम शामिल नहीं
नए संसदीय बोर्ड में मुख्यमंत्री शिवराज ही एक मात्र ऐसे सदस्य थे जो लंबे समय से शामिल थे। उनके अलावा कोई भी सीएम संसदीय बोर्ड में शामिल नहीं है। अब शिवराज का नाम कटने के बाद संसदीय बोर्ड में कोई भी सीएम नहीं बचा है। बताया जाता है कि इसका फैसला पहले ही कर लिया गया था कि बीजेपी शासित किसी भी राज्य को संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में नहीं रखा जाएगा। फिर जातीय समीकरण में भी उनका नाम कटना तय माना जा रहा था। अब पूरा जोर आदिवासी और दलित वोर्ट बैंक पर बीजेपी का रहेगा। मगर बीते दो सालों में सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए यह दूसरा झटका है। पहले तो उन्हें नड्डा की टीम में जगह नहीं मिल सकी थी। कार्यकारिणी सदस्य भी नहीं बनाया था। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मध्यप्रदेश से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र कुमार खटीक के अलावा प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा सदस्य हैं। अब सीएम शिवराज महज कार्यकारिणी सदस्य के तौर पर राष्ट्रीय संगठन में शुमार रह गए हैं।