NEW DELHI. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में नया ट्विस्ट आ गया है। पार्टी के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 30 सितंबर को नामांकन दाखिल करेंगे। दिल्ली पहुंचे दिग्विजय ने कहा कि आज यानी 29 सितंबर को वे नामांकन पत्र लेंगे और कल (30 सितंबर को) फाइल करेंगे। दिग्विजय 28 सितंबर (बुधवार) की रात अचानक केरल से भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर दिल्ली रवाना हुए। दिग्विजय के साथ पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल भी दिल्ली निकले थे। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 30 सितंबर तक नामांकन दाखिल किया जा सकता है। दिग्विजय सिंह 10 साल (1993-2003) तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फिलहाल वे राज्यसभा सांसद हैं। वहीं, राजस्थान में सीएम की कुर्सी विवाद में उलझे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अभी तक पर्चा दाखिल नहीं किया है।
दिग्विजय का पलड़ा भारी
1. गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं
दिग्विजय सिंह 1987 से ही गांधी परिवार के करीबी हैं, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष राजीव गांधी ने उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। राजीव ने निधन के बाद दिग्विजय, सोनिया गांधी के भरोसेमंद बने और उन्हें राजनीति की बारीकियां समझने में मदद की। राजनीति में सोनिया की एंट्री का औपचारिक ऐलान दिग्विजय ने ही किया था। इसके बाद जब राहुल गांधी राजनीति में आए तो दिग्विजय उनके मार्गदर्शक की भूमिका में आए। बीच-बीच में कई नेताओं ने पार्टी में गांधी परिवार के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन दिग्विजय ना केवल साथ खड़े रहे, बल्कि विरोधियों के खिलाफ अपनी आवाज भी बुलंद करते रहे। अगर वे अध्यक्ष बनते हैं तो इसकी संभावना बेहद कम है कि आगे चलकर गांधी परिवार के लिए चुनौती बनें या पार्टी में अलग पॉवर सेंटर बनने की कोशिश करें।
2. बीजेपी-संघ के कट्टर आलोचक
दिग्विजय अपने बयानों के चलते विवादों में रहते हैं, क्योंकि वे बीजेपी और उसके हिंदुत्व के खिलाफ मुखर होकर बोलते हैं। यही नहीं दिग्विजय संघ प्रमुख मोहन भागवत पर सीधा निशाना साधने से भी नहीं चूकते। बीजेपी नेता अक्सर उन्हें अल्पसंख्यक-समर्थक बताते हैं, लेकिन दिग्विजय ने कभी अपना आपा नहीं खोया। वे हर आरोप का मजबूती से जवाब देते हैं। दिग्विजय की छवि भी साफ है।
3. लंबा राजनीतिक अनुभव
दिग्विजय 10 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं। वे कई साल से लोकसभा और राज्यसभा का सदस्य रहने के अलावा पार्टी की केंद्रीय कार्यसमिति के भी सदस्य हैं। वे कई राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं। पार्टी के कई अभियानों-कार्यक्रमों में उनकी अहम भूमिका रही है। फिलहाल वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के प्रभारी हैं।
4. पॉलिटिकल मैनेजमेंट के महारथी
मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह ने एक बार कहा था कि चुनाव वोट से नहीं, पॉलिटिकल मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। इसके कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाई थी और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से विदाई का भले उन्हें बड़ा कारण माना जाता हो, लेकिन कहीं ना कहीं दिग्विजय के समर्थन के बूते ही कमलनाथ भी मुख्यमंत्री बन सके। वे हर राजनीतिक चुनौती को मैनेज करने में कैपेबल हैं, इसे कई बार साबित कर चुके हैं।
5. विरोधियों को साधने का हुनर
दिग्विजय के हर राजनीतिक दल के नेताओं से अच्छे संबंध हैं। वे बीजेपी के धुर विरोधी हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को अक्सर गुरुदेव कहकर संबोधित करते थे। शरद पवार, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव जैसे विरोधी धड़े के नेताओं के अलावा एनडीए में शामिल कई दलों के नेताओं से भी उनके करीबी रिश्ते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष चाहे कोई भी बने, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से उसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ लामबंद करना है। दिग्विजय के राजनीतिक संपर्क इस काम में उनके लिए मददगार हो सकते हैं।
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