JAMMU. साल 2019 में जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 (अनुच्छेद 370) के निरस्त होने के बाद पहली बार लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद की करगिल विंग में 4 अक्टूबर (बुधवार) को चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले क्षेत्र की चुनावी मूड का अंदाजा दे सकता है। कारगिल चुनाव को मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन के बीच लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में भारत के साथ पाकिस्तान की भी इस चुनाव पर निगाहें टिकी हुई हैं।
दूसरा सबसे ठंडा स्थान है द्रास
दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा स्थान द्रास में इस समय चुनावी गर्मी छाई हुई है। यहां मतदान की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद कारगिल में यह पहला लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद चुनाव है।
पिछली बार बीजेपी को मिली थी सिर्फ एक सीट
30 सदस्यीय कारगिल परिषद की 26 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, जबकि स्थानीय निकाय के 4 अन्य सदस्यों को नामांकित किया जाता है। अगस्त 2018 में हुए पिछले चुनाव में बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीतने में सफल रही थी. हालांकि, आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के दो पार्षदों के भगवा खेमे में चले जाने के बाद इसकी संख्या बढ़कर 3 हो गई। इसके अलावा 4 नामांकित सदस्यों को बीजेपी समर्थक माना जाता है।
वर्तमान में मुफ्ती की पार्टी लद्दाख में मौजूदगी नहीं
महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी की वर्तमान में लद्दाख क्षेत्र में कोई मौजूदगी नहीं है। पीडीपी ने चुनावी दौड़ से बाहर होने का विकल्प चुना है, वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस 10 सदस्यों के साथ कारगिल परिषद में सबसे बड़ी पार्टी है। 8 पार्षदों के साथ कांग्रेस ने महीनों पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन बना लिया था, लेकिन दोनों ने उन सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला किया, जहां बीजेपी प्रमुख दावेदार नहीं है।
26 सीटें, 85 उम्मीदवार मैदान में
लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद की 26 सीटों के लिए 85 उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजेपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है। कारगिल नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) का पारंपरिक गढ़ रहा है और कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंद्वी रही है। अब बीजेपी से लड़ने के लिए विरोधियों ने गठबंधन कर लिया है।
मौलवियों ने भी बीजेपी के खिलाफ वोट करने की अपील की
दो शक्तिशाली धार्मिक संस्थान- जमीयत उलेमा कारगिल (जिसे इस्लामिया स्कूल के नाम से जाना जाता है) ने पारंपरिक रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन किया है। इमाम खुमैनी मेमोरियल ट्रस्ट कांग्रेस का समर्थन करते हैं, वहीं धार्मिक मौलवियों ने भी लोगों से बीजेपी के खिलाफ वोट करने की अपील की है।