नई दिल्ली. 2004 से 2014 तक 10 साल प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह 1991 में देश के वित्त मंत्री थे। 24 जुलाई 1991 को उन्होंने अपना पहला बजट पेश किया था और देश में उदारीकरण की नींव रखी थी। इस बात को 30 साल हो गए हैं। अब मनमोहन ने सरकार को चेतावनी देते हुए आगाह किया है। 23 जुलाई को उन्होंने कहा कि देश की इकोनॉमी का जैसा बुरा हाल 1991 में था, कुछ वैसी ही स्थिति आने वाले वक्त में होने वाली है। इसके लिए सरकार को तैयार रहने की जरूरत है। यह खुश होने का नहीं, बल्कि आत्ममंथन करने का वक्त है। आगे का रास्ता 30 साल पहले के संकट की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्राथमिकताओं को फिर से तय करने की जरूरत है।
कांग्रेस ने नया रास्ता बनाया
मनमोहन ने कहा कि 30 साल पहले कांग्रेस ने भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सुधारों की शुरुआत की थी। पार्टी ने देश की आर्थिक नीति के लिए एक नया रास्ता तैयार किया था। बीते तीन दशकों में सरकारों ने इसे फॉलो किया। आज हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होते हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैंने कांग्रेस में कई साथियों के साथ मिलकर सुधारों की इस प्रक्रिया में भूमिका निभाई। इससे मुझे बहुत खुशी और गर्व होता है कि पिछले तीन दशकों में हमारे देश ने शानदार आर्थिक प्रगति की। इस अवधि में करीब 30 करोड़ भारतीय नागरिक गरीबी से बाहर निकले और करोड़ों नई नौकरियां आईं।
कोरोना ने जिंदगियां और रोजगार छीना
पूर्व प्रधानमंत्री के मुताबिक, कोरोना के कारण हुई तबाही और करोड़ों नौकरियां जाने से बहुत दुखी हूं। स्वास्थ्य और शिक्षा के सामाजिक क्षेत्र पीछे छूट गए और यह हमारी आर्थिक प्रगति की गति के साथ नहीं चल पाया। कई जिंदगियां और नौकरियां गई हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए था।
इशारों में सरकार को जिम्मेदारी बताई
मनमोहन ने कहा कि 1991 में मैंने एक वित्त मंत्री के तौर पर विक्टर ह्यूगो (फ्रांसीसी कवि) की बात का उल्लेख किया था कि पृथ्वी पर कोई शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती है, जिसका समय आ चुका है। 30 साल बाद एक राष्ट्र के तौर पर हमें रॉबर्ट फ्रॉस्ट (अमेरिकी कवि) की उस कविता को याद रखना है कि हमें अपने वादों को पूरा करने और मीलों का सफर तय करने के बाद ही आराम करना है।