BHOPAL: अब टायर ही बचा लेगा हादसा, 1 अक्टूबर से आएंगे फ्यूल फ्रेंडली और दुर्घटना रोधी टायर

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Vivek Sharma
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BHOPAL: अब टायर ही बचा लेगा हादसा, 1 अक्टूबर से आएंगे फ्यूल फ्रेंडली और दुर्घटना रोधी टायर

Bhopal. सड़क हादसों(road accident) की कई वजहें होती हैं। इनमें टायर का खराब होना भी एक बड़ी वजह है। अगर गाड़ियों के टायर अच्छी क्वालिटी(good quality tires) के होंगे तो हादसे की संभावना कम रहती है इसलिए टायरों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। टायर कंपनी(tire company) भी ग्राहकों से टायरों के रखरखाव पर जोर देती रहती हैं। टायर यदि खराब क्वालिटी के रहेंगे तो हादसे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। अब इस दिशा में सरकार अहम कदम उठाने जा रही है। हादसों को रोकने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। इससे पहले सरकार ने रोड सेफ्टी के लिए कार में एयरबैग मैंडेटरी किए थे। एयरबैग की संख्या बढ़ाकर 6 करने का सुझाव भी दिया था। हाल में सरकार ने MV एक्ट, यानी मोटर व्हीकल एक्ट में बदलाव किए हैं। इनमें सबसे बड़े बदलाव टायर और उनकी डिजाइन को लेकर किए गए हैं।



नया नियम क्या है?



देशभर में 1 अक्टूबर 2022 से नए डिजाइन के टायर मिलेंगे। वहीं 1 अप्रैल 2023 से सभी गाड़ियों में नए डिजाइन के टायर लगाना जरूरी होगा।



 टायर की रेटिंग की जाएगी



पेट्रोल-डीजल की बचत के हिसाब से सरकार टायरों की स्टार रेटिंग(Tire Star Rating) का भी एक सिस्टम ला रही है। अभी भारत में बिकने वाले टायर की क्वालिटी के लिए BIS, यानी ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड नियम हैं, लेकिन इस नियम से ग्राहकों को टायर खरीदने के दौरान ऐसी जानकारी नहीं मिल पाती है, जिससे उनका फायदा हो।



क्या है रेटिंग सिस्टम 



जब आप फ्रिज या AC खरीदने जाते हैं तो सबसे पहले रेटिंग देखते हैं। इससे बहुत हद तक उस प्रोडक्ट की क्वालिटी के बारे में पता चलता है। ये रेटिंग को ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी की ओर से दी जाती है। इसके साथ जिस साल रेटिंग दी गई उसका साल भी लिखा रहता है। ऐसा ही रेटिंग सिस्टम नए डिजाइन के टायरों के लिए लाया जाएगा, जिसे कस्टमर खरीदने से पहले देख पाएंगे। हालांकि ये सिस्टम कैसे बनेगा और कस्टमर की मदद कैसे करेगा, इसकी जानकारी अभी नहीं दी गई है।



 3 कैटेगरी के टायर C1, C2 और C3 होते हैं




  • C1 कैटेगरी टायर पैसेंजर कार में होते हैं।


  • C2 कैटेगरी छोटी कॉमर्शियल गाड़ी में होते हैं।

  • C3 कैटेगरी टायर हैवी कॉमर्शियल गाड़ी में होते हैं।



  • अब इन तीनों कैटेगरी के टायरों के लिए ऑटोमोटिव इंडियन स्टैंडर्ड यानी AIS के नए नियम और पैरामीटर्स लागू होंगे। कार के केस में जो एनर्जी गाड़ी को पुल करने के लिए लगती है, उसे रोलिंग रेजिस्टेंस कहा जाता है। अगर रोलिंग रेजिस्टेंस कम है तो टायर को ज्यादा ताकत नहीं लगानी पड़ती है, जिसकी वजह से पेट्रोल-डीजल की खपत कम होगी और माइलेज, यानी एवरेज बढ़ेगा। नए डिजाइन के टायर बनाने के लिए कंपनियां रोलिंग रेजिस्टेंस, यानी टायर के शेप, साइज और उसके मटेरियल पर काम करेंगी, ताकि गाड़ी का रोलिंग रेजिस्टेंस कम हो सके।



    वेट ग्रिप- बारिश के दौरान या कभी भी अगर सड़क गीली रहती है तो गाड़ियों के टायर फिसलने लगते हैं और रोड एक्सीडेंट बढ़ जाते हैं। नए डिजाइन के टायर बनाने वाली कंपनियों को ध्यान रखना होगा कि गीली सड़क पर टायर की फिसलन का खतरा न हो।

    रोलिंग साउंड एमिशन्स- गाड़ी चलाते वक्त कई बार टायर से कुछ आवाज आती है। इससे लोग कन्फ्यूज हो जाते हैं कि कहीं गाड़ी खराब तो नहीं हो रही है। इस तरीके की आवाज से रोड में शोर भी बढ़ता है। इस शोर को कम करने पर भी ध्यान देना होगा।



     इन बातों का ध्यान रखें



    टायर खरीदते वक्त सबसे पहले साइज का ध्यान रखना चाहिए। सही साइज जानने के लिए आप अपनी कार में लगे टायर के साइड में उसका साइज देख सकते हैं। इसका मतलब यह है कि अगर साइड में (195/55 R 16 87 V) लिखा है तो इसमें 195 mm टायर की चौड़ाई है। 55% ट्रेड इसका एक्सपेक्ट रेशियो यानी हाइट है। 'R' मतलब टायर रेडियल है और 16 टायर की साइज इंच में लिखी गई है। 87 का मतलब हुआ लोड इंडेक्सिंग और 'V' टायर के स्पीड की रेटिंग। दो तरह के टायर मार्केट में बिकते हैं ट्यूब और ट्यूबलेस। आपको कंफ्यूज नहीं होना है और सीधे ट्यूबलेस टायर ही खरीदना है, क्योंकि ये ट्यूब वाले की तुलना में ज्यादा सुरक्षित होते हैं। ट्यूबलेस टायर पंक्चर हो जाए तो इन्हें ठीक करवाना भी आसान होता है और ये बार-बार खराब नहीं होते हैं।

     


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