भोपाल। 'किसान भाइयों आपको बिल्कुल भी चिंता करने की जरूरत नहीं, सरकार आपकी उपज का एक-एक दाना खरीदेगी।' प्रदेश के किसानों को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (CM Shivraj) और कृषि मंत्री कमल पटेल (Kamal patel) का भरोसा दिलाने वाला यह नारा जल्द ही इतिहास की बात बनने जा रहा है। वजह है केंद्र सरकार का भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) गेहूं और धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद के नियमों में बदलाव कर उन्हें और कड़ा करने जा रहा है। इसके चलते राज्य सरकार अब किसानों का एक-एक दाना नहीं खरीद पाएगी, क्योंकि वो अनाज की खरीद के लिए FCI के दिशा-निर्देशों का ही पालन करती है। खरीद के नियम कड़े किए जाने के पीछे कृषि मंत्री गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत मुफ्त और सस्ती दरों पर बांटे जाने वाले अनाज की क्वालिटी (farmers crop purchase rules) सुधारने का तर्क दे रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक FCI और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने नए नियमों (Food and Public Distribution Department New rules) के अनुसार किसानों से MSP पर अनाज की खरीद का रोडमेप भी तैयार कर लिया है। सरकार से इसकी सहमति मिलते ही प्रदेश में गेहूं और धान की सरकारी खरीदी के लिए नए मापदंड लागू कर दिए जाएंगे। आइए समझते हैं ये नए मापदंड क्या हैं, और इससे किसानों की क्या मुसीबत बढ़ने वाली है।
जानिए, गेहूं की क्वालिटी के पैरामीटर में होने वाले हैं यह बदलाव
1. गेहूं में मिट्टी-कंकड़ की मात्रा: अभी 0.75 प्रतिशत, प्रस्तावित 0.50 प्रतिशत
गेहूं की सरकारी खरीद में अभी 0.75 प्रतिशत तक फॉरेन मैटर यानी ऑर्गेनिक मैटर के रूप में मिट्टी और इनऑर्गेनिक मैटर के रूप में कंकड़-पत्थर की मात्रा को स्वीकार किया जाता है। नए नियमों (Wheat quality parameters) में इसे घटाकर 0.50 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव है। इस बारे में किसानों का कहना है कि फसल की कटाई हाथों से की जाए या फिर हार्वेस्टर से, उसमें मिट्टी और कंकड़ आना स्वाभाविक है। छन्ना लगाने के बाद भी फसल को इतना साफ करना संभव नहीं है।
2. गेहूं में दूसरे अनाज की मात्रा: अभी 2 प्रतिशत, प्रस्तावित में 0.50 प्रतिशत
किसानों का कहना है कि गेहूं की फसल के बीच में कोई भी जानबूझकर अपने खेत में अन्य अनाज के बीज नहीं डालता। सामान्यतः बोवनी-बखरनी या पानी में बहकर सोयाबीन, धान, मूंग के बीज आ जाते हैं। कटाई के समय यह गेहूं में मिक्स हो जाते हैं, इसमें किसान कुछ नहीं कर सकता। इसके बावजूद इसका प्रतिशत कम करना समझ से परे हैं।
धान की क्वालिटी के पैरामीटर में होंगे ये बदलाव...
1. धान में मिट्टी-कंकड़: अभी 2 प्रतिशत, प्रस्ताव में 1 प्रतिशत: धान में अभी 2 प्रतिशत तक फॉरेन मैटर यानि मिट्टी और कंकड़-पत्थर की मात्रा को स्वीकार (Paddy Quality Parameters) किया जाता है। इसे घटाकर अब 1 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव है। किसानों का कहना है कि गेहूं की तरह धान फसल की कटाई में भी मिट्टी-कंकड़ आना स्वाभाविक है। यदि छन्ना लगाएंगे तब भी इतनी साफ-सफाई होना संभव नहीं है।
2. सूखी और अधपके का मापदंड: अभी 3 प्रतिशत, प्रस्ताव में 2 प्रतिशत: अभी धान की खरीद में अपरिपक्व (अधपके), सूखे और सिकुड़े दाने को 3 प्रतिशत तक मंजूर कर दिया जाता है। लेकिन प्रस्तावित पैरामीटर में इसे कम करके 2 प्रतिशत किया गया है। इसे लेकर किसानों का कहना है कि धान के दाने का स्वरूप प्रकृति पर निर्भर करता है। मौसम की मार के कारण यह स्थिति बनती है। इसमें किसान के हाथ में कुछ नहीं रहता।
नए नियम से किसानों का संकट नमी को कम करें या दाना बचाए: खेती के जानकार सवाल उठा रहे हैं कि खरीद के नए नियम (new rules for government procurement) लागू होने से किसानों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि वह अपनी उपज में नमी को कम करे या उसके दाने को बचाएं। दरअसल प्रस्तावित बदलाव गेहूं में नमी को 14 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत किया गया है। वहीं अब तक टूटा हुआ दाना जो 4 प्रतिशत तक स्वीकार कर लिया जाता है, उसे घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया है। इसी तरह धान में नमी 17 प्रतिशत से घटाकर 16 प्रतिशत कर दी गई है। क्षतिग्रस्त, फीका दाना पहले 5 प्रतिशत स्वीकार कर लिया जाता था, जिसे कम करके 3 प्रतिशत कर दिया है। किसान नेता समीर शर्मा बताते हैं कि यदि किसान खेतों में ज्यादा समय तक फसल को पकने देगा तो कटाई के समय दाना टूटेगा ही। यदि दाने को बचाता है तो उसमें नमी तो रहेगी ही। कटाई के बाद यदि वह खलिहान में फसल सुखाता है तो दाने की चमक जा सकती है। वो सिकुड़ भी सकता है। ऐसे में किसान के सामने यह संकट खड़ा होगा कि आखिर वो करे तो क्या करे।
उपज में कीड़ा या घुन मिला तो सैंपल होगा रिजेक्ट: गेहूं में अभी कोई कीड़ा या घुन लगने यानि खोखला दाना मिलने पर 2 रूपए प्रति क्विंटल तक कटौती होती है। लेकिन प्रस्तावित पैरामीटर में अब गेहूं में कीड़ा और घुन मिलने पर सैंपल (Wheat sample rules) ही रिजेक्ट हो जाएगा। इसी तरह धान में कुछ प्रतिशत घुन होने पर अभी उसे स्वीकार कर लिया जाता है, जिसे प्रस्तावित पैरामीटर में खत्म कर दिया है। मतलब धान में घुन मिला तो भी सैंपल रिजेक्ट हो जाएगा।
किसान बोले- मनमाने नियम लागू कर अनाज की खरीद से बचना चाहती है सरकार: अनाज की सरकारी खरीद के प्रस्तावित नए नियमों पर किसानों की राय जानने द सूत्र की टीम खेतों तक पहुंची। भोपाल के पास ग्राम शेखपुरा में गेहूं की खेती करने वाले किसान दलीप सिंह ने बताया कि हार्वेस्टर से कटाई में तो दाना टूटता ही है। अब हम इसमें क्या कर सकते हैं। सरकार किसानों पर गलत नियम थोपने जा रही है। वहीं एक अन्य किसान राजमल लवाना ने कहा कि तुषार-पाला पड़ने की वजह से दाना पतला हो ही जाता है। ये तो कुदरत की मार होती है। दाने का आकार-प्रकार तय करना किसी भी किसान के हाथ में नहीं होता। यदि मनमाने नियम तय किए जा रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि सरकार किसानों से अनाज नहीं खरीदना चाहती।
नियमों में बदलाव विवादित कृषि कानून वापस लेने से ज्यादा घातक: MSP पर अनाज की सरकारी खरीद के नियमों में फेरबदल की कवायद पर किसानों के मुद्दे उठाने वाले एक्टिविस्ट गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। वे सरकार की इस कोशिश को वापस लिए गए विवादित कृषि कानूनों से जोड़कर देख रहे हैं। किसान नेता केदार सिरोही (Kedar sirohi) का सीधा आरोप है कि पिछले दिनों किसान आंदोलन के दबाव में केंद्र सरकार ने प्रस्तावित कृषि कानून को वापस लेकर गलती सुधारने की जो कोशिश की थी उसे फिर दोहराने जा रही है। गेहूं-धान की फसल की क्वालिटी के मापदंडों में जिस तरह के बदलाव करने की तैयारी की जा रही है, वो किसानों के लिए घातक साबित होगी। सरकार पहले भी कृषि कानून के जरिए MSP व्यवस्था को खत्म कर कृषि मंडियों और इनमें होने वाले कारोबार को चुनिंदा पूंजीपतियों के हाथों में सौपना चाहती थी। गेहूं और धान की क्वालिटी के पैरामीटर बदलने के पीछे भी उसकी पुरानी मंशा ही नजर आती है।
प्रदेश में अनाज भंडारण की सीमित क्षमता भी बदलाव की वजह: किसानों का आरोप है कि सरकार किसानों का अनाज खरीदने से बच रही है। इसलिए खरीदी के पैरामीटर कड़े कर रही है। नए नियमों में सैंपल रिजेक्ट होने पर किसान के सामने बाजार में फसल बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। जानकार इसके पीछे भंडारण क्षमता कम होने का भी कारण बताते हैं। मध्यप्रदेश वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स कॉर्पोरेशन के अप्रैल 2021 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में अनाज की कुल भण्डारण क्षमता (किराए के वेयरहाउस सहित) 1.92 करोड़ मीट्रिक टन है। इसमें 77 फीसदी यानि 1.47 करोड़ मीट्रिक टन पहले से ही अनाज भरा हुआ है। मध्यप्रदेश में हर साल गेहूं हो या धान दोनों का ही उत्पादन करीब 1 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक होता है। ऐसे में अब अनाज की और अतिरिक्त खरीद होने पर उसका भंडारण करना भी बड़ी चुनौती है।
एक्सपर्ट व्यू: MSP व्यवस्था को बड़ा झटका लगेगा: सरकार में कृषि विभाग (Agriculture department) के पूर्व डायरेक्टर जीएस कौशल का भी मानना है कि सरकारी खरीद के नियम अचानक कड़े करने से किसानों को बेहद नुकसान होगा। वैसे भी MSP व्यवस्था में किसानों का पूरा अनाज नहीं खरीदा जाता है। ऐसे में स्थिति और खराब होगी। मौसम की अनिश्चितता के कारण उपज की गुणवत्ता पूरी तरह किसानों के हाथ में नहीं होती है। उनका सवाल है कि आखिर खरीद के नियम बदलने से अनाज की गुणवत्ता कैसे सुधर जाएगी। यह बड़ी विडंबना है कि जब प्रदेश में कृषि उत्पादन लगातार बढ़ रहा है तब सरकार अनाज की खरीद को सीमित करने जा रही है। इससे किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए MSP व्यवस्था को बड़ा झटका लगेगा।
मंत्री का तर्क-बदलाव के पीछे गरीबों को अच्छा अनाज देने की मंशा: सरकारी खरीद के लिए गेहूं-धान की गुणवत्ता के नियम (Wheat-Paddy Quality Rules) बदले जाने के पीछे कृषि मंत्री कमल पटेल का तर्क है कि सरकार PDS के तहत गरीब लोगों को अच्छी क्वालिटी का अनाज उपलब्ध कराना चाहती है। किसानों से MSP पर खरीदा जाने वाला अनाज ज्यादातर समाज के कमजोर वर्ग के लोगों में ही बांटा जाता है।
(द सूत्र के लिए सुनील शुक्ला और राहुल शर्मा की रिपोर्ट।)