Gyanvapi:केस जिला कोर्ट भेजा;SC बोला- नमाज होगी,शिवलिंग क्षेत्र की सुरक्षा रखें

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Atul Tiwari
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Gyanvapi:केस जिला कोर्ट भेजा;SC बोला- नमाज होगी,शिवलिंग क्षेत्र की सुरक्षा रखें

New Delhi/Varanasi. सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी केस वाराणसी के जिला कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया। शीर्ष अदालत ने 20 मई को आदेश दिया कि कोई अनुभवी और वरिष्ठ जज इस मामले की सुनवाई करेंगे। वाराणसी जिला अदालत के आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि शिवलिंग की सुरक्षा और नमाज की इजाजत देने का उसका 17 मई का अंतरिम आदेश बरकरार रहेगा। मस्जिद कमेटी की याचिका पर जिला कोर्ट में प्रायोरिटी के आधार पर सुनवाई होगी। इसके साथ ही अदालत ने मामले की अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टियों के बाद जुलाई के दूसरे हफ्ते में करने का फैसला लिया है।



सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये कहा



जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने 51 मिनट चली सुनवाई में साफ कहा कि मामला हमारे पास जरूर है, लेकिन पहले इसे वाराणसी जिला कोर्ट में सुना जाए। कोर्ट ने कहा कि जिला जज 8 हफ्ते में सुनवाई पूरी करेंगे। तब तक 17 मई की सुनवाई के दौरान दिए गए निर्देश जारी रहेंगे।



17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तीन बड़ी बातें कही थीं...




  • पहला- शिवलिंग के दावे वाली जगह को सुरक्षित किया जाए। 


  • दूसरा- मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से ना रोका जाए। 

  • तीसरा- सिर्फ 20 लोगों के नमाज पढ़ने वाला ऑर्डर अब लागू नहीं। यानी ये तीनों निर्देश अगले 8 हफ्तों तक लागू रहेंगे। इसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होगा।



  • किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाने की मनाही नहीं



    कोर्ट ने कहा कि वुजू की व्यवस्था की जाएगी। इसके साथ ही शिवलिंग का एरिया सील रहेगा। मुस्लिम पक्ष की एक दलील को सुनने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाना वर्जित नहीं है. दरअसल, मुस्लिम पक्ष के वकील अहमदी ने पूछा था कि अहमदी ने कहा कि पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर स्पष्ट रूप से रोक है. आयोग का गठन क्यों किया गया था? यह देखना था कि वहां क्या था?



    वहीं, आयोग की रिपोर्ट लीक होने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि आयोग की रिपोर्ट लीक नहीं होनी चाहिए और केवल जज के सामने पेश की जानी चाहिए। रिपोर्ट मीडिया में लीक नहीं होनी चाहिए। रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी थी, कोर्ट को इसे खोलना चाहिए था। हमें संतुलन और शांति की भावना बनाए रखने की जरूरत है। एक तरह से हीलिंग टच की जरूरत है। हम देश में संतुलन की भावना को बनाए रखने के लिए एक संयुक्त मिशन पर हैं।



    कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलील...



    कोर्ट में हिंदू पक्षकार की ओर से सीनियर वकील वैद्यनाथन और मुस्लिम पक्ष की ओर से मस्जिद कमेटी के वकील हुजेफा अहमदी ने दलीलें पेश कीं...



    1. कमीशन की रिपोर्ट पर



    हिंदू पक्ष ने कहा कि कमीशन की रिपोर्ट आ गई है। पहले उसे देखा जाए। इसके बाद ही फैसले पर विचार हो। मुस्लिम पक्ष ने जवाब में कहा कि सर्वे को लेकर जो भी निर्देश दिए गए हैं, वो अवैध है। इसलिए इसे निरस्त किया जाए। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि 15 अगस्त 1947 के समय ज्ञानवापी विवादित नहीं था। ऐसे में इस पर कोई भी फैसला नहीं दिया जाना चाहिए।



    2. लोअर कोर्ट के फैसले पर



    मुस्लिम पक्ष ने लोअर कोर्ट के फैसले को भी अवैध बताया। वहीं, हिंदू पक्ष ने कहा कि पहले रिपोर्ट देख लीजिए। मुस्लिम पक्ष ने सर्वे रिपोर्ट लीक करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि देश में एक नरेटिव तैयार किया जा रहा है। इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। इसे सिर्फ एक केस ना मानें, देश में बड़ा प्रभाव डालेगा।



    3. मस्जिद में नमाज पर



    मुस्लिम पक्ष ने कहा कि मस्जिद के भीतर नमाज पढ़ने में दिक्कत हो रही है। अंदर के एरिया को सील कर दिया गया है। इस पर भी ध्यान दिया जाए। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हम आपके सामने अयोध्या मामले में जो फैसला आया था, उसका उदाहरण देना चाहते हैं।



    ज्ञानवापी विवाद टाइमलाइन



    1809- मस्जिद परिसर के बाहर नमाज पढ़ने को लेकर विवाद के बाद सांप्रदायिक दंगे हुए थे।

    1984- दिल्ली की धर्मसंसद में हिंदू पक्ष को अयोध्या, काशी और मथुरा पर दावा करने को कहा गया।

    1991- वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर कर ज्ञानवापी परिसर में पूजा के साथ मस्जिद ढहाने की मांग की।

    1998- अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेट की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट की सुनवाई पर रोक लगाई।

    2019- वाराणसी जिला कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की पिटीशन दायर की।

    2020- मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी में आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की याचिका का विरोध किया।

    2020- इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्टे नहीं बढ़ाए जाने पर याचिकाकर्ता ने लोअर कोर्ट में फिर से सुनवाई शुरू करने का अनुरोध किया।

    2021- 17 अगस्त को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां शृंगार गौरी मंदिर में रोज पूजा के लिए 5 महिलाओं ने याचिका दाखिल की।

    2022- 26 अप्रैल को कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी और सर्वे के आदेश दिए।

    2022- 6 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे शुरू हुआ।



    प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट 



    1991 में केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। उनकी सरकार में ये कानून लाया गया था। इसके मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा। उसके साथ छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता। 



    चूंकि अयोध्या विवाद का मामला आजादी से पहले से कोर्ट में चल रहा था, इसलिए इसे छूट दी गई थी। लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद और शाही ईदगाह मस्जिद पर ये लागू होता है। इस कानून में साफ है कि आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था, वो हमेशा वैसा ही रहेगा। उसके साथ कोई बदलाव नहीं हो सकता। इसमें ये भी है कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे एक से तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।



    ये मंदिर और मस्जिद किसने बनवाया?



    इसे लेकर कोई एकराय नहीं है। याचिकार्ताओं का कहना है कि इस मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने फिर से बनवाया था। अकबर के शासन काल में इसका फिर से निर्माण करवाया गया। जानकार मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने बनवाया था। इसे 1585 में बनवाया गया।  1669 में औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनाई। 



    अभी जो काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे 1735 में  इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद आपस में सटे हुए हैं, लेकिन उनके आने-जाने के रास्ते अलग-अलग दिशाओं में हैं।



    क्या अयोध्या की तरह सुलझ सकता है ये विवाद?



    अयोध्या विवाद और वाराणसी विवाद में कुछ हद तक समानताएं हैं, लेकिन वाराणसी विवाद अयोध्या विवाद से हटकर है। अयोध्या का विवाद आजादी के पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए उसे 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट से छूट मिली थी, लेकिन वाराणसी विवाद 1991 में अदालत से शुरू हुआ, इसलिए इस आधार पर इसे चुनौती मिलनी लगभग तय है। 



    हिंदू संगठनों की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और वो पूरी जमीन हिंदुओं के हवाले की जाए। इस मामले में हिंदू पक्ष की दलील है कि ये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है, इसलिए 1991 का कानून इस पर लागू नहीं होता। तो वहीं मुस्लिमों का कहना है कि यहां पर आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है, इसलिए इस पर 1991 के कानून के तहत कोई फैसला करने की मनाही है।


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