NEW DELHI. लोकसभा और विधानसभा में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के समुदायों को मिले आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में 21 नवंबर को सुनवाई होने जा रही है। बता दें कि संविधान में दी गई 10 साल की अवधि से इसे आगे बढ़ाने के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई है।
104वें संशोधन की वैधता SC/ST तक ही सीमित होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि संविधान संशोधन (104 वां) एक्ट 2019 के तहत एससी/एसटी कैटिगरी को दिया जाने वाला रिजर्वेशन 10 साल और बढ़ा दिया गया है। जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षण संविधान के लागू होने के 70 साल पूरे होने के बाद समाप्त हो चुका है, इसलिए 104वें संशोधन की वैधता एससी और एसटी समुदायों पर लागू होने तक ही सीमित होनी चाहिए।
2003 में मामले को पांच जजों की पीठ के पास भेजा गया
वरिष्ठ वकील सी ए सुंदरम ने कहा कि सुनवाई के दौरान मुख्य मुद्दा आरक्षण की अवधि बढ़ाने वाले संवैधानिक संशोधनों से संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन का होगा। संविधान के आर्टीकल 334 में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी और एसटी के लिए सीटों के आरक्षण और मनोनयन के जरिए आंग्ल भारतीय समुदाय के विशेष प्रतिनिधित्व का विशेष प्रावधान एक समय के बाद खत्म हो जाएगा। बता दें कि शीर्ष अदालत ने संसद और राज्य विधानसभाओं में एससी और एसटी समुदायों को आरक्षण प्रदान करने वाले 79वें संविधान संशोधन अधिनियम 1999 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। साथ ही 2 सितंबर 2003 को मामले को पांच जजों की पीठ के पास भेज दिया था।