उज्जैन में महाकाल के पुत्र गणेश का ऐतिहासिक मंदिर, भगवान राम ने धरती को दोषमुक्त करने के लिए किया था स्थापित

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The Sootr CG
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उज्जैन में महाकाल के पुत्र गणेश का ऐतिहासिक मंदिर, भगवान राम ने धरती को दोषमुक्त करने के लिए किया था स्थापित

नासिर बेलिम रंगरेज़, UJJAIN. मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में बाबा महाकाल ही नही उनके पुत्र भगवान गणेश का भी प्राचीन मंदिर स्थित है। ये मंदिर उज्जैन के रेलवे स्टेशन बस स्टैंड से 7 से 8 किलोमीटर और महाकालेश्वर मंदिर से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। ये प्राचीन मंदिर चिंतामन गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। गणेश जी के इस प्रसिद्ध मंदिर के गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। गौरीसुत गणेश की तीन प्रतिमाएं गर्भगृह में प्रवेश करते ही दिखाई देती हैं, यहां पार्वतीनंदन तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामन, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक।



भगवान श्रीराम ने की थी मंदिर की स्थापना



मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। यहां दर्शन करने वाले व्यक्ति की सभी चिंताएं खत्म हो जाती हैं और वे चिंतामुक्त हो जाते हैं। बुधवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। वहीं गणेश महोत्सव के 10 दिन भी अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान उज्जैन में देशभर से श्रद्धालुओं का आगमन होता है।



धरती को दोषमुक्त करने के लिए भगवान राम ने बनाया गणपति मंदिर



चिंतामन गणेश मंदिर 9वीं से 13वीं शताब्दी का माना जाता है। इस मंदिर के शिखर पर सिंह विराजमान है। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामन गणेश सीता द्वारा स्थापित षट् विनायकों में से एक हैं। कहते हैं कि ये मंदिर रामायण काल में राम वनवास के समय का है। जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तभी सीता को बड़ी जोरों की प्यास लगी। राम ने लक्ष्मण से पानी लाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। पहली बार लक्ष्मण द्वारा किसी काम को मना करने से राम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने ध्यान द्वारा समझ लिया कि ये सब यहां की दोषपूर्ण धरती का कमाल है। तब उन्होंने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां गणपति मंदिर की स्थापना की जिसके प्रभाव से बाद में लक्ष्मण ने यहां एक बावड़ी बनाई जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं।



मंदिर में बनाया जाता है उल्टा स्वास्तिक



गणपति मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु यहां मन्नत का धागा बांधते हैं और उल्टा स्वास्तिक भी बनाते हैं। मन्नत के लिए दूध, दही, चावल और नारियल में से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है और जब वो इच्छा पूर्ण हो जाती है तब उसी वस्तु का यहां दान किया जाता है और फिर स्वास्तिक को सीधा बनाया जाता है।



गणपति की पूजा से होती है हर नए काम की शुरुआत



लोग हर शुभ कार्य की शुरुआत गणपति को पूजकर करते हैं। चिन्तामन मंदिर शहर के लोगों के लिए शुभ कार्यों का प्रतीक है। हर नए काम की शुरुआत यहीं से होती है। मांगलिक कार्य करने से पहले पहली पत्रिका गणपति को ही दी जाती है।


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