संसद या राज्य विधानसभाओं के अंदर दिए गए अपमानजनक बयान आपराधिक कृत्य नहीं, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

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Chandresh Sharma
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संसद या राज्य विधानसभाओं के अंदर दिए गए अपमानजनक बयान आपराधिक कृत्य नहीं, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट ने संसद या विधानसभाओं के भीतर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मानहानिकारक बयानों को आपराधिक साजिश के हिस्से के रूप में वर्गीकृत करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि संसद या राज्य विधानसभाओं के अंदर दिए गए अपमानजनक बयान आपराधिक कृत्य नहीं हैं। जानें ऐसा क्यों कहा...

सीता सोरेन की ओर से दलील...

झामुमो विधायक सीता सोरेन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि सीता सोरेन को संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट प्राप्त है। यह अनुच्छेद सदन में किसी भी बात या दिए गए वोट को कानूनी कार्रवाई से बचाता है। रामचंद्रन ने चिंता व्यक्त की कि सदन के भीतर वोट या भाषण से संबंधित कार्यों के लिए इम्यूनिटी प्रदान करने में विफल रहने से विधायकों को आक्रामक भाषणों के जरिए अपने सहयोगियों को बदनाम करने की साजिश रचने के संभावित आरोपों का सामना करना पड़ेगा।

क्या है सीता सोरेन का मामला?

दरअसल, सीता सोरेन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव के दौरान एक खास उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप है। उन्होंने अभियोजन से छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधान के तहत सुरक्षा की मांग की।

रमेश बिधूड़ी का भी किया गया जिक्र

बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ हाल ही में इस्तेमाल किए गए विवादित शब्दों का जिक्र करते हुए रामचंद्रन ने वोट से जुड़े कार्यों के लिए अभियोजन से व्यापक छूट प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा, "वोट या भाषण से जुड़ी किसी भी चीज के लिए अभियोजन से छूट, भले ही इसमें रिश्वतखोरी या साजिश शामिल हो, स्पष्ट होनी चाहिए।

सात जजों की पीठ दृष्टिकोण से क्यों हुई असहमत

भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ इस दृष्टिकोण से असहमत थी। सीजेआई ने स्पष्ट किया, अगर किसी कृत्य का उद्देश्य गैरकानूनी कार्य करना है तो उसे आपराधिक साजिश माना जाता है। सदन के पटल पर तथाकथित मानहानिकारक बयान देना गैरकानूनी नहीं है और संवैधानिक रूप से अभियोजन से संरक्षित है। यदि किसी के भाषण में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया तो इम्यूनिटी के तहत उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती।

वोट के बदले रिश्वत के लिए केस चला सकते हैं : अटॉर्नी जनरल

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तर्क में इस बात पर जोर दिया कि किसी भी कानून के तहत अपराध माने जाने वाले कार्यों को सदन के भीतर सांसदों को बोलने और मतदान करने की स्वतंत्रता के लिए दी गई छूट के तहत शरण नहीं मिल सकती है। वेंकटरमणी ने सीता सोरेन के मामले को अलग बताते हुए कहा कि राज्यसभा चुनाव में मतदान का विधायी निकाय की कार्यवाही से कोई सीधा संबंध नहीं है। नतीजतन, उच्च सदन में मतदान के लिए कथित तौर पर ली गई रिश्वत पर संभावित रूप से मुकदमा चलाया जा सकता है।

'रिश्वतखोरी से बचाव के लिए नहीं नियम'

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रेखांकित किया कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट रिश्वतखोरी से बचाव के लिए नहीं बढ़ाया जा सकती, क्योंकि मतदान या भाषण से संबंधित अपराध भले ही संसद या विधानसभाओं के भीतर या विधायी कक्षों के बाहर हुआ हो। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट को एक सांसद द्वारा किसी विशेष वोट या भाषण के लिए सदन के अंदर दूसरे सांसद को रिश्वत देने के बेहद दुर्लभ परिदृश्य के साथ इन प्रावधानों की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।

कोर्ट ने फैसला किया सुरक्षित

सात जजों की पीठ के समक्ष दो दिन की संक्षिप्त सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह सुनवाई 1998 के पीवी नरसिम्हा राव के फैसले का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बुलाई गई थी। इसी के तहत संसद में अपने वोट के बदले रिश्वत लेने वाले झामुमो सांसदों और विधायकों को राहत मिल गई थी।

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