नई दिल्ली. आज यानी 15 जनवरी को सेना दिवस (Army Day) मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने देश और सेना को आर्मी डे की बधाई दी है। तीनों सेना प्रमुखों ने दिल्ली में अमर जवान ज्योति पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। आइए जानते है कि देश में सेना दिवस मनाए जाने की क्या कहानी है...
Best wishes on the occasion of Army Day, especially to our courageous soldiers, respected veterans and their families. The Indian Army is known for its bravery and professionalism. Words cannot do justice to the invaluable contribution of the Indian Army towards national safety. pic.twitter.com/UwvmbVD1hq
— Narendra Modi (@narendramodi) January 15, 2022
पहले सेनाध्यक्ष ने इंदौर में ही ट्रेनिंग ली थी: भारत की आजादी के बाद 15 जनवरी 1949 को जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) केएम करिअप्पा (28 जनवरी 1899- 15 मई 1993 ) पहले आर्मी चीफ बने। तब से हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस मनाया जाता है। करिअप्पा का मध्य प्रदेश से भी गहरा नाता है। उन्होंने आर्मी की ट्रेनिंग इंदौर में ही ली थी। 1934 के पहले ब्रिटिश इंडियन आर्मी में जो भी भारतीय युवा अफसर बने, वे किंग्स कमीशंड इंडियन ऑफिसर (KCIO) की श्रेणी में आते थे।
केसीआईओ के पहले बैच की ट्रेनिंग के लिए 1918 में इंदौर में ट्रेनिंग स्कूल ऑफ इंडियन आर्मी कैडेट की स्थापना हुई। यह स्कूल डेली कॉलेज कैंपस में शुरू हुआ, जिसके लिए वहां पढ़ रहे छात्रों को 2 साल के लिए इंदौर स्थित अन्य हाउस में शिफ्ट किया। यहां से एक बैच निकला, जिसमें केएम करियप्पा भी कैडेट थे। ये फैक्ट डेली कॉलेज के पूर्व प्राचार्य कुंवर सुमेर सिंह की किताब ‘द डेली कॉलेज- स्टोरी ऑफ ए 125 ईयर्स ओल्ड इंस्टीट्यूशन’ में भी दर्ज है।
इंदौर की सुखद यादें हैं: डिफेंस हिस्ट्री के जानकार देव कुमार वासुदेवन बताते हैं कि करिअप्पा को इंदौर से ट्रेनिंग लेने के बाद उन्हें 1919 में कमीशन मिला और वे सेकंड लेफ्टिनेंट बने। करिअप्पा ने बाद में लिखा था कि इंदौर में रहने की यादें सुखद हैं। पहले बैच में 38 कैडेट थे। इनमें से एक इंदौर के सिख मोहल्ला के सज्जन सिंह थे, जो कर्नल बने और बाद में होलकर स्टेट फोर्स में गए।
ग्रैंड ओल्डमैन ऑफ इंडिया (भारत के वयोवृद्ध पुरुष) कहे जाने वाले कहे जाने वाले दादा भाई नौरोजी के पोते केएडी नौरोजी और बाद में पाकिस्तान में मेजर जनरल बने मो. अकबर खान भी इसी बैच से निकले। एक बैच के बाद 1919 में यह ट्रेनिंग स्कूल यहां बंद किया और भारत से चुने गए कैडेट को रॉयल मिलिट्री कॉलेज सैंडहर्स्ट (इंग्लैंड) भेजा जाने लगा।
1952 में महू आए थे: इतिहासकार डेन्जिल लोबो के मुताबिक, करिअप्पा 19 नवंबर 1952 को महू आए थे। मिलिट्री परेड की सलामी लेने के बाद वे सेक्रेड हार्ट स्कूल में पहुंचे। प्रिंसिपल जॉलीचन पी.जे. के अनुसार बच्चों ने उन्हें सलामी दी। करिअप्पा ने हिंदी में संबोधित करते हुए कहा- देश के अच्छे और ईमानदार नागरिक बनो।
दूसरे फील्ड मार्शल थे करिअप्पा: भारत में अब तक केवल दो ही अफसरों को फील्ड मार्शल सम्मान दिया गया है। 1971 वॉर के हीरो रहे सैम मानेकशॉ को 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल बनाया गया। करिअप्पा को 15 जनवरी 1986 को फील्ड मार्शल रैंक दिया गया। करिअप्पा को उसी दिन फील्ड मार्शल बनाया गया, जिस दिन वे स्वतंत्र भारत के पहले आर्मी चीफ बने थे।