टीचर से राष्ट्रपति बने डॉ. राधाकृष्णन का आज जन्मदिन, जानें उन शिक्षकों को जिन्होंने महान साम्राज्य बनाया, कहानियों में समझाया जीवन

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Atul Tiwari
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टीचर से राष्ट्रपति बने डॉ. राधाकृष्णन का आज जन्मदिन, जानें उन शिक्षकों को जिन्होंने महान साम्राज्य बनाया, कहानियों में समझाया जीवन

BHOPAL. आज यानी 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन 1888 में तमिलनाडु के तिरुट्टनी में भारत के दूसरे राष्ट्रपति (कार्यकाल के लिहाज से तीसरे, शुरुआती दो बार डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति रहे) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ। वे 1962 से 67 तक देश के राष्ट्रपति रहे। 1952 से 62 तक यानी 10 साल देश के उपराष्ट्रपति रहे। डॉ. राधाकृष्णन फिलॉसफी के प्रोफेसर थे।





मदन मोहन मालवीय के बुलावे पर भारत आए राधाकृष्णन





1939 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर को चिट्ठी लिखकर हमेशा के लिए भारत आने का निमंत्रण दिया। फिलॉसफी के ये प्रोफेसर वहां पूर्वी दुनिया के धर्म और नैतिकता पढ़ाया करते थे। प्रोफेसर ने भी न्योता स्वीकार कर लिया। ये प्रोफेसर तमिलनाडु में एक स्थानीय जमींदार के लिए जमीनों की पैमाइश करने वाले सर्वपल्ली वीरस्वामी का बेटे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। मालवीय ने राधाकृष्णन को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) का वाइस चांसलर बना दिया। राधाकृष्णन 20 साल की उम्र से फिलॉसफी पढ़ा रहे थे। 





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स्टालिन उन्हें प्रोफेसर बुला रहे थे, राधाकृष्णन स्टालिन को मार्शल





राधाकृष्णन को सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन से रूस में मुलाकात करनी थी, लेकिन स्टालिन वक्त नहीं दे रहे थे। 14 जनवरी 1950 को स्टालिन की तरफ से राधाकृष्णन को मुलाकात के लिए बुलाया गया। समय दिया गया रात के 9 बजे। स्टालिन दूसरे देशों के डिप्लोमेट्स से रात 12 बजे के बाद ही मिलते थे। के सच्चिदानंद मूर्ति और अशोक वोहरा की किताब Radhakrishnan His Life and Ideas में मुलाकात का उल्लेख है। किताब के मुताबिक, अभिवादन के बाद राधाकृष्णन ने स्टालिन से पहला सवाल पूछा- मिस्टर चेयरमैन सर, आपसे मिलना इतना कठिन क्यों है? स्टालिन ने कहा- क्या वाकई मुझसे मिलना इतना कठिन है, देखिए हम और आप मिल तो रहे हैं। दोनों के बीच का माहौल इतना सहज हो गया कि सिर्फ 5 मिनट की यह मुलाकात 3 घंटे तक चली। बातचीत के दौरान राधाकृष्णन स्टालिन को मार्शल और स्टालिन राधाकृष्णन को प्रोफेसर कहकर संबोधित करते रहे।





राधाकृष्णन ने माओ के गाल पर हाथ फेर दिया था





1957 में उपराष्ट्रपति रहने के दौरान डॉ. राधाकृष्णन चीन दौरे पर गए थे। उन्हें चीन के महान नेता माओत्से तुंग से होनी थी। माओ ने राधाकृष्णन को अपने घर बुलाया। राधाकृष्णन माओ के घर चुग नान हाई पहुंचे। आंगन में ही दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया। यहां ना जाने क्या सोचकर राधाकृष्णन ने माओ के बाएं गाल को थपथपा दिया। माओ कुछ बोलते उससे पहले राधाकृष्णन ने कहा- अध्यक्ष महोदय, परेशान मत होइए। मैं स्टालिन और पोप के साथ भी यही अपनापन दिखा चुका हूं।  





गुरु से गुरुकल 



गुरु शब्द का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ। इसका अर्थ शिक्षक और मार्गदर्शक होता है। शिक्षक को मुख्य तौर पर मार्गदर्शक इसलिए कहा जाता है क्योंकि एक शिक्षक ही होता है जो अपने ज्ञान का सारा भंडार अपने छात्रों को दे देते हैं और भविष्य की राह दिखाते हैं। भारत की शिक्षा पद्धति, गुरुकुल से निकली। प्राचीन भारत ने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे दुनिया के बडे़ विश्वविद्यालय भी दिए। 





भारत के 3 महान शिक्षकों की कहानी





चाणक्य





चाणक्य (ईसा पूर्व 370–283) का असल नाम विष्णु गुप्त था। उन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। सही मायनों में वे मौर्य साम्राज्य (ईसा पूर्व 323-185) के संस्थापक थे। वे एक शिक्षक, दार्शनिक और सम्राट के सलाहकार थे। वे शुरुआत में तक्षशिला विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर थे। चाणक्य भारत को एक विशाल साम्राज्य के रूप में देखना चाहते थे। उन्हें एक ऐसे युवा की तलाश थी, जो भारत का नया इतिहास लिख सके। एक बार चाणक्य तत्कालीन मगध सम्राट घनानंद के यहां यज्ञ में गए। जब भोजन के समय आसन पर बैठे थे तो घनानंद ने चाणक्य का काला रंग देखकर इन्हें आसन से उठ जाने की आज्ञा दी। चाणक्य बिना भोजन किए वहां से क्रुद्ध होकर निकले और प्रतिज्ञा ली कि जब तक मैं इस नंदवंश का नाश न कर लूं, तब तक अपनी शिखा नहीं बांधूंगा। प्रतिज्ञा कर जब वे राजमहल से निकले तो उनकी नजर रास्ते में खेलते हुए बालक चंद्रगुप्त पर पड़ी जो खेल रहे बच्चों का नेतृत्व कर रहा था। चाणक्य को पहली ही नजर में भारत का भावी सम्राट मिल गया था। वे उसे अपने साथ ले आए और शिक्षा देनी शुरू कर दी। इसी चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।





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मुंशी प्रेमचंद





जब पूस की रात, बड़े भाईसाहब, गुल्ली-डंडा, कफन जैसी कहानियों का नाम आता है तो मुंशी प्रेमचंद का चेहरा आंखों में कौंध जाता है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियां और उपन्यास समाज से सीधे सरोकार कराती हैं। गोदान और गबन सामाजिक विसंगति और परंपराओं को जीवंत करते हैं। गोदान तो उनका महान उपन्यास माना जाता है। इसमें वे शहरी और ग्रामीण हिस्से की कहानी तो बताते ही हैं, साथ ही पात्रों के जरिए जीवन के रंग भी दिखाते चलते हैं। मुंशी प्रेमचंद के जीवन की शुरुआत शिक्षक के रूप में हुई थी। 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमहीं गांव में पैदा हुए प्रेमचंद ने 1900 में महज 20 साल की उम्र में शिक्षण कार्य शुरू कर दिया था। चुनार में 18 रुपए प्रति माह पर एक निजी विद्यालय में हेडमास्टर के पद पर तैनात हुए। यहां से 6 महीने बाद उनका चयन तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट स्कूल बहराइच वर्तमान में राजकीय इंटर कॉलेज में हो गया था। 1936 में उन्होंने गोदान लिखा। मुंशी जी ने करीब 300 कहानियां लिखीं। 1936 में ही 56 की उम्र में उनका निधन हो गया।





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डॉ एपीजे अब्दुल कलाम 





डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है। वे वैज्ञानिक थे और भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम (तमिलनाडु) में हुआ था। वे खुद लिखते हैं- मैं शिक्षक के रूप में पहचान बनाना चाहता था। उन्होंने ये भी लिखा- सीखना जिंदगी की आजीवन प्रक्रिया है। जो दूसरों को जानता है, वह विद्वान है, लेकिन बुद्धिमान वही है जो खुद को जानता है। कलाम ने छात्रों को हमेशा बड़े सपने देखने और जीवन में लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित किया। कलाम कहते थे- लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में जानें तो मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा। 2002 में जब वे राष्ट्रपति बने तो उन्होंने पढ़ाने के लिए अपने पेन चार्ट से कोई समझौता नहीं किया। 27 जुलाई 2015 को कलाम का 83 की उम्र में निधन हो गया। तब वे मेघालय के शिलॉन्ग के आईआईएम में लेक्चर दे रहे थे। लेक्चर देते वक्त ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। भारत का महान वैज्ञानिक, पूर्व राष्ट्रपति शिक्षा देते हुए ही दुनिया से कूच कर गया। शिलॉन्ग में उन्होंने कहा था- असली शिक्षा वही है, जो एक व्यक्ति को यह सोचने पर मजबूर करती है कि मैं क्या कर सकता हूं।





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5 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस





5 अक्टूबर 1966 को पेरिस में एक सम्मेलन का आयोजन हुआ था, जिसमें 'टीचिंग इन फ्रीडम' संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि में शिक्षकों के अधिकार, जिम्मेदारी, भर्ती, रोजगार, सीखने- सिखाने के स्तर को ऊपर उठने के लिए कई सिफारिशें की गई थीं। संयुक्त राष्ट्र में विश्व शिक्षक दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए साल 1994 में 100 देशों के समर्थन से यूनेस्को की सिफारिश को पारित कर दिया गया। इसके बाद 5 अक्टूबर 1994 से अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा।



राधाकृष्णन फिलॉसफी के प्रोफेसर भारत का शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन APJ Abdul Kalam also taught Radhakrishnan Professor of Philosophy Teacher's Day of India Dr. Sarvepalli Radhakrishnan's Birthday एपीजे अब्दुल कलाम भी पढ़ाते थे