पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता (Alok Mehta) की नई किताब ‘पावर, प्रेस और पॉलिटिक्स‘ (Power, Press and Politics) का विमोचन हो गया है। पुस्तक पर चर्चा के लिए शनिवार को एक वेबिनार का आयोजन किया गया। यह वेबिनार ‘एक्सचेंज4मीडिया‘ ने आयोजित किया। इस वेबिनार में आलोक मेहता ने कहा, ''इन दिनों हर कोई सामने आ रही चुनौतियों के बारे में बात कर रहा है। बहुत सारी समस्याएं सामने आ रही हैं। मीडिया के सामने भी कई चुनौतियां आई हैं। इन्हीं सभी चीजों को लेकर हमने इस किताब में लिखा है। नई पीढ़ी के बारे में भी इस किताब में जिक्र किया गया है। इस वेबिनार में वक्ता के तौर पर ‘बिजनेस वर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ ग्रुप के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा, ‘नेटवर्क18‘ के एग्जिक्यूटिव एडिटर आनंद नरसिम्हन, ‘मलयाला मनोरमा‘ व ‘द वीक‘ के रेजिडेंट एडिटर सच्चिदानंद मूर्ति और ‘एबीपी न्यूज‘ की वरिष्ठ पत्रकार रूबिका लियाकत ने हिस्सा लिया।
तरह-तरह की चुनौतियां से गुजरना पड़ा
आलोक मेहता ने कहा, 'मैंने बहुत समय मीडिया में बिताया है। बहुत सी धमकियां भी मिलीं कि क्या कर कर रहे हैं?, क्या समस्या है? ऐसे में मेरे पब्लिशर ने मुझे सुझाव दिया कि आप क्यों नहीं लिखते यह सब, आप अपने विचारों को लिखकर व्यक्त क्यों नहीं करते। विभिन्न समाचारपत्रों और न्यूज एजेंसियों के साथ काम करके अलग-अलग तरह का अनुभव मिला और कई संपादकों को भी जान सका। लिहाजा मैंने भी सोचा कि काम करने के दौरान जो भी समस्याएं आती हैं वह सब इस किताब में लिखा जाए। मेरे कई पूर्व संपादकों को तरह-तरह की चुनौतियां से गुजरना पड़ा। मैंने कई बार कई लोगों का अखबार, टेलीविजन और डिजिटल के लिए इंटरव्यू किया। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों नहीं भारतीय और देश के बाहर के पाठकों के लिए कुछ विचार सामने लाऊं।'
किसी मुद्दे को बड़ी बारीकी से लिखा गया
वेबिनार में सच्चिदानंद मूर्ति ने कहा, ''किताब से हमें एक चीज समझ आती है कि किसी भी मीडिया की आजादी बड़ी चीज है। आलोक जी की किताब में राज्यों और केंद्र की राजनीति को काफी बैलेंस तरीके से समझाया गया है। हर किसी मुद्दे को बड़ी बारीकी और गहन अध्ययन के साथ लिखा गया है। उनकी यह किताब पिछले 50 सालों की उन परिस्थिति का सही चित्रण करती है, जिस दौरान हमने तमाम संपादकों और मीडिया घरानों की कार्यप्रणाली को देखा है। ''
मीडिया के बीते दौर में ले जाती है किताब
वहीं रूबिका लियाकत ने कहा, ''आलोक मेहता जी की यह किताब हमें मीडिया के उस दौर में लेकर जाती है, जहां हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उनकी किताब में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो कभी नहीं बदलती हैं जैसे कि किसी मीडिया संस्थान या एंकर पर दबाब बनाने की कोशिश करना और वो कैसे उस दबाव से बाहर निकलता है।''
मीडिया के कई पक्षों से रूबरू कराती किताब
आनंद नरसिम्हन ने कहा, ''आलोक मेहता जी की यह किताब मीडिया के कई पक्षों से हमें रूबरू करवाती है। हमें ये समझने की जरूरत है कि दुनिया में कोई भी मीडिया स्वतंत्र नहीं है। मीडिया तब तक स्वतंत्र नहीं हो सकता, जब तक कि उसे लगे कि हमें कमाना है। जिन पत्रकारिता के सिद्धांतों की हम बात करते हैं, आज उनके भी मायने बदल गए हैं। आलोक मेहता जी की किताब मेरे ऑफिस में मेरे पास रखी हुई है और जब भी समय मिलता है मैं उसे पढ़ता हूं और मुझे पढ़ने में बड़ा मजा आ रहा है। आलोक मेहता जी की किताब में उन 27 पत्रकारों के नाम हैं, जो आपातकाल के दौरान डटकर खड़े हुए लेकिन उनका नाम किसी मीडिया स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता है।''
कई विषयों पर बड़ी खूबसूरती से लिखा गया
इस दौरान डॉ. अनुराग बत्रा ने कह, ''मैं जब इस किताब को देख रहा था तो मैंने देखा कि इसमें 36 लोगों की स्वीकृति (acknowledgement) है। इनमें से छह लोगों को मैं नहीं जानता था और ये चीज बताने के लिए काफी है कि ये किताब कितने बड़े स्तर पर और किन अनुभवों को आधार बनाकर लिखी गई है। पेड न्यूज आज का चलन नहीं है, ये कई दशकों से होता आ रहा है। इसके अलावा खोजी पत्रकारिता, स्टिंग, आर्थिक दबाब, न्यायपालिका के साथ मीडिया के संबंध जैसे विषयों पर भी बड़ी खूबसूरती से लिखा गया है।''