दिल्ली के बीकानेरवाला के फाउंडर केदारनाथ अग्रवाल नहीं रहे, दिल्ली को पहली बार चखाया था मूंग के हलवे का जायका

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Chandresh Sharma
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दिल्ली के बीकानेरवाला के फाउंडर केदारनाथ अग्रवाल नहीं रहे, दिल्ली को पहली बार चखाया था मूंग के हलवे का जायका

NEW DELHI. दिल्ली में नमकीन, भुजिया और रसगुल्लों का नाम आते ही एक ही नाम जहन में आता है, बीकानेरवाला। इस ब्रांड के फाउंडर और चेयरमैन केदारनाथ अग्रवाल का निधन हो गया है। उन्होंने ही इस दुनियाभर में मशहूर ब्रांड की शुरुआत एक छोटी से दुकान से की थी। देश में इस ब्रांड के 1500 से ज्यादा स्टोर खुले हुए हैं। ब्रांड का टर्नओवर सालाना 1300 करोड़ रुपए है। यही नहीं विदेशों में भी इस ब्रांड का कारोबार फैला हुआ है। दुनियाभर में लोगों की चहेती इस फूडचेन को खास पहचान दिलाने में लाला केदारनाथ अग्रवाल का पूरा हाथ था।

आईपीओ लाने की तैयारी में है कंपनी

बीकानेरवाला जल्द ही अपनी कंपनी का आईपीओ लेकर बाजार में उतरने वाली है। कंपनी का प्लान साल 2030 तक 10 हजार करोड़ रूपये का रेवेन्यू प्राप्त करने और 600 स्टोर खोलने का है। लगातार बढ़ती इस फूड चेन के लिए उसके संस्थापक की मौत सदमे से कम नहीं है।

1955 में बाल्टी में रखकर बेचे रसगुल्ले और नमकीन

लाला केदारनाथ ने साल 1955 में दिल्ली का रुख किया था, वे अपने बड़े भाई सत्यनारायण के साथ दिल्ली आए थे। शुरुआत में उन्होंने तंगहाली में बाल्टी में रखकर रसगुल्ले और कागज की पुड़िया में नमकीन बेचा था। लोगों के मुंह में इसका स्वाद ऐसा लगा कि जल्द ही उन्होंने पराठे वाली गली में दुकान किराए पर ले ली। बीकानेर से कारीगर बुलवा लिए और सबसे पहले दिल्ली वालों को मूंग के हलवे का स्वाद चखाया।

रसगुल्ले बेचने की रखी थी लिमिट

लोग इनके रसगुल्लों के इतने दीवाने थे कि चांदनी चौक के मोती बाजार वाली दुकान में इन्होंने रसगुल्लों की लिमिट तक तय कर दी थी। लिमिट यह थी कि एक व्यक्ति को 10 से ज्यादा रसगुल्ले नहीं बेचे जाएंगे। इनकी दुकान पर ग्राहकों को लाइन में लगकर रसगुल्ले खरीदने पड़ते थे। 1972 में दिल्ली के करोलबाग में दोनों भाइयों ने एक दुकान खरीद ली। जहां से बीकानेरवाला का ब्रांड पूरे देश और दुनिया में फैला।



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