GUWAHATI. कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से थोड़ा दूर कामाख्या में है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है। कामाख्या तीर्थ वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सबसे बड़ा स्थल माना जाता है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के 51 शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। माना जाता है कि यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुंड) स्थित है।
अघोरी और तंत्र साधना का केंद्र
मां कामाख्या का पावन धाम तंत्र-मंत्र की साधना के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता हैं कि इस सिद्धपीठ पर हर व्यक्ति का इच्छा पूरी होती है। यहां पर साधु-संतो और भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मंदिर में जगह-जगह पर तंत्र-मंत्र से संबंधित चीजें मिलती है। अघोरी और तंत्र-मंत्र करने वाले लोग यहीं से इन चीजों को लेकर जाते हैं। यहां पर हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते है।
पीरियड्स के दौरान भी महिलाएं जा सकती हैं मंदिर के अंदर
मान्यता है कि कामाख्या मंदिर में तीन दिन मां का मासिक धर्म चलता है। इसके चलते एक सफेद कपड़ा माता के दरबार में रख दिया जाता है। तीन दिन बाद जब दरबार खुलता है तो कपड़ा लाल रंग में भीगा होता है। फिर इसे मंदिर में आए लोगों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है।
अगर किसी महिला के पीरियड्स चल रहे होते हैं तो उस पर कुछ प्रतिबंध अपने आप लग जाते हैं, उसी में से एक है मंदिर में प्रवेश ना मिलना। इस मंदिर में पीरियड्स में भी महिलाएं जा सकती है। इस मंदिर में पीरियड्स के दौरान भी देवी की पूजा होती है।
पत्थर से निकलती है खून की धारा
ये मंदिर तीन हिस्सों में बना है। इसका पहला हिस्सा सबसे बड़ा है। यहां पर हर व्यक्ति को जाने नहीं मिलता है। जबकि मंदिर के दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते है। यहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता है। इस मंदिर में महीने में एक बार इस पत्थर से खून की धारा निकलती है। इस मंदिर में माता के दर्शन किसी मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि कुंड के रूप में होते हैं। ये कुंड फूलों से ढका जाता है। इस कुंड से हमेशा पानी निकलता रहता है।
अंबूवाची के दिनों में शंख-घंटी नहीं बजाते
हर साल 22 जून 26 जून तक मेला आयोजित होता है, इसे अंबूवाची कहते हैं। अंबूवाची पर्व के दौरान मंदिर के गर्भ गृह में पूजा-अर्जना बंद रहती है। मान्यता है कि इस समय में देवी सती रजस्वला में रहती हैं। इस वजह से मंदिर का पट 22 जून से 24 जून तक बंद रहता है और ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल हो जाता है। मंदिर 25 जून की सुबह 5:30 बजे खुलता है। इसके बाद श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। कामाख्या मां की पूजा से मन को शांति मिलती है। यहां कन्या पूजन करने की भी परंपरा है। ये मंदिर तंत्र का विशेष स्थान है और तांत्रिकों के लिए अंबूवाची का समय सिद्धि प्राप्ति का अनमोल समय होता है। इसलिए यहां देशभर से बड़ी संख्या में तांत्रिक आते हैं। कामाख्या मंदिर में अंबूवाची के समय कुछ विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इस समय नदी में स्नान नहीं करना चाहिए। जमीन या मिट्टी को खोदना नहीं चाहिए और ना ही कोई बीज बोना चाहिए। इन दिनों में यहां शंख और घंटी नहीं बजाते। भक्त अन्न और जमीन के नीचे उगने वाली सब्जी और फलों का त्याग करते हैं। ब्रह्मचार्य का पालन करना बहुत जरूरी है। जितना ज्यादा हो, अपने इष्टदेव के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
शिव और सती को प्रजापति ने यज्ञ में नहीं भेजा था न्योता
बताया जाता है कि भगवान शिव की शादी प्रजापति दक्ष की बेटी देवी सती से हुई थी। लेकिन प्रजापति शिव को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। एक दिन उन्होंने हरिद्वार के कनखल में एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया था। इस आयोजन में उन्होंने सभी को बुलाया था, लेकिन अपनी बेटी सती और शिव को नहीं। लेकिन सती इस विशेष यज्ञ के आयोजन में जाना चाहती थी। उन्होंने ये बात शिव से बताई। शिव ने उन्हें ये कहकर जाने से मना किया कि किसी के भी कार्यक्रम में बिना बुलाए नहीं जाया जाता, लेकिन सती अपनी जिद पर अड़ी रहीं और कहने लगी कि अपने घर के कार्यक्रम में जाने के लिए किसी न्यौते की जरूरत नहीं है। जिद कर सती यज्ञ में चली गईं।
यज्ञ कुंड की अग्नि में अपनी खत्म कर ली अपनी जीवन लीला
यज्ञ में प्रजापति ने शिव के लिए ऐसी बाते कह डाली, जो सती सुन नहीं पाई और उन्होंने यज्ञ कुंड की अग्नि में अपनी जीवन लीला को खत्म कर ली। जब शिव को ये पता चला तो वे भयंकर क्रोधित हो गए। उन्होंने प्रजापति को दंड देने के लिए वीरभद्र से कहा। सती के जलते शरीर को उठाकर क्रोध, शोक और वियोग में वह भटकने लगे। भगवान विष्णु ने उनका मोह दूर कर उन्हें शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के जलते शरीर को खंडित करने के लिए कहा। इस क्रम में सती के शरीर के अलग-अलग अंग कई स्थानों पर गिरे। उन स्थानों पर देवी के शक्तिपीठ स्थापित हो गए। भारत में ऐसे 51 प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं। कुछ शास्त्रों में इसकी संख्या 121 भी बताई गई है।