जानिए उस सांदीपनि आश्रम के बारे में जहां गीता का ज्ञान देने वाले मुरली मनोहर ने ली थी शिक्षा, आज भी मिलते हैं कई प्रमाण

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The Sootr CG
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जानिए उस सांदीपनि आश्रम के बारे में जहां गीता का ज्ञान देने वाले मुरली मनोहर ने ली थी शिक्षा, आज भी मिलते हैं कई प्रमाण

UJJAIN. मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महर्षि सांदीपनि का आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) ऋषि सांदीपनि की वह तपोभूमि है जिसको द्वापर युग के समय से सारी दुनिया में धर्म, अध्यात्म और वैदिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता आ रहा है। महर्षि सांदीपनि का यह आश्रम वही तपोभूमि और शिक्षास्थली है जिसका निर्माण द्वापर युग में महर्षि सांदीपनि ने वेद, पुराण, शास्त्र, धर्म और नैतिक शिक्षा के लिए करवाया था। महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मपुराण तथा अग्निपुराण जैसे महान ग्रंथों में भी सांदीपनि की इस विद्यास्थली या आश्रम का उल्लेख मिलता है।





श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा गृहण की





धर्म, अध्यात्मक और मौक्ष की नगरी उज्जैनी में स्थित सांदीपनि आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) की प्रसिद्धि और पौराणिकता का महत्व इसलिए भी है क्योंकि श्रीकृष्ण, बलराम और उनके मित्र सुदामा ने यहां इसी आश्रम में महर्षि सांदीपनि से वेदों और शास्त्रों का ज्ञान लिया था। इसीलिए आज भी सांदीपनि आश्रम को श्रीकृष्ण की विद्यास्थली के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार श्रीकृष्ण आज से लगभग 5,500 वर्ष पूर्व द्वापर युग में उज्जैनी में स्थित महर्षि सांदीपनि के इसी आश्रम में शिक्षा लेने के लिए आए थे। महर्षि सांदीपनि के आश्रम में श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने 64 दिन में ही पूरी शिक्षा प्राप्त कर ली थी। 5 हजार सालों के बाद भी ये आश्रम यहां प्राचीन गुरुकुल की याद दिलाता है।





गुरू सांदीपनि ने दी थी शिक्षा





गुरू सांदीपनि अवन्ति के कश्यप गोत्र में जन्मे ब्राह्मण थे। वे वेद, धनुर्वेद, शास्त्रों, कलाओं और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे अपने शिष्यों से असीम प्रेम करते थे। फिलहाल आश्रम का प्रबंधन गुरु सांदीपनि कुल के वंशजों के हाथ में है। आज भी यहां भगवान को दिए गए ज्ञान के चित्र दीवारों पर अंकित हैं। किसी चित्र में देवकीनंदन फर्नीचर बनाते तो किसी में गुरु सांदीपनि से शास्त्र का ज्ञान लेते नजर आते हैं। श्रीकृष्ण के भक्त यहां आकर अभिभूत हो जाते हैं। वैष्णव संप्रदाय के भक्तों के लिए ये जगह शीर्ष तीर्थों में शामिल है।





12 साल की आयु में श्रीकृष्ण ने ली थी शिक्षा





12 साल की आयु में यज्ञोपवीत के बाद ही श्रीकृष्ण सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आए थे। भगवान कृष्ण और बलराम ने कम समय में ही विभिन्न कलाओं और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। भागवत, हरिवंश, ब्राह्म पुराण आदि ग्रंथों में सांदीपनि आश्रम में श्रीकृष्ण-बलराम और सुदामा द्वारा 64 विद्याएं और 16 कलाएं सीखने की अवधि मात्र 64 दिन बताई गई है। श्रीकृष्ण ने गुरू सांदीपनि से जो शिक्षा प्राप्त की, वही गीता की ज्ञानगंगा के रूप में सारे संसार में प्रवाहित हुई।





सांदीपनि आश्रम के पास है गोमती कुंड





सांदीपनि आश्रम के पास गोमती कुंड है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने योग विद्या से पवित्र केंद्रों के सारे पानी को गोमती कुंड की ओर मोड़ दिया था ताकि गुरू सांदीपनि को आसानी से पवित्र जल मिलता रहे। भगवान श्रीकष्ण जब पट्टी (स्लेट) पर जो अंक लिखते थे, उन्हें मिटाने के लिए वे जिस गोमती कुंड में जाते थे, वो कुंड आज भी है। अंकों का पतन अर्थात धोने का कारण है कि इस आश्रम के सामने वाले मार्ग को आज अंकपात के नाम से जाना जाता है। आश्रम में भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा की लीलाओं के चिह्न आज भी नजर आते हैं। तीनों की मूर्तियों की पूजा होती है।





भगवान श्रीकृष्ण के हाथों में स्लेट और कलम





यहां भगवान श्रीकृष्ण की बैठी हुई प्रतिमा के दर्शन होते हैं, जबकि बाकी कहीं भी अन्य मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते नजर आते हैं। भगवान श्रीकष्ण बाल रूप में हैं। उनके हाथों में स्लेट और कलम दिखाई देती है। श्रीकृष्ण को गुरु सांदीपनि ने स्लेट पर तीन मंत्र लिखवाए थे। यहां यह परंपरा आज भी चल रही है। अब बच्चों को विद्यारंभ संस्कार में मंत्रों की जगह अ आ इ ई उ ऊ और ए बी सी डी ई तथा 1 2 3 4 5 लिखवाए जाते हैं।



यहीं हुआ था भगवान श्रीकृष्ण और भोलेनाथ का मिलन



भगवान श्रीकृष्ण जब सांदीपनि आश्रम में विद्या प्राप्त करने गए, तो भगवान शिव उनसे मिले और उनकी बाल लीलाओं के दर्शन करने महर्षि के आश्रम आए। यही वो दुर्लभ क्षण था जिसे हरिहर मिलन का रूप दिया गया।





 खड़े हुए नंदी की प्रतिमा





महर्षि सांदीपनि आश्रम में ही भगवान शिव का एक मंदिर भी है जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने के लिए यहां पधारे, तो गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदी खड़े हो गए। यही वजह है कि यहां नंदी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भक्तों को होते हैं। देश के अन्य मंदिरों में नंदी की बैठी हुई प्रतिमाएं नजर आती हैं।





प्राचीन सर्वेश्वर महादेव के भी होते हैं दर्शन





गुरू सांदीपनि ने अपने तपोबल से बिल्वपत्र के माध्यम से एक शिवलिंग प्रकट किया था, जिसे सर्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। गोमती कुंड के पास ही इस मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा है। यहां पढ़ने वाले बच्चों को पाती लिखकर दी जाती है ताकि उनका पढ़ाई में मन लगा रहे और बड़े होकर जब वे किसी साक्षात्कार के लिए जाएं तो यही पाती अपने साथ जेब में रखें तो सफलता मिलती है।





होली पर ग्वाल बाल के रूप में होता है श्रृंगार





सांदीपनि आश्रम में धुलेंडी से रंग पंचमी तक पांच दिवसीय होली उत्सव मनाया जाता है। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ग्वाल बाल के रूप में होली खेलते हैं। पांच दिन तक भगवान का एक सा (ग्वाल बाल) श्रृंगार रहता है। भक्त भगवान के साथ गुलाल होली खेलते हैं। पं. रुपम व्यास के अनुसार आश्रम में आज भी गुरु परंपरा प्रचलित है। पहले गुरु सांदीपनि की पूजा होती है, इसके बाद श्रीकृष्ण की। त्योहारों पर भी गुरु परंपरा प्रधान है इसलिए आश्रम में केवल गुलाल होली खेली जाती है। गुलाल होली शालीनता की प्रतीक है।





प्राचीन चरित्र कोष में गुरु सांदीपनि का उल्लेख





विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और संस्कृतविद् डा. बालकृष्ण शर्मा के अनुसार सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव द्वारा रचित प्राचीन चरित्र कोष में महर्षि सांदीपनि के बारे में बताया गया है। इसमें लिखा है कि श्रीकृष्ण और बलराम ने सांदीपनि से 64 कलाएं सीखी थीं। सांदीपनि का अर्थ है जो स्वयं भी ज्ञान से प्रकाशित हो और दूसरों को भी करे।  





पुस्तक 'प्रथम गुरुकुल' में शिक्षा अवधि का वृतांत





सांदीपनि आश्रम परिवार द्वारा श्रीकृष्ण की शिक्षा यात्रा पर पुस्तक 'प्रथम गुरुकुल' का प्रकाशन किया गया है। इसमें श्रीकृष्ण के उज्जैन में विद्या अध्ययन के लिए आने का उद्देश्य, 64 विद्याएं व 16 कलाओं का वृतांत, सुदामा से मित्रता तथा गुरु दक्षिणा का वृत्तांत शामिल है।





कई ग्रंथ हैं मौजूद





सांदीपनि आश्रम में कई ग्रंथ मौजूद हैं। इनमें स्कंद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म पुराण, लिंग पुराण, गर्ग संहिता, साझक संजीवनी आदि शामिल हैं।



 



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