BHOPAL. मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिले के सालरिया में बने एशिया के पहले गौ अभयारण्य को सरकार ने निजी हाथों में सौंप दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस ड्रीम प्रोजेक्ट का संचालन सरकार पांच साल भी नहीं कर पाई और इसे राजस्थान के पाथमेढ़ा के एनजीओ गौधाम को दे दिया गया। 1400 एकड़ में फैले इस गौ अभयारण्य का संचालन गायों की देखरेख और उनके खान-पान का जिम्मा गौधाम का रहेगा। इस गौ अभयारण्य में करीब साढ़े 3 हजार गायें हैं। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार गौधाम को पचास रुपए प्रति गाय के हिसाब से साल में करीब साढ़े 6 करोड़ का फंड देगी। इस संबंध में गौ संवर्धन बोर्ड और गौधाम के बीच एमओयू साइन हो गया है और इस गौ अभयारण्य को गौधाम के हवाले कर दिया गया है। गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद कहते हैं कि गौधाम के पास लाखों गायों को पालने का अनुभव है और संत महंत गौमाता की सेवा के रूप में इन प्रकल्पों का संचालन करते हैं।
नो प्रोफिट-नो लॉस पर काम करेगा गौधाम
राजस्थान के पथमेढ़ा में संचालित गौधाम गौ अभयारण्य को नो प्रॉफिट-नो लॉस के सिद्धांत पर काम करेगा। गौधाम का संचालन संत-महंतों के हाथों में है। गौधाम में दो लाख से ज्यादा गायें हैं जिनकी देखभाल संतों के हाथों में है। प्रदेश सरकार के अनुदान पर गौ अभयारण्य का पूरा संचालन होगा जिसमें गायों के लिए खुराक भी शामिल है। प्रदेश सरकार अन्य गौशालाओं को गायों के घास-भूसे के लिए रोजाना बीस रुपए प्रति गाय के हिसाब से फंड देती है। गौधाम यहां पर गोबर और गौ मूत्र के प्रोडक्ट भी तैयार करेगी जिसके विक्रय मिलने वाले फंड को गायों की बेहतरी के लिए खर्च किया जाएगा। इसकी बैलेंस शीट हर साल सरकार के सामने रखी जाएगी।
विवादों पर विराम लगाने की कवायद
मध्यप्रदेश सरकार की गौ अभ्यारण्य को निजी हाथों में सौंपने के पीछे मंशा है इसको लेकर होने वाले विवादों पर विराम लग सके। कभी गायों की मौत तो कभी उनके घटिया स्तर के घास-भूसे को लेकर विवाद उठते रहे हैं। ये गौ अभ्यारण्य अव्यवस्थाओं के कारण कई बार चर्चाओं में आया है। यहां तक कि गौपालक और गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद भी इस पर सवाल खड़े करते रहे हैं। इन विवादों से बचने के लिए इसका पूरा संचालन गौधाम को सौंप दिया गया है।
ऐसा है गौ अभयारण्य
मध्यप्रदेश के सालरिया में बने गौ अभयारण्य की नींव 2017 में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रखी थी। इसको शुरू करने के पीछे मकसद साफ था कि गायों के पालने के साथ ही गोबर और गोमूत्र प्रोडक्ट तैयार करने का मॉडल पेश करना था। सरकार का ये मकसद तो पूरा हुआ नहीं, उल्टे इस पर सवाल उठने लगे। 1400 एकड़ के इस गौ अभयारण्य में 12 हजार गायों को रखने की क्षमता है लेकिन यहां पर महज साढ़े तीन हजार गायें ही हैं। सड़कों पर घूमते बेसहारा गौवंश को लेकर भी इस पर सवाल उठते रहे हैं। अभ्यारण्य में 24 शेड हैं। इनमें 12 हजार गायें रखी जा सकती हैं। 32 करोड़ की लागत से बने अभयारण्य में कृषक प्रशिक्षण केंद्र, गौ अनुसंधान केंद्र, गोबर गैस प्लांट और सोलर प्लांट भी है। लेकिन न तो यहां कोई अनुसंधान हो रहा है और न ही काऊ प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं।
( अरुण तिवारी और मनीष कुमार मारू की रिपोर्ट )