DELHI: SC का आदेश- 30 जून को फ्लोर टेस्ट होगा, हम इसे नहीं रोक रहे; कोर्ट में शिंदे के वकील की दलील- हमारे पास बहुमत है

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Atul Tiwari
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DELHI: SC का आदेश- 30 जून को फ्लोर टेस्ट होगा, हम इसे नहीं रोक रहे; कोर्ट में शिंदे के वकील की दलील- हमारे पास बहुमत है

NEW DELHI/MUMBAI. महाराष्ट्र के सियासी संकट पर 22 जून से शुरू हुआ घमासान लगातार जारी है। महाराष्ट्र के राज्यपाल ने 30 जून को शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। शिवसेना इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंची , जहां फ्लोर टेस्ट पर वकीलों ने 3 घंटे तक दलीलें पेश कीं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 9 बजे फैसला सुनाते हुए कहा कि फ्लोर टेस्ट 30 जून को ही होगा, हम इसे रोक नहीं रहे। 30 जून को 11 बजे विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होगा।







— ANI (@ANI) June 29, 2022





शिवसेना की तरफ से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी कोर्ट में पेश हुए। वहीं, शिंदे गुट की तरफ से पेश हुए एडवोकेट नीरज किशन कौल ने पैरवी की। एडवोकेट मनिंदर सिंह कौल की दलीलों का समर्थन करने खड़े हुए। आखिर में राज्यपाल की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखीं।





ऐसे हुई कोर्ट रूम में बहस...





अभिषेक मनु सिंघवी: जो चिट्ठी हमें मिली है, उसमें लिखा गया है कि विपक्ष के नेता ने राज्यपाल से 28 जून को मुलाकात की। आज सुबह ही हमें कल फ्लोर टेस्ट कराने की सूचना दी गई है। जबकि, हमारे दो विधायक कोविड पॉजिटिव हैं। एक विधायक विदेश में है। फ्लोर टेस्ट के लिए सुपर सोनिक स्पीड दिखाई गई है। फ्लोर टेस्ट निर्धारित करता है कि कौन सी सरकार लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। बहुमत का पता लगाने के लिए फ्लोर टेस्ट किया जाता है। स्पीकर के फैसले से पहले वोटिंग नहीं होनी चाहिए। उनके फैसले के बाद सदन सदस्यों की संख्या बदलेगी।





जस्टिस कांत: क्या फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कोई न्यूनतम समय सीमा तय है? क्या नया फ्लोर टेस्ट कराने में कोई संवैधानिक बाधा है?





अभिषेक मनु सिंघवी: हां, सामान्य तौर पर 6 महीने के अन्तराल से फ्लोर टेस्ट नहीं किया जाता। राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट के लिए मंत्रिमंडल से सलाह नहीं ली। जल्दबाजी में फैसला किया है। जब कोर्ट ने सुनवाई 11 जुलाई के लिए टाली थी, तो इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। 16 बागी विधायकों को 21 जून को ही अयोग्य घोषित किया जा चुका है। ऐसे में इनके वोट से बहुमत का फैसला नहीं किया जा सकता।





जस्टिस कांत: अगर स्पीकर ने यह फैसला लिया होता तो स्थिति अलग होती। डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास का मसला पेंडिंग है, इसलिए अयोग्यता के मसले पर सुनवाई टाली गई थी।





जस्टिस कांत: हमें राज्यपाल के फैसले पर संदेह क्यों करना चाहिए?





इसके बाद सिंघवी ने कोर्ट में 34 बागी विधायकों को दिया गया गवर्नर का लेटर पढ़कर सुनाया।





जस्टिस कांत: क्या आपको इस बात का संदेह है कि आपकी पार्टी के 34 विधायकों ने यह लेटर साइन नहीं किया?





अभिषेक मनु सिंघवी: इस लेटर का कोई वैरिफिकेशन नहीं है। गवर्नर ने एक हफ्ते तक लेटर को अपने पास रखा। उन्होंने उसे तभी जारी किया, जब विपक्ष के नेता ने उनसे मुलाकात की। राज्यपाल बीमार थे। अस्पताल से बाहर आने के 2 दिन के भीतर विपक्ष के नेता से मिले और फ्लोर टेस्ट का फैसला ले लिया।





जस्टिस कांत: मान लीजिए कि एक सरकार को पता है कि उन्होंने सदन का बहुमत खो दिया और स्पीकर को समर्थन वापस लेने वालों को अयोग्यता जारी करने के लिए कहा जाता है। फिर उस समय राज्यपाल को शक्ति परीक्षण बुलाने का इंतजार करना चाहिए या वह स्वतंत्र रूप से अनुच्छेद 174 के तहत निर्णय ले सकता है।





अभिषेक मनु सिंघवी: क्या राज्यपाल 11 जुलाई तक इंतजार नहीं कर सकते। 11 जुलाई को जब तक अदालत इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर लेती, तब तक कोई आसमान नहीं गिरेगा। अगर कल फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ तो क्या आसमान गिर जाएगा?





जस्टिस कांत: क्या यह लोग विपक्ष की सरकार बनवाना चाहते हैं?





अभिषेक मनु सिंघवी: जी, चिट्ठी में उन्होंने यही लिखा है।





अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कुछ पुराने फैसलों को पढ़ना शुरू किया।





अभिषेक मनु सिंघवी: राज्यपाल को अनुच्छेद 361 के तहत अदालती कार्रवाई से अलग रहने की छूट दी गई है, लेकिन यह कोर्ट को राज्यपाल के आदेश की समीक्षा करने से नहीं रोकता है। स्पीकर को विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय लेने से नहीं रोका जाना चाहिए। साथ ही इस बात का फैसला होने तक फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए।





नीरज किशन कौल: यहां मामला कोर्ट की तरफ से स्पीकर के फैसले पर रोक लगाने का नहीं है। जब आपके अस्तित्व पर ही सवाल हों, तो आप इस मामले में कैसे फैसला कर सकते हैं। यह सब जानते हैं कि फ्लोर टेस्ट में देरी नहीं की जानी चाहिए। केवल इस आधार पर प्रोसेस को नहीं रोका जाना चाहिए कि कितने MLA ने इस्तीफा दिया या 10वां अनुच्छेद क्या कहता है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि ये दोनों अलग-अलग मामले हैं।





जस्टिस कांत: दूसरे पक्ष का इस मामले कुछ और ही कहना है। उनका कहना है कि विधायकों की सदस्यता के मामले को रोका नहीं गया है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ऐसा करने से रोका है।





नीरज किशन कौल: जब हम कोर्ट पहुंचे, उस समय बहुमत हमारे साथ था। हमने स्पीकर को भी लिखा कि आपके पास सदन में बहुमत नहीं है। 24 जून को स्पीकर ने हमे ही अयोग्य घोषित करने का नोटिस जारी कर दिया।





जस्टिस कांत: इन दलीलों से यही संकेत मिलता है कि सबसे पहले हमें स्पीकर की पात्रता तय करनी चाहिए।





नीरज किशन कौल: सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि फ्लोर टेस्ट के मसले पर अयोग्यता के इश्यू से कोई फर्क नहीं पड़ता। लोकतंत्र में फ्लोर टेस्ट सबसे हेल्दी चीज है। सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि अगर कोई मुख्यमंत्री फ्लोर टेस्ट से हिचकता है, तो पहली नजर में ऐसा लगता है कि उसने सदन का विश्वास खो दिया है।





जस्टिस कांत: हमने अभिषेक मनु सिंघवी से एक काल्पनिक सवाल पूछा था। अब हम आपसे पूछना चाहते हैं कि फ्लोर टेस्ट में शामिल होने की पात्रता किस-किसको है?





नीरज किशन कौल: फ्लोर टेस्ट में जितनी देर की जाएगी, संविधान को उतना ही नुकसान होगा। अगर आप हॉर्स ट्रेडिंग रोकना चाहते हैं, तो इसका सबसे अच्छा तरीका फ्लोर टेस्ट ही है। फिर आप इससे भाग क्यों रहे हैं? जहां तक गवर्नर का सवाल है. तो वे अपने विवेक से फैसला लेते हैं। फ्लोर टेस्ट कराना भी उन्हीं का फैसला है। इसमें शक नहीं कि कोर्ट राज्यपाल के आदेश की समीक्षा कर सकता है, लेकिन क्या इस मामले में राज्यपाल का फैसला सचमुच इतना गलत है कि उसमें दखल दिया जाए?



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