MUMBAI. महाराष्ट्र में मौजूदा उद्धव सरकार (Uddhav Govty) पर संकट के बादल फिलहाल तो टलते नहीं दिख रहे। इस बीच, शिवसेना सांसद संजय राउत (Shivsena MP Sanjay Raut) ने बागी विधायकों से सुलह की कोशिश में बयान जारी किया। राउत ने कहा कि विधायकों को गुवाहाटी से संवाद नहीं करना चाहिए, वे वापस मुंबई आएं और सीएम से इस सब पर चर्चा करें। हम सभी विधायकों की इच्छा होने पर महाविकास अघाड़ी सरकार से बाहर निकलने पर विचार करने के लिए तैयार हैं। राउत ने ये भी दावा किया कि गुवाहाटी में मौजूद 21 विधायक हमारे संपर्क में हैं। जब वे वापस लौटेंगे तो वे पार्टी के साथ होंगे।
‘लौटकर तो इधर ही आना है...’
राउत ने ये भी कहा कि महाराष्ट्र के सत्ता संकट में केंद्रीय जांच एजेंसियों का पूरा योगदान रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) का इस्तेमाल किया जा रहा है। केंद्रीय जांच एजेंसियों की मदद से महाराष्ट्र में सत्ता संकट पैदा किया गया है। ऐसा पहले भी हुआ है। बीजेपी, ईडी या सीबीआई द्वारा मामला दर्ज करा सकती है, उन्हें जेल में डाल देगी और क्या करेगी। आज शिवसेना के जो भी विधायक इधर-उधर घूम रहे हैं, उन्हें लौटकर तो मुंबई ही आना है। वे महाराष्ट्र आएंगे, उनका घूमना फिरना मुश्किल हो जाएगा।
चिट्ठी में दिल की बात
बागी विधायकों ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पहली बार चिट्ठी लिखी। इसमें विधायकों ने उन पर कई बड़े आरोप लगाए। फिर चाहे सीएम का अपनी ही पार्टी के विधायकों से मुलाकात ना करने का मुद्दा हो या उन्हें अयोध्या जाने से रोकने का। ये चिट्ठी एकनाथ शिंदे ने ट्विटर पर साझा की है। पत्र में विधायकों ने उद्धव पर कांग्रेस और राकांपा के नेताओं को अपने विधायकों पर तरजीह देने की शिकायत भी की है।
विधायकों की चिट्ठी में क्या कहा गया?
चिट्ठी के नीचे औरंगाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक संजय शिरसाट का नाम लिखा है। साफ है कि सभी विधायकों की ओर से चिट्ठी लिखने का काम शिरसाट ने ही किया है। इसमें उद्धव ठाकरे के 22 जून की रात मुख्यमंत्री आवास खाली करने के बाद हुए घटनाक्रम का जिक्र करते हुए कहा गया- कल वर्षा बंगले के दरवाजे सही मायने में सर्वसामान्य के लिए खुले। बंगले पर जो भीड़ हुई, उसे देखकर दिल खुश हो गया। यह दरवाजे पिछले डेढ़ साल से शिवसेना के विधायक यानी हमारे लिए भी बंद थे। विधायक के तौर पर उस बंगले में प्रवेश करने के लिए हमें आपके आजू-बाजू में रहने वाले (आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल) लोगों की चिरौरी करनी पड़ती थी, जो कभी चुनाव लड़कर चुनकर नहीं आए, बल्कि विधानपरिषद और राज्यसभा में हमारे जैसे लोगों के कंधे पर चढ़कर पहुंचे।
ही आहे आमदारांची भावना... pic.twitter.com/U6FxBzp1QG
— Eknath Shinde - एकनाथ शिंदे (@mieknathshinde) June 23, 2022
ऑटो ड्राइवर से राजनीति और शिखर तक का सफर...
शिंदे का जन्म 9 फरवरी 1964 को हुआ था। वे महाराष्ट्र के सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका के रहने वाले हैं, लेकिन उनकी कर्मभूमि ठाणे रही। शुरुआत में शिंदे ठाणे में ऑटो चलाते थे। शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दीघे से प्रभावित होकर वे शिवसेना में आ गए। दीघे ही शिंदे के राजनीतिक गुरु थे। शिंदे पहले शिवसेना के शाखा प्रमुख और फिर ठाणे म्युनिसिपल के कॉर्पोरेटर चुने गए।
2 जून 2000 को शिंदे अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा के साथ सतारा गए थे। बोटिंग के दौरान एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखों के सामने डूब गए। उस वक्त शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत 14 साल का था। एक इंटरव्यू में दर्दनाक घटना को याद करते हुए शिंदे ने कहा था, 'ये मेरी जिंदगी का सबसे काला दिन था। मैं पूरी तरह टूट चुका था। मैंने सब कुछ छोड़ने का फैसला किया। राजनीति भी।' बेटा-बेटी की मौत के बाद जब शिंदे ने राजनीति छोड़ने का फैसला किया, तो दीघे ही उन्हें वापस लाए थे।
दीघे की अचानक मौत, शिंदे ने संभाली विरासत
26 अगस्त 2001 को एक हादसे में दीघे की मौत हो गई। उनकी मौत को आज भी कई लोग हत्या मानते हैं। हाल ही में दीघे की मौत पर मराठी में धर्मवीर नाम से एक फिल्म भी आई है। दीघे धर्मवीर के नाम से भी मशहूर थे। दीघे के जाने के बाद शिवसेना को ठाणे में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए एक चेहरे की जरूरत थी। ठाकरे परिवार ठाणे को यूं ही नहीं छोड़ सकता था। ठाणे महाराष्ट्र का एक बड़ा जिला है। शिंदे शुरुआत से ही दीघे के साथ जुड़े हुए थे, लिहाजा उनकी राजनीतिक विरासत शिंदे को ही मिली।
शिंदे भी अपने गुरू की तरह जनता के नेता रहे। साल 2004 में पहली दफा विधायक बने। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देखते ही देखते ठाणे में ऐसा वर्चस्व बना लिया कि वहां की राजनीति का केंद्र बन गए। 2009, 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव में भी जीत का सेहरा उनके माथे बंधा। 2014 में नेता प्रतिपक्ष भी बने। मंत्री पद पर रहते हुए शिंदे के पास हमेशा अहम विभाग रहे। 2014 में फडणवीस सरकार में PWD मंत्री रहे। इसके बाद 2019 में शिंदे को सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और नगर विकास मंत्रालय मिला। महाराष्ट्र में आमतौर पर मुख्यमंत्री के पास ही ये विभाग होता है।
शिंदे की बगावत के पीछे कौन?
शिंदे ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए बेटे श्रीकांत को भी मैदान में उतार दिया। पेशे से डॉक्टर श्रीकांत शिंदे कल्याण लोकसभा सीट से सांसद हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि शिंदे के बागी होने के पीछे उनके बेटे श्रीकांत का दबाव है। श्रीकांत का कहना है कि बीजेपी के साथ उनकी राजनीति का उज्ज्वल भविष्य है। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को अंदरखाने हमेशा ताकतवर बनाने का ही काम किया। फडणवीस जानते थे कि उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने के लिए शिंदे ही सबसे मजबूत आदमी हैं।
बीजेपी ने कई मौकों पर कहा कि शिंदे को साइडलाइन किया जा रहा है। बीजेपी ने ही शिंदे को भी बार-बार अहसास कराया कि शिवसेना में वो महत्व नहीं दिया जा रहा, जिसके वो हकदार हैं। जब चारों ओर माहौल बन गया कि शिंदे ठाकरे से नाराज हैं और कभी भी छोड़कर जा सकते हैं तो ठाकरे ने भी शिंदे से दूरी बना ली।