माकन और खड़गे ने सोनिया को रिपोर्ट सौंपी, गहलोत समर्थक दो मंत्रियों, RTDC चेयरमैन को कारण बताओ नोटिस, नहीं थम रहा सियासी संकट

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Vivek Sharma
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माकन और खड़गे ने सोनिया को रिपोर्ट सौंपी, गहलोत समर्थक दो मंत्रियों, RTDC चेयरमैन को कारण बताओ नोटिस, नहीं थम रहा सियासी संकट

JAIPUR. राजस्थान के सीएम पद के लिए मचे घमासान के बीच अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी रिपोर्ट पार्टी हाईकमान को सौंप दी है। राजस्थान में सीएम पद को लेकर जारी सियासी घमासान फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस नेतृत्व भी डैमेज कंट्रोल भी जुटा हुआ है इसी कड़ी में अब अब कांग्रेस आलाकमान ने बगावत व कांग्रेस विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने के मामले में बड़ी कार्रवाई की है। हाईकमान ने कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल, सचेतक महेश जोशी और RTDC चेयरमैन धर्मेंद्र सिंह राठौड़ को कांग्रेस अनुशासन समिति ने मंगलवार रात को नोटिस जारी किए हैं। तीनों नेताओं को अनुशासनहीनता का दोषी माना है और 10 दिन में जवाब मांगा है। अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे की रिपोर्ट में इन नेताओं को दोषी माना गया था। इस कार्रवाई के बाद राजनीति और गर्मा गई है। बताया जा रहा है कई विधायक कदम से नाराज हैं भले ही खुलकर नाराजगी नहीं जता पा रहे हों लेकिन अंदरखाने की बात यह है कि वे नाराज हैं जिसकी प्रतिक्रिया जल्द देखने को मिल सकती है।





मीटिंग किए बगैर वापस लौटे पर्वेक्षक





सीएम  सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के समर्थक आमने-सामने हैं। हालांकि अभी भी अशोक गहलोत का पलड़ा भारी है। बड़ी संख्या में उनके साथ विधायक हैं लेकिन सचिन पायलट के समर्थक भी पूरा जोर लगा रहे है। राजस्थान का सियासी सकंट जयपुर से निकलकर दिल्ली आलाकमान तक पहुंचा चुका है। इस संकट से निपटने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने प्रभारी अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को पर्वेक्षक बनाकर विधायकों से रायशुमारी करने के लिए जयपुर भेजा था लेकिन गहलोत समर्थकों ने उन्हें किसी तरह का भाव नहीं दिया। दोनों पर्वेक्षक मीटिंग किए बगैर वापस लौट गए। अब उन्होंने सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंप दी है।  





अशोक गहलोत पर सीधे कोई आरोप नहीं





सूत्रों के हवाले से पता चला है कि अनुशासनहीनता के मामले में मंत्री शांति धारीवाल के घर विधायकों की बैठक बुलाने वाले मंत्रियों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है। कांग्रेस विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने के मामले में कांग्रेस हाईकमान ने एक्शन लेते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सूत्रों के मुताबिक, नौ पन्नों की इस रिपोर्ट में अशोक गहलोत पर सीधे कोई आरोप नहीं है, लेकिन गहलोत के करीबियों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है। दरअसल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में उतरने के ऐलान के बाद राजस्थान में सीएम को बदलने को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं। इस मुद्दे को लेकर रविवार को मुख्यमंत्री आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक भी बुलाई गई थी। 





गहलोत के करीबी शांति धारीवाल के हुई थी बैठक





कांग्रेस ने राजस्थान प्रभारी अजय माकन और पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे को जयपुर भेजा था। विधायक दल की बैठक से पहले ही गहलोत के करीबी शांति धारीवाल के घर पर विधायकों की बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद गहलोत समर्थक कई विधायक इस्तीफा देने के लिए स्पीकर सीपी जोशी के निवास पर पहुंचे थे। मंत्री शांति धारीवाल के घर हुई इस मीटिंग के कारण विधायक दल की बैठक रद्द कर दी गई थी। इसके बाद मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन भी दिल्ली लौट गए थे।





राजस्थान की ये अदावत नई नहीं, राजेश पायलट और गहलोत में भी नहीं जमती थी





राजस्थान में इस समय कुर्सी का खेल चल रहा है। अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, इधर अगले सीएम की चर्चा पर पार्टी में फूट पड़ गई। हालांकि ये लड़ाई नई नहीं हैं। इससे पहले भी पायलट और गहलोत में अदावत देखी गई। बात 1993 की है जब सचिन पायलट के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट एवं अशोक गहलोत के बीच तल्खियां देखने को मिली थीं। दोनों के बीच काफी मतभेद रहा। आज भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट की कभी जमी नहीं है। दो साल पहले तब पायलट ने अपने तेवर दिखाए थे, अब 'जादूगर' का खेल पूरा राजस्थान देख रहा था।





 कड़वाहट खुलकर सामने आई





यही नहीं, सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट (Rajesh Pilot) और अशोक गहलोत में भी कभी दोस्ती नहीं रही। राजेश पायलट को जहां मौका मिलता वह गहलोत को सुनाने से नहीं चूकते। दरअसल, गहलोत और राजेश पायलट ने एक साथ ही राजनीति में कदम रखा था। दोनों की राजीव गांधी से अच्छी बनती थी लेकिन दोनों में छत्तीस का आंकड़ा भी था। 1993 में जोधपुर में ऐसा ही कुछ हुआ जिससे गहलोत और पायलट के बीच कड़वाहट खुलकर सामने आ गई थी। 





केंद्र में मंत्री थे राजेश पायलट 





तब राजेश पायलट केंद्र में संचार राज्य मंत्री हुआ करते थे। उन्हें जोधपुर में मुख्य डाकघर के एक भवन का उद्घाटन करना था। उस समय अशोक गहलोत जोधपुर से सांसद थे और पार्टी भी दोनों की एक ही कांग्रेस थी, फिर भी गहलोत को कार्यक्रम का न्योता नहीं भेजा गया था। गहलोत को न देख कार्यक्रम में पहुंचे उनके समर्थक नाराज हो गए। उन्होंने सीधे पायलट से ही पूछ लिया कि हमारे सांसद कहां हैं, कहीं दिख नहीं रहे हैं। इस पर राजेश पायलट ने कटाक्ष किया था कि यहीं कहीं होंगे बेचारे गहलोत। दोनों एक राज्य से थे और तमाम समानताओं के बाद भी शायद एक दूसरे की सफलता खटकती थी। 1993 में ही गहलोत से मंत्री पद ले लिया गया था और पायलट का जलवा जारी था। दोनों के बीच मतभेद के कई किस्से आज भी राजनीति की गलियारों में सुने जा सकते हैं।





गहलोत को मिलता रहा वफादारी का इनाम





वहीं गांधी परिवार के वफादार होने का गहलोत को हमेशा इनाम मिलता रहा है। वह इंदिरा गांधी की सरकार से लेकर राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी के समय में सत्ता का स्वाद चखते रहे। गांधी परिवार उन पर आंख मूंदकर भरोसा करता आया है लेकिन 1993 का दौर ऐसा था जब सोनिया गांधी सक्रिय नहीं थीं और गहलोत हाशिए पर चले गए थे। दूसरी तरफ पायलट का कद बढ़ रहा था। हालांकि गहलोत ने मौका मिलते ही खेल दिखाया और आगे चलकर राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए। 1998 के बाद तो जैसे गहलोत की लॉटरी लग गई। सोनिया गांधी सक्रिय हुईं और गहलोत का कद बढ़ने लगा। उधर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गहलोत सोनिया गांधी के साथ खड़े रहे लेकिन राजेश पायलट ने जितेंद्र प्रसाद का साथ दिया था। शायद इसी का इनाम देते हुए पार्टी हाईकमान ने गहलोत को राजस्थान की कमान सौंप दी।



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