NEW DELHI. सेम सैक्स मैरिज यानी समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट बड़ा और अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने भारत में ऐसे विवाह को मान्यता देने और स्पेशल मैरिज एक्ट (एसएमए) के प्रावधानों में बदलाव करने से इनकार कर दिया है। हालांकि राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने को आदेश जारी किए हैं। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच में शामिल सभी जज इस बात पर सहमत थे कि समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। बेंच ने बहुमत से यह भी कहा कि विधायिका (संसद ) को समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर फैसला करना चाहिए।
फैसले के मायने
सीजेआई ने अपने फैसले में केंद्र और पुलिस तमाम ऐसे निर्देश दिए, जिनसे आने वाले समय में समलैंगिक जोड़ों के साथ होने वाला भेदभाव समाप्त होगा और आने वाले समय में उन्हें तमाम बड़े अधिकार मिल सकते हैं।
सीजेआई के 6 अहम निर्देश
1 - केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के अधिकारों को सुनिश्चित लिए उचित कदम उठाएं।
2 - केंद्र सरकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाए।
3 - कमेटी राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने पर फैसला लेगी।
4 - कमेटी इस पर भी विचार करेगी कि क्या चिकित्सा निर्णय, जेल यात्रा, शव प्राप्त करने के अधिकार के तहत परिवार माना जा सकता है।
5- कमेटी संयुक्त बैंक खाते के लिए नामांकन करने, वित्तीय लाभ, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकार सुनिश्चित करने के मसलों पर विचार करेगी।
6 - सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि समलैंगिक समुदाय के लिए सेफ हाउस, डॉक्टर के ट्रीटमेंट, एक हेल्पलाइन फोन नंबर जिस पर वो अपनी शिकायत कर सकें, सामाजिक भेदभाव न हो, पुलिस उन्हे परेशान न करें, अगर वे घर न जाएं तो उन्हें जबरदस्ती घर ना भेजे।
सीजेआई ने कहा-बच्चे को गोद लेने का अधिकार, बाकी जस्टिस बोले- नहीं
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने का अधिकार है, हालांकि जस्टिस एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने इस पर असहमति जताई और सीएआरए नियमों को बरकरार रखा, जिसमें समलैंगिक और अविवाहित जोड़ों को शामिल नहीं किया गया है।
टिप्पणी : अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार
सीजेआई ने कहा, जीवन साथी चुनना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साथी चुनने और उस साथी के साथ जीवन जीने की क्षमता जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आती है।जीवन के अधिकार के अंतर्गत जीवन साथी चुनने का अधिकार है।एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को साथी चुनने का अधिकार है।
सेम सेक्स मैरिज पर कानून बनाना संसद का काम
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी। जस्टिस हिमा कोहली को छोड़कर फैसला चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा ने बारी-बारी से फैसला सुनाया। सीजेआई ने सबसे पहले कहा कि इस मामले में 4 जजमेंट हैं। एक जजमेंट मेरी तरफ से है, एक जस्टिस कौल, एक जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा की तरफ से है। इसमें से एक डिग्री सहमति की है और एक डिग्री असहमति की है कि हमें किस हद तक जाना होगा।
बड़ी बातें
- चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है। उसी तरह ट्रांसजेंडर पुरुष को महिला से शादी करने का अधिकार है। हर व्यक्ति को अपने पार्टनर को चुनने का अधिकार है। वो अच्छा-बुरा समझ सकते हैं।
- आर्टिकल 15 सेक्स ओरिएंटेशन के बारे में भी बताता है। हम सभी एक कॉम्प्लेक्स सोसाइटी में रहते हैं। एक-दूसरे के प्रति प्यार और सहयोग ही हमें मनुष्य बनाता है। हमें इसे देखना होगा। हमें संविधान के भाग 4 को भी समझना होगा।
- अगर मौजूदा याचिकाओं को लेकर कोर्ट तय करता है कि स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 असंवैधानिक है, क्योंकि ये सबको अपने साथ लेकर नहीं चलता। इस सेक्शन को हटाना होगा या इसमें नई बातें जोड़नी होंगी।
- अगर स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया जाता है तो ये देश को आजादी से पहले के समय में ले जाएगा। अगर कोर्ट दूसरी अप्रोच अपनाता है और इसमें नई बातें जोड़ता है तो वह विधानपालिका का काम करेगा।
- एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति अगर हेट्रोसेक्शुअल (विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण) रिलेशनशिप में है तो कानून ऐसे विवाह को मान्यता देता है। क्योंकि एक ट्रांसजेंडर इंसान, हेट्रोसेक्शुअल रिलेशनशिप में हो सकता है, इसलिए ट्रांसमैन और ट्रांसवुमन की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर किया जा सकता है।