भोपाल. अयोध्या में ब्राह्मण संगोष्ठी से यूपी के लिए मिशन-2022 की शुरुआत करने वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने भी अंत-पंत जाति कार्ड से ही चुनाव अभियान शुरू किया। वोटर और सियासी हलकों में चर्चा है कि क्या बसपा भी भाजपा और अन्य सियासी दलों की तर्ज पर नरम हिन्दुत्व के रास्ते पर आ गई है? हालांकि, धर्म और जाति भारतीय राजनीति की कड़वी सच्चाई भी हैं। ऐसे में बीएसपी अलग राह कैसे पकड़ सकती थी? सवाल कई हैं। क्या 2022 बसपा के लिए आसान राह साबित होने वाली है? क्या मायावती अब भी योगी आदित्यनाथ के विकल्प के तौर पर खुद को साबित कर सकेंगी? इन्हीं के जवाब तलाशती चक्रेश की रिपोर्ट...
एक ही सेनापति: सतीश चंद्र मिश्रा
कभी तिलक, तराजू और तलवार जैसा विवादित नारा देने वाली मायावती ने 2007 की तरह इस बार फिर सोशल इंजीनियरिंग की कवायद शुरू की है। उस समय भी बसपा के पास सतीश चंद्र मिश्रा के रूप में ब्राह्मण चेहरा था। तुनक मिजाज बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ 13 साल से भी ज्यादा समय तक मिश्रा का साथ रहना भी सुखद संयोग माना जा सकता है। हालांकि, बसपा के पास मिश्रा के बाद कोई दूसरा बड़ा सवर्ण चेहरा फिलहाल नहीं है। ऐसे में बसपा की चुनौती सवर्ण वोट जुटाने से ज्यादा सवर्ण चेहरों को अपने मंच पर दिखाने की भी है।
घटते वोट प्रतिशत ने बढ़ाई चिंता
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा के वोट बैंक में 2007 की तुलना में 8.2% की गिरावट आई। 2012 में बसपा का वोट बैंक 25.95% रहा था। 2017 में 22.23% वोट के साथ सिर्फ 19 सीटें ही आई थीं। बसपा ने अब वोट प्रतिशत बढ़ाने के मद्देनजर ही उत्तरप्रदेश के 75 जिलों में ब्राह्मण संगोष्ठियां करने का फैसला लिया है। ऐसे में बसपा के वरिष्ठ नेता अयोध्या में रामलला के दर्शन करने की तरह ही अन्य मंदिरों में भी दर्शन कर कार्यक्रम शुरू करें तो हैरत नहीं। अब बसपा का यह नया दांव कितना असरदार होगा, यह तो मिशन-2022 के नतीजे ही बताएंगे।
क्या रावण चुनौती बनेंगे?
कभी बसपा के कार्यकर्ता रह चुके चंद्रशेखर रावण भी हाल के सालों में दलित राजनीति का चेहरा बनकर उभरे हैं। वे मायावती को बुआजी कहकर बुलाते हैं, मगर जब भी मौका मिला उन्होंने खुद को मायावती के विकल्प के रूप में ही पेश किया है। रावण को दलित राजनीति के उग्र चेहरे के रूप में भी देखा जा सकता है और इन दिनों युवा वर्ग में भी उनकी पकड़ कहीं बेहतर बताई जाती है। ऐसे में रावण किस राह जाएंगे, इस पर भी बसपा का भविष्य निर्भर कर सकता है।
बड़ी चुनौती: नाराज बहन और गुस्सैल बुआ
बसपा की राह में बड़ी चुनौती बसपा प्रमुख मायावती का मूड भी है। उत्तरप्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती का अपना वोट बैंक है, इसमें कोई शक नहीं। मगर बीजेपी, सपा और कांग्रेस के अलावा छोटे दलों की मौजूदगी भी यूपी का सच है। वे करीब-करीब सभी दलों के साथ मिलकर सरकार में रह चुकी हैं। बीजेपी के लालजी टंडन को भाई और अखिलेश यादव को भतीजा बना चुकी हैं, मगर दोनों के साथ ही रिश्ते लंबे नहीं चल सके। राजनीतिक हलकों में उनके मूड और गुस्से की चर्चा हमेशा ही रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि बहनजी के साथ कौन सा दल मंच साझा करेगा? और कब तक, ये कहा नहीं जा सकता!