BHOPAL. नर्मदा नदी आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर को लेकर वरिष्ट स्तंभ लेखक स्वामी नाथन अय्यर ने बड़ा खुलासा किया है। स्वामीनाथन ने मेधा पाटकर पर नर्मदा बचाओ आंदोलन को लेकर मानवतावादियों को मूर्ख बनाने की बात कही हैं। अपने एक लेख में इस बात का खुलासा करते हुए उन्होंने साफ लिखा है कि नर्मदा परियोजना को लेकर मेधा पाटकर पूरी तरह से गलत थी। साथ ही खुले दिल से स्वीकार किया है मेधा पाटकर के उस झूठ और उनके नर्मदा बचाओ आंदोलन के कारण मध्यप्रदेश को दस साल पीछे कर दिया। किसान नर्मदा के पानी से मिलने वाला फायदा उठाने से वंचित रह गएं।
वरिष्ठ लेखक एवं स्तंभकार स्वामीनाथन अय्यर ने एक अंग्रेजी अखबार में छपे एक लेख में यह खुलासा किया है। अय्यर लंबे समय तक मेधा पाटकर के साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में लिखते रहे हैं। मगर अपने इस लेख में उन्होंने उसे अपनी गलती बताया है। साथ ही कहा है कि वे और इस आंदोलन से जुड़े तमाम बुद्धिजीवी देश से माफी मांगेंगे। स्वामीनाथन ने रविवार 4 सितंबर को छपे लेख में साफ लिखा है कि मेधा पाटकर नर्मदा परियोजना के बारे में गलत थी। उन्होंने मुझे और अन्य मानवतावादियों को मूर्ख बनाया। इस बीच नर्मदा में बहुत पानी बह गया और मध्यप्रदेश इन परियोजनाओं पर कम से कम दस साल पिछड़ गया। नर्मदा पंचाट के निर्णय के अनुसार हमारा प्रदेश अपने हिस्से के पानी का 2024 तक उपयोग कर पाने की स्थिति में नहीं है।
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मेधा पाटकर ने ये किया था दावा
स्वामीनाथन अय्यर ने लिखा कि मैं 1989 में मेधा पाटकर की सरदार सरोवर बांध पर चर्चा में शामिल हुआ था। तब पाटकर कहा था कि सरदार सरोवर बांध से आदिवासी संस्कृति नष्ट हो जाएगी। यदि पुनर्वास किया जाता है तो नई बसाहट में वे क़र्ज़दार हो जाएंगे। उनकी दी हुई ज़मीनें चली जाएंगी। शहरों की झुग्गी बस्तियों में वे भिखारी बन कर रह जाएंगे। उनकी औरतों को वेश्यावृति करना पड़ेगी। इसलिये बांध का काम रुकना चाहिए। बांध के लाभों के बारे में उन्होंने कहा कि धनी किसानों को ही इसका लाभ मिलेगा। वे बोलीं कि न तो कच्छ तक पानी पहुँचेगा न कोई सिंचाई होगी। बांध बनाने के लिए भारी ब्याज दरों के कारण सरकारें दिवालिया हो जाएंगीं। मुझे और दूसरे मीडिया को यह तर्क प्रभावी लगे और हमने इसके ख़िलाफ़ लेख लिखे। आज साबित हो गया है कि मैं ग़लत था और हज़ारों बाक़ी मानवतावादी भी ग़ुस्से में होंगे कि किस प्रकार हमें अपने मतलब के लिये मूर्ख बनाया गया।
ऐसे सामने आया सच
अय्यर ने अपने लेख में बताया है कि मैंने कोलम्बिया विवि की परियोजना की बसाहटों में जाकर शोध किया। यहां के नतीजे आँखें खोलने वाले हैं। पुनर्वास के बाद आदिवासी उच्च जीवन स्तर जी रहे हैं। 31 गाँवों में कागज मिलों को 32 करोड़ का बांस सप्लाई किया है। उन्हें दी गई ज़मीनों की क़ीमतें बढ़ गई हैं। पांच एकड़ वाले कई किसान आज करोड़पति हो गए हैं। स्तंभकार स्वामीनाथन अय्यर बीते 32 सालों से नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में लिखते रहे हैं। हाल के उतरप्रदेश चुनाव में भाजपा के हारने की संभावना जताई थी।
जो आज हुआ वह अभूतपूर्व
जनसंपर्क विभाग के पूर्व संचालक व नर्मदा घाटी प्राधिकरण से जुड़े रहे लाजपत आहूजा ने स्वामीनाथन के इस लेख को पत्रकारिता की अभूतपूर्व बताया है। आहूजा मानते हैं कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन से मध्यप्रदेश की भारी क्षति हुई है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में रहते हुए मैने जाना कि उस समय वहाँ 600 करोड़ की परियोजनाएँ थी। उनकी लागत हर साल न्यूनतम दस प्रतिशत बढ़ रही थी। बजट मिलता था सालाना 150 करोड़। इसमें से भी काफ़ी बड़ी राशि वेतन.भत्तों पर खर्च हो जाती थी। पिछली सरकार के दस वर्ष कमोबेश ऐसे ही रहे। इस बीच आन्दोलन ने हमेशा प्रशासन-शासन और सभी अदालतों में जाकर रोड़े अटकाए। हालाँकि नतीजे उनके पक्ष में पूरी तरह से कभी नहीं रहे, पर परियोजनाएँ कम से कम एक दशक पिछड़ गई।
राजनीति में उलझ गया यह मामला
नर्मदा घाटी के एक विशेषज्ञ का भी मानना है कि यह राजनीति में उलझ चुका मामला है। एक समय माहौल बांध के खिलाफ था, आज जब इंदिरा सागर, मान.जोबट जैसी परियोजनाओं के लाभ मिलने लगे हैं। विस्थापितों का जीवन खुशहाल हुआ है। निमाड में केसर की खेती होने लगी है तब नर्मदा लाभ का विषय है। बहुत से लोग मानते हैं कि विकसित देश नहीं चाहते है कि एशिया के देश विकसित हों, इसलिए वहाँ के स्वयंसेवी संगठन यहां के स्वयंसेवी संगठनों की आड़ लेकर यह एजेंडा पूरा करते हैं। इन मामलों में जाँच चल रही है, इसलिये अभी जल्दबबाजी में कोई टिप्पणी उचित नहीं है। आख़िर विश्व बैंक द्वारा भेजे गए मोर्स कमीशन को स्वामीनाथन अय्यर ने भी अर्बन नक्सल नहीं माना है।