Aizawl. मिजोरम में आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने बीजेपी से किनारा कर लिया है। मिजोरम के सीएम ने कहा, प्रचार करने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आएंगे तो वे उनके साथ स्टेज शेयर नहीं करेंगे। अच्छा यही होगा कि प्रधानमंत्री यहां अकेले आएं और मंच पर अकेले ही बात रखें। इसके बाद मैं अलग से मंच पर आऊंगा। जोरमथंगा ने कहा कि मिजोरम के लोग क्रिश्चियन हैं। जब मणिपुर में मैतेई लोगों ने सैंकड़ों चर्च जलाए थे, तो मिजोरम के सभी लोगों ने विरोध किया था। इस वक्त में भाजपा के साथ सहानुभूति रखना मेरी पार्टी के लिए बड़ा माइनस पॉइंट होगा।
जोरमथंगा की पार्टी एनडीए में शामिल, पर मिजोरम में अलग
मिजोरम में 7 नवंबर 2023 को विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। 30 अक्टूबर को पीएम मोदी पश्चिम मिजोरम के मामित गांव में भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में रैली करने जाने वाले हैं। जोरमथंगा की पार्टी मिजोरम (एमएनएफ) भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) और केंद्र में सत्ताधारी एनडीए में शामिल है, हालांकि एमएनएफ मिजोरम में भाजपा के साथ नहीं जुड़ी है।
कांग्रेस के सख्त खिलाफ हैं जोरमथंगा
जोरमथंगा ने कहा कि उनकी पार्टी एनडीए और नेडा में इसलिए शामिल हुई क्योंकि वह कांग्रेस के सख्त खिलाफ है और कांग्रेस के नेतृत्व वाले किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहती है।
म्यांमार के लोगों को हथियार नहीं, सिर्फ शरण दे रहे
म्यांमार, बांग्लादेश और मणिपुर के लोगों को शरण देने के सवाल पर जोरमथंगा ने कहा कि मणिपुर सरकार केंद्र सरकार के कदम पर चल रही है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने तब के पूर्व पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के रेफ्यूजियों को शरण दी थी और उन्हें हथियार भी थमाए थे, ताकि आजादी की लड़ाई जीती जा सके। हम म्यांमार के रेफ्यूजियों को हथियार नहीं देते हैं। हम सिर्फ उन्हें खाना और रहने की जगह देते हैं। जोरमथंगा ने कहा कि ये केंद्र की जिम्मेदारी है कि मणिपुर में शांति बहाल करे ताकि लोग अपने घर वापस जा सके।
मिजोरम में चर्च के ‘चुनाव नियम’ नहीं माने तो हार संभव
मिजोरम में 15 दिन बाद यानी 7 नवंबर को वोटिंग है, लेकिन चार लाख की आबादी वाली राजधानी आइजोल में न चुनावी चमक-दमक है, ना ही शोर-शराबा। सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट और मुख्य विपक्षी जोरम पीपुल्स मूवमेंट के दफ्तर भी बिना बैनर-पोस्टर के सूने पड़े हैं। ऐसा मिजोरम पीपुल्स फोरम की चुनावी गाइडलाइन के कारण है।
मिजोरम है मिजोरम की आबादी का गणित
- मिजोरम के 11 जिलों में 87% ईसाई आबादी है। इसलिए यहां वोटरों और समाज पर चुनाव आयोग से ज्यादा प्रभाव और दबाव चर्च का रहता है।
- 2006 में बना एमपीएफ एक स्वतंत्र निकाय है, जिसे पूर्वोत्तर के सबसे बड़े ईसाई संप्रदाय मिजोरम प्रेस्बिटेरियन चर्च सिनॉड ने बनाया है। इसमें चर्च के बुजुर्ग, महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक और युवा शामिल हैं।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी आयोग से ज्यादा एमपीएफ पर होती है, इसीलिए यही संगठन चुनाव प्रचार के नियम तय करता है।
- एमपीएफ ने प्रमुख पार्टियों के साथ लिखित समझौता कर तय किया है कि कोई भी दल बैनर-पोस्टर, पार्टी का झंडा तक नहीं लगाएगा। चुनाव की घोषणा के बाद प्रत्याशी घर-घर प्रचार के लिए नहीं जाएंगे। चुनाव खर्च पर नियंत्रण रहेगा।
राहुल बोले- मणिपुर में जो हुआ, वह भाजपा की आइडियोलॉजी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी 16 और 17 अक्टूबर को मिजोरम के दो दिन के दौरे पर गए थे। वहां उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले मैं भारत जोड़ो यात्रा से कन्याकुमारी से कश्मीर तक चला। इसका आइडिया भाजपा और आरएसएस की ओर से देश में फैलाई गई विचारधारा से लड़ना था। मणिपुर में जो हो रहा है, उससे पता चलता है कि बीजेपी की आइडियोलॉजी क्या कर सकती है। वहां सैकड़ों लोग मार दिए गए, महिलाओं से छेड़छाड़ हुई, उनका रेप हुआ।