नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (SC) में 10 नवंबर को एक सुनवाई के दौरान 1962 की जंग (1962 War) का जिक्र आया। चारधाम हाईवे परियोजना (char dham project) के तहत सड़क चौड़ीकरण से जुड़ी एक अर्जी पर सुनवाई हुई। इस पर सरकार ने अपने जवाब में कहा कि हम 1962 की तरह सोते हुए नहीं रह सकते। ये मुद्दा चारधाम तीर्थयात्रियों (Pilgrims) से ज्यादा सेना की जरूरतों का है। चीन ने अपनी तरफ बुनियादी ढांचा तैयार कर लिया है। 1962 जैसी जंग को टालने के लिए सेना को चौड़ी और बेहतर सड़कों की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक 1962 के हालात में हों, लेकिन रक्षा (Defence) और पर्यावरण (Environment) दोनों की जरूरतें संतुलित (Balanced) होनी चाहिए।
चीन हैलीपेड, रेलवे लाइन बना रहा
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच में सुनवाई हुई थी। केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बताया कि हाल ही में भारत-चीन सीमा पर जो भी हुआ, उसे देखते हुए आर्मी को बेहतर सड़कों की जरूरत है। सीमा पार चीन एयरस्ट्रिप (Airstrip), हेलीपैड (Helipad), रोड, रेलवे लाइन (Railway Line) जैसा बुनियादी ढांचा तैयार कर रहा है। सड़क एवं परिवहन मंत्रालय 900 किमी लंबी सड़क बना रहा है, जो चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ेगी।
वेणुगोपाल ने कहा कि आर्मी को ट्रूप्स, टैंक्स, हैवी आर्टिलरी और मशीनरी पहुंचाने की जरूरत है। 1962 की जंग के वक्त चीन सीमा पर राशन की सप्लाई भी नहीं पहुंच सकी थी। अगर दो लेन की सड़क नहीं बनती तो उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा, इसलिए इस सड़क को 7 मीटर तक चौड़ा करने की इजाजत दी जाए। इस पर NGO ग्रीन दून नाम की ओर से पेश हुए वकील कॉलिन गोनजालविस ने कहा कि सेना को चौड़ी सड़कों की जरूरत नहीं है और ट्रूप्स को एयरलिफ्ट किया जा सकता है।
कोर्ट ने भी मानी सरकार की बात
कोर्ट ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सीमा पर दुश्मन इन्फ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) तैयार कर रहा है। हम हिमालय की स्थिति को जानते हैं। सैनिकों को चंडीगढ़ से सीमा तक एक बार एयरलिफ्ट नहीं किया जा सकता। आज भले ही हमारे पास C130 हरक्यूलिस जैसे हैवी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट हैं, लेकिन फिर भी सेना को आने-जाने में समय तो लगेगा। आर्मी को हैवी मशीनरी ले जाने (Deployment) की जरूरत है। 1962 के बाद से चीन सीमा (China Border) तक जाने वाली सड़कों में कोई खास बदलाव नहीं देखा गया है।
NGO के अपने तर्क
NGO की तरफ से पैरवी कर रहे गोंजालविस ने कहा कि पहाड़ों को तोड़कर सड़कें बनाई जा रही हैं। उत्तराखंड के लोगों ने 2013 जैसी आपदा देखी और अब वो सड़कों के लिए लगातार हो रहे विस्फोट से भय में हैं। इसके अलावा गाड़ियों से निकलने वाला काला धुआं ग्लेशियरों पर जम रहा है। गोंजालविस ने कोर्ट में लैंडस्लाइड का एक वीडियो भी दिखाया। इस पर कोर्ट ने कहा कि ग्लेशियर के पिघलने की वजह सिर्फ काला धुआं ही नहीं, बल्कि और भी कई कारण हैं।
रक्षा मंत्रालय ने याचिका लगाई थी
8 सितंबर 2020 को कोर्ट ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने का निर्देश दिया गया था। रक्षा मंत्रालय ने इसी आदेश में संशोधन की मांग की याचिका दायर की थी। आदेश में संशोधन की मांग करते हुए रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि आज के समय में चीन सीमा पर देश की सुरक्षा खतरे में है।