देव श्रीमाली GWALIOR. वैसे तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (shri krishna janmashtami) को देशभर में भगवान श्री कृष्ण (Lord Shree Krishna) के मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना होती है, लेकिन ग्वालियर के गोपाल मंदिर (Gopal Mandir) का आकर्षण खास ही रहता है। इस मंदिर का निर्माण सिंधिया राज परिवार ने लगभग सौ साल पहले कराया था। इससे पहले उन्होंने उज्जैन में गोपाल मंदिर बनवाया था। इस साल ये मंदिर अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है। खास बात ये है कि जन्माष्टमी पर राधा और कृष्ण को संभवतः दुनिया का सबसे मंहगा श्रंगार (adornment) किया जाता है। करोड़ों रुपए कीमत वाले रत्नजड़ित स्वर्णाभूषण, इसके खास आकर्षण रहते है। राधा कृष्ण की ये छवि देखने ना केवल आसपास बल्कि देश-दुनिया से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
खास जेवरात से सजाई जाती हैं राधा कृष्ण की मूर्तियां
अपनी प्राण प्रतिष्ठा की सौवीं सालगिरह (hundredth anniversary) मना रहे ग्वालियर के फूलबाग स्थित सिंधिया कालीन मंदिर में मौजूद राधा कृष्ण की मूर्तियों को जन्माष्टमी पर खास जेवरातों से सजाया जाता है। ये रत्न जड़ित आभूषण एंटिक हैं और इनकी कीमत का आंकलन करीब 100 करोड़ रुपए से भी ज्यादा किया जाता है। हीरे-मोती,पन्ना जैसे बेशकीमती रत्नों से सुसज्जित भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के मुकुट और अन्य आभूषण हैं।
बरसों तक बैंक लॉकर में रखे रहे बेशकीमती आभूषण
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। सिंधिया रियासत खत्म हो गई तो जेवरात सिंधिया के खजाने से निकलकर ट्रेजरी में जमा करा दिए गए। वहां से सरकार ने बैंक के लॉकर में रखवा दिए। इसके बाद इन्हें निकालना बंद कर दिया। लेकिन 2007 में जब विवेक नारायण शेजवलकर (Vivek Narayan Shejwalkar) शहर के मेयर बने तो उन्होंने इस मामले में पहल कर इन्हें जन्माष्टमी पर बैंक के लॉकर से निकलवाकर मथुरा और वृंदावन से खास सुनार बुलाकर इन्हें सुधरवाया। लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर इनसे भगवान का जन्माष्टमी पर श्रंगार करवाया। तब से ये नगर निगम की देखरेख में आए और हर जन्माष्टमी पर राधा-कृष्ण की प्रतिमाओं को ये बेशकीमती जेवरात पहनाए जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन सुरक्षा व्यवस्था के बीच इन जेवरातों को बैंक के लॉकर से निकालकर राधा और गोपाल जी का श्रंगार किया जाता है।
सौ साल पहले माधवराव प्रथम ने बनवाया था गोपाल मंदिर
इस मंदिर के पुजारी पीढ़ी दर पीढ़ी कार्यरत है। पुजारी प्रदीप सरवटे का कहना है कि फूल बाग स्थित गोपाल मंदिर की स्थापना 1921 में ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक माधवराव प्रथम ने की थी। उन्होंने भगवान की पूजा के लिए चांदी के बर्तन और पहनाने के लिए रत्न जड़ित सोने के आभूषण भी बनवाए थे और इन्हें मंदिर को ही समर्पित कर दिए थे। इन आभूषणों में राधा कृष्ण के लिए 55 पन्ना और सात लड़ी का हार,सोने की बांसुरी,सोने की नथ,जंजीर और चांदी के पूजा के बर्तन हैं। जन्माष्टमी पर इन रत्न जड़ित जेवरात से राधा कृष्ण का श्रृंगार किया जाता है। 24 घंटे तक राधा-कृष्ण इन जेवरातों से श्रंगारित रहते हैं। श्रद्धालु, भगवान और राधा रानी के इस स्वरुप को देखने के लिए भक्त सालभर तक इंतजार करते हैं। यही कारण है कि जन्माष्टमी पर सुबह से ही भक्तों का दर्शन के लिए तांता लगा रहता है। इनमें देशी ही नहीं विदेशी भक्त भी शामिल होते हैं।
मंदिर के एक तरफ गुरुद्वारा, दूसरी तरफ मस्जिद
मंदिर में श्रंगार के लिए आए बहुमूल्य रत्नजड़ित गहनों और भक्तों की सुरक्षा के लिए भारी पुलिस बल भी तैनात किया जाता है। मंदिर के अंदर और बाहर की सुरक्षा के लिए करीब 200 जवान तैनात किए जाते हैं। वर्दीधारियों के साथ ही सादा कपड़ों में सुरक्षा अमला तैनात है। CSP स्तर के राजपत्रित पुलिस अधिकारी इसकी मॉनिटरिंग करते हैं। गोपाल का यह ऐतिहासिक मंदिर ग्वालियर के फूल बाग परिसर में है। इसके एक ओर गुरुद्वारा है, दूसरी और मोती मस्जिद। सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक इस मंदिर की स्थापना 1921 में ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक माधवराव प्रथम ने कराई थी।