ETAWAH. सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव यादव पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके पैतृक गांव सैफई में उनका अंतिम संस्कार हुआ। बेटे अखिलेश यादव ने पिता को मुखाग्नि दी। मुलायम सिंह के अंतिम दर्शन के लिए तमाम बड़े नेता पहुंचे। दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, राज्य मंत्री असीम अरुण, सांसद रीता बहुगुणा जोशी, देवेंद्र सिंह भोले, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मुलायम सिंह को श्रद्धांजलि दी।
एक बार कॉलेज का दोस्त ठंड में चप्पल पहनकर पहुंचा तो राज्यमंत्री बना दिया
राजनीति के साथ नेताजी अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के पारिवारिक कार्यक्रमों में भी शिरकत करते थे। वे सपा नेता राजकुमार यादव के देवपुरम स्थित मकान के मुहूर्त में आए थे। पूर्व सांसद अमीर आलम के बेटे पूर्व विधायक नवाजिश आलम की शादी में भी उन्होंने आशीर्वाद दिया था। पूर्व सांसद कादिर राना की बेटी की शादी में भी उनकी मौजूदगी रही थी। पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिक की मां के निधन के समय वह उनके घर श्रद्धांजलि अर्पित करने आए थे।
दोस्ती में वे इतने भावुक थे कि एक बार उनका दोस्त हवाई चप्पल में पहुंचा तो उसे राज्य मंत्री बना दिया था। मुलायम के साथ पढ़े मित्र विश्राम सिंह यादव बताते हैं- ग्रेजुएशन के दौरान नेताजी सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहने लगे। हमने करहल में साथ में नौकरी भी की। इसके बाद नेताजी सक्रिय राजनीति में उतर गए और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक बार कड़ाके की सर्दियों में मैं मुलायम सिंह यादव से मिलने लखनऊ पहुंच गया। ठंड में मैं हवाई चप्पल पहन पहुंचा तो वे भावुक हो गए। कहा कि विश्राम इतनी ठंड में तुम हवाई चप्पल पहन कर पहुंचे हो। मैंने कहा कि तुमसे मिलना था, इसलिए आ गया। वे हंसी में टाल गए। इसके बाद उन्होंने मुझे अपनी सरकार में राज्य मंत्री बनाया।
हेलिकॉप्टर से नीचे देखकर बता देते थे कि कौन सा गांव है
पूर्व वरिष्ठ सपा नेता गोपाल अग्रवाल ने बताया कि मुलायम सिंह सही मायने में जमीनी नेता थे। हेलिकाप्टर से चलते थे तो नीचे देखकर ये बता दिया करते थे कि कौन से गांव के ऊपर से उड़ रहे हैं। 2006 में मेरठ में 30-31 अक्टूबर और एक नवंबर को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन की कमान मुलायम सिंह यादव ने उनको सौंपी थी। सम्मेलन के लिए मेरठ में किसी बड़े मैदान का चयन होना था। उन्होंने नेताजी को मेरठ के कई बड़े मैदानों के नाम सम्मेलन के लिए बताए, लेकिन हर मैदान की भौगोलिक स्थिति और आम लोगों को होने वाली परेशानी को बताकर वे टाल देते थे। बाद में विक्टोरिया पार्क में रैली में सहमत हुए।