आने वाला है जेल का नया कानून... कैदी के पास फोन मिला तो तीन साल जेल, बेल पर पहनाएंगे कॉलर आईडी, जानें और क्या है नया?

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Chandresh Sharma
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आने वाला है जेल का नया कानून... कैदी के पास फोन मिला तो तीन साल जेल, बेल पर पहनाएंगे कॉलर आईडी, जानें और क्या है नया?

NEW DELHI. अंग्रेजों के जमाने के कानून बदलने के कदम के बाद अब जेल का कानून बदलने की तैयारी तेज हो गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से तैयार किये गए जेल कानून के मसौदे में अनूठे कदमों का सुझाव दिया गया है। मसौदे में निगरानी के लिए तकनीक के उपयोग पर जोर दिया गया है। साथ ही जेल में कैदियों के पास मोबाइल आदि गजेट्स मिलने पर उन्हें दंडित करने का प्रावधान है। जेल में कैदी के फोन रखने पर तीन साल की जेल होगी, वहीं अवकाश देने की स्थिति में कैदी को कॉलर आईडी जैसे उपकरणों को पहनाकर छुट्टी देने का भी प्रावधान करने की तैयारी की जा रही है।

पहली बार अपराधी बने कैदी अलग बैरक में रहेंगे

ड्रग एडिक्ट कैदी, पहली बार अपराधी बने कैदी, बड़े खतरे वाले कैदी और विदेशी कैदियों को जेल में अलग-अलग रखा जाएगा। कैदियों की निगरानी और गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कॉलर आईडी जैसे विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को पहनाकर उन्हें जेल से छुट्टी देने का भी प्रविधान होगा। हालांकि अवकाश देने की शर्त में यह शामिल रहेगा।

कैदियों की नियमित तलाशी का नियम

नए जेल कानून के मसौदे में तकनीक के जरिये निगरानी के साथ ही मोबाइल फोन जैसी प्रतिबंधित सामग्रियों के लिए कैदियों की नियमित तलाशी का नियम होगा। अगर कैदी चाहेंगे तो उन्हें निगरानी उपकरण पहनाकर उनकी गतिविधियों की निगरानी करते हुए उन्हें अवकाश दिया जा सकेगा। अगर कैदी नियम का उल्लंघन करेंगे तो उनका अवकाश रद्द किया जाएगा। तब भविष्य में उन्हें कभी भी कोई अवकाश नहीं दिया जाएगा। मोबाइल फोन रखने या इस्तेमाल करने या मोबाइल वॉच रखने पर दंड दिया जाएगा। जेल में कैदियों के लिए फोन समेत किसी भी तरह का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निषिद्ध होगा।

केंद्रीय गृह सचिव ने सभी राज्यों को लिखी थी चिट्ठी

केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने मई में सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को इस आशय का पत्र भेजा था, लेकिन मसौदे की सिफारिशों को मंत्रालय की वेबसाइट पर अब अपलोड किया गया है। भल्ला का कहना है कि राज्य सरकारें को प्रस्तावित कानून का पालन करने से बहुत लाभ होगा। प्रस्ताव में कहा गया है कि जेलों को इस तरह से डिजाइन किया जाए कि विभिन्न प्रकार के कैदियों को अलग-अलग रखा जा सके और उनकी जरूरतों को भी पूरा किया जा सके। खासकर महिला, किन्नर और दिव्यांग कैदियों को भी अलग-अलग रखा जा सकेगा।

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