दंतेवाड़ा में 1 हजार साल पुराना गणेश मंदिर, परशुराम के फरसे के प्रहार से टूटकर ढोलकाल पर्वत पर गिरा था गणेश जी का एक दांत

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The Sootr CG
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दंतेवाड़ा में 1 हजार साल पुराना गणेश मंदिर, परशुराम के फरसे के प्रहार से टूटकर ढोलकाल पर्वत पर गिरा था गणेश जी का एक दांत

पंकज सिंह भदौरिया, DANTEWADA.आपने भगवान गणेश के कई स्वरूप आज तक देखे होंगे। कई रूपों में भगवान गणेश को बड़े-बड़े मंदिरों में विराजमान भी देखा होगा लेकिन आज हम आपको भगवान गणेश के एक अद्भुत और अकल्पनीय स्वरूप के दर्शन छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा के घने जंगलों में कराएंगे।



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खूबसूरत पहाड़ी पर एकदंत की प्रतिमा



बैलाडीला की पहाड़ियों पर खूबसूरत हरियाली के बीच सदियों से घने जंगलों में भगवान गणेश की अद्भुत एकदंत वाली प्रतिमा पर्वत पर जमीन से 2 हजार 750 फीट की ऊंचाई पर खुले आसमान के नीचे हवा-आंधी पानी में भक्ति और आस्था का केंद्र 1 हजार साल से बस्तरवासियों के लिए बनी है। इतिहास और आध्यत्म दोनों रहस्य इस पर्वत पर भगवान एकदन्त गणेश के स्वरूप में छुपे हैं, जिस शिखर को आस्था का ढोलकाल शिखर कहते हैं।



ढोलकाल पर्वत पर विराजे गणेश



दन्तेवाड़ा से 13 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव और गांव से आगे 3 किलोमीटर दूर कोटवारपारा है। जहां ढोलकाल पर्वत पर जाने का रास्ता नजर आता है। पौराणिक कथाओं में किवदंती के रूप में ये है कि पहाड़ के पत्थर पर आसन ग्रहण करके ऋषि-मुनि तपस्या करते थे। ऊंचे पहाड़ और हरी-भरी वादियों के बीच भगवान गणेश विराजे दिखते हैं। ग्रेनाइट के पत्थरों से बनी भगवान गनेश की लगभग 3 फीट ऊंची प्रतिमा जो सदियों से विराजमान है। इस अद्भुत प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि बेहद ही कलात्मक और सुंदर है। भगवान गणेश की इस प्रतिमा में ऊपरी दाएं हाथ पर फरसा, बाएं हाथ के पास टूटा हुआ एक दांत, नीचे दाएं हाथ के पास अभय मुद्रा में अक्षमाला भी धारण किए हुए हैं। वहीं मूर्ति के नीचे बाएं हाथ मे भगवान गणेश मोदक भी धारण किए हुए हैं। ये रहस्यमय अद्भुत प्रतिमा ललिता आसन में बैठी हुई है।



ढोलकाल के गणेश की मूर्ति के कई रहस्य



ढोलकाल के गणेश मूर्ति के पीछे कई किवदंती और गहरे इतिहास छुपे हैं। वैसे तो इतिहास इसे 10-11वीं शताब्दी पर छिंदक नागवंशीय शासनकाल में स्थापित मूर्ति बताता है। पूरे हजार साल पुरानी मूर्ति लेकिन ढोलकाल के गणेश जी की एक प्रचलित और ग्रामीणों के विश्वास से बड़ी मान्यता प्राप्त किवदंती ये भी है कि भगवान गणेश और परशुराम का रामायणकाल में घोर युद्ध हुआ था। परशुराम ने भगवान शंकर से वरदान में मिले फरसे से गणेश जी पर प्रहार कर दिया जिससे उनका एक दांत टूटकर ढोलकाल शिखर पर गिरा। इसी वजह से इस ढोलकाल पहाड़ के ठीक नीचे बसा गांव फरसपाल है। जहां परशुराम जी का मंदिर आज भी है।



दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग



पर्यटकों के लिए ढोलकाल शिखर पर चढ़कर गणेश जी के दर्शन करना आस्था का विषय है। इसलिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। ढोलकाल के गणेश प्रतिमा को 2017 में किसी ने गिरा दिया था जिससे मूर्ति के कई टुकड़े हो गए थे लेकिन बाद में प्रशासन ने इस मूर्ति के सभी हिस्सों को वापस जुड़वाकर उसे फिर से वहीं प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित कर दिया। पर्यटकों का कहना है कि रास्ते में सभी जगह रूट चार्ट पेड़ों पर मार्क प्रशासन को लगवाना चाहिए ताकि शिखर पर चढ़ने में दर्शनार्थियों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। फरसपाल गांव में खुले स्थान पर एक चबूतरे पर मूर्ति स्थापित है जिस पर घोड़े पर बैठे और एक हाथ में फरसा और दूसरे में तलवार पकड़े प्रतिमा भी है जिसे ग्रामीण परशुराम का मंदिर बताते हैं।


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