नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक के मुद्दे पर 7 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की। पंजाब की तरफ से एडवोकेट जनरल डीएस पटवालिया शीर्ष कोर्ट में मौजूद रहे। अब 9 जनवरी को मामले की सुनवाई होगी। ऐसे दिए दोनों पक्षों ने तर्क...
पंजाब सरकार का पक्ष: कोर्ट में पंजाब की तरफ से पेश एडवोकेट जनरल पटवालिया ने कहा कि उसी दिन घटना के कुछ घंटों के अंदर ही जांच कमेटी का गठन कर दिया गया था। जब केंद्र हमारी बनाई जांच समिति पर सवाल उठा रहा है तो हमें भी केंद्र की समिति पर आपत्ति है। हमने घटना के फौरन बाद FIR भी दर्ज की, जांच कमेटी भी बना दी, फिर भी हमारी नीयत पर केंद्र सवाल उठा रहा है।
याचिकाकर्ता मनिंदर सिंह: यह मामला लॉ एंड ऑर्डर का नहीं है, बल्कि स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप एक्ट का है। पीएम अगर खुद भी चाहें अपनी सुरक्षा हटा नहीं सकते। मामले की जांच राज्य सरकार नहीं कर सकती।
केंद्र सरकार का पक्ष: केंद्र की तरफ से शीर्ष कोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मामला दुर्लभ से दुर्लभ है। इसने हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा किया। पीएम की सुरक्षा के लिए यह गंभीर खतरे के रूप में सामने आया है। राज्य के गृह मंत्री भी इस मामले में जांच के दायरे में हैं, इसलिए वह जांच पैनल का हिस्सा नहीं हो सकते। यह मामला सीमा पार आतंकवाद (Cross Border Terrorism) का मामला है, इसलिए NIA अधिकारी जांच में मदद कर सकते हैं।
6 जनवरी को दायर हुई थी याचिका: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक के मामले को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एनवी रमना के समक्ष मेंशन किया गया था। सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने इस मामले से जुड़ी जनहित याचिका (PIL) 6 जनवरी को दायर की। इसमें कहा गया है कि इस तरह की सुरक्षा में चूक स्वीकार्य नहीं की जा सकती। साथ ही पंजाब सरकार को उचित निर्देश देने, जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मांग की गई है।