UJJAIN: आजादी के 75 सालों में भारत ने भौतिक तरक्की तो की, लेकिन नैतिकता पीछे छूट गई, गांधी के रास्ते से भटक गया देश

author-image
Sunil Shukla
एडिट
New Update
UJJAIN: आजादी के 75 सालों में भारत ने भौतिक तरक्की तो की, लेकिन नैतिकता पीछे छूट गई, गांधी के रास्ते से भटक गया देश

UJJAIN. आजादी हासिल करने के बाद 75 साल के सफर में देश में भौतिक तरक्की तो खूब हुई है लेकिन अफसोस कि भारत की मूल पहचान नैतिकता पीछे छूट गई। देश महात्मा गांधी के सत्य-अहिंसा के रास्ते से भटक गया है। देश को सत्ता का लालच औऱ भ्रष्टाचार खाए जा रहा है। ये कहना है उज्जैन के फ्रीगंज में शिवाजी पार्क कॉलोनी में रहने वाले 96 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेम नारायण नागर का। देश की आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ.राजेद्र प्रसाद के सहयोगी रहे स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार नागर जी से द सूत्र ने खास बातचीत की।



वीडियो देखें.. 





thesootr



विभाजन के बाद डॉ.राजेंद्र प्रसाद का संदेश मिला, दिल्ली आ जाइए 



thesootr

    


जीवन के 96 वसंत देख चुके नागर जी से देश में 1947 के मंजर का जिक्र छेड़ते ही उनकी आंखों में चमक और आवाज में जोश बढ़ जाती है। अतीत की यादों में झांकते हुए वो उत्साह से बताते हैं कि  उस वक्त मैं खादी भंडार में काम करता था। डॉ राजेंद्र प्रसाद तब देश के कृषि मंत्री हुआ करते थे। देश के औपचारिक विभाजन के बाद उनका संदेश मिला कि लाहौर (पाकिस्तान) से पलायन कर भारत आ रहे लोगों की देखरेख के लिए आप लोगों की जरूरत है। अपने सहयोगियों के साथ दिल्ली आ जाइए। मैं और मेरे साथी कार्यकर्ता दिल्ली पहुंचे और देश के विभाजन की त्रासदी के दर्द और इससे जुड़े तमामा उतार-चढ़ान को पनी आंखों से देखा। तब हम लोग दिल्ली में सरदार वल्लभ भाई पटेल के आवास पर जाते थे, उनकी बेटी मणिबेन पटेल आवश्यक जरूरतों का प्रबंध कर हमें व्यवस्था के बारे में निर्देश देती थीं।  



ये बात सही नहीं कि अंग्रेजों से राजी-खुशी से भारत छोड़ा 



जो लोग ये समझते हैं कि कहते हैं कि अंग्रेजों ने राजी-खुशी से भारत छोड़ा था तो ऐसा नहीं है। देश पर लंबे समय तक राज करने के बाद 1942 में अंग्रेजों को समझ आ गया था कि अब उन्हें भारत छोड़ना ही पड़ेगा।। यदि वे नहीं जाते तो देश की जनता में उनके खिलाफ इतनी नफरत बढ़ गई थी कि बड़े पैमाने पर उनका कत्ल-ए-आम हो जाता। हुआ यूं था कि 8 अगस्त 1942 को मुंबई में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान कर (ग्वालियर टैंक मैदान में गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया) तय किया कि सभी लोग यहां से लौटकर पूरे देश में करो या मरो के नारे का प्रचार करेंगे। लेकिन अंग्रेज सरकार ने प्रचार शुरू होने से पहले ही 9 अगस्त 1942 को आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। उनका ये पांसा उल्टा पड़ा। देश में अंग्रेजों के इस कदम के खिलाफ असंतोष की आग फैल गई। यही वो समय था जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का मन बनाया। 



जो कहते है देश में कुछ नहीं हुआ, उनकी बुद्धि पर तरस आता है 



देश में आजादी के 75 सालों में तरक्की तो बहुत हुई है। मैं अपने घर-परिवार के लिए कंट्रोल का गेहूं खरीदने रात 3 बजे लाइन में लगा हूं। आज देखता हूं तो गेहूं यहां-वहां सरकारी गोदाम में बर्बाद होता दिखता है। जो ये कहते हैं कि इतने सालों में देश में कुछ भी नहीं हुआ। इससे बड़े बेवकूफी की बात हो नहीं सकती। जो उस समय पैदा भी नहीं हुए थे वो कहते हैं कि 75 सालों में कुछ नहीं हुआ ये सुनकर उनकी बुद्धि पर तरस आता है। हकीकत में देश ने आजाद होने के बाद भौतिक तरक्की तो बहुत की है। लेकिन अफसोस कि विकास की दौड़ में भारत की मूल जड़ नौतिकता पीछे छूट गई। देश गांधी जी के दिखाए सत्य-अहिंसा के रास्ते से भटक गया।     



 हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी ?



देश की आजादी के लिए हमने सपने तो बहुत देखे थे। वो समय कुछ और था, ये कुछ और है। पहले देश के लिए मरने जीने का उत्साह था। देश आजाद कराने का उत्साह था। आज हम आजादी के जिस पेड़ के नीचे बैठकर स्वतंत्र जिंदगी के जो मीठे फल खा रहे हैं, उस पेड़ की जड़ों  को हमारे शहीदों ने पानी से नहीं अपने खून से सींचा था। हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी- राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त के ये शब्द हैं, आज शाश्वत प्रतीत होते हैं। हमने भारत को इंडिया बना दिया है, ऐसा देश जिसमें नैतिकता घट गई है और सत्ता सर्वोपरि हो गई है। 



आजादी से जुड़ी किन बातों का गर्व और किन पर अफसोस 



गर्व इस बात का है कि अंग्रेज देश से चले गए। उन्होंने ये सोचकर देश छोड़ा था कि हम आपस में लड़ते रहेंगे। लेकिन हमारे नेताओं ने  देश को बड़ी हिम्मत से संभाला। अब हम बहुत आगे बढ़ गए हैं। अफसोस ये है कि अब देश को सत्ता का लालच और भ्रष्टाचार खाए जा रहा है। हर कीमत पर सत्ता चाहिए, इसके चलते हमारी नैतिकता खत्म हो गई है। इस सबके बीच गांधी और उनका विचार तो गायब ही हो गया है। आज के नेता सत्ता के लिए सब कुछ कर रहे हैं। 



आज नेता और राजनीति के बारे में क्या कहेंगे 



आज देश में सत्ता की ताकत के आगे नैतिकता तो कुछ बची ही नहीं है। अब नई पीढ़ी के सामने कोई आदर्श ही नहीं रहा। वो अपना आदर्श किसमें तलाशे। यदि वो अपना आदर्श बनाना भी चाहे तो किसे बनाए। ये सबसे बड़ा सवाल है। आज सरकार के किसी भी दफ्तर में चले जाईए, आपको खुलेआम भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखेगा। यदि आज के नेता-मंत्री अपनी पहचान का खुलासा किए बगैर सड़क पर उतरें,  किसी को इस जरा भी पता न चले कि ये नेता हैं, मंत्रीं हैं तब उन्हें पता चलेगा कि देश में क्या हो रहा है। ये नेता 5 साल के लिए सत्ता में बैठते हैं। इस दौरान वो सब नहीं करते जो जनता के लिए जरूरी हैं। वो अपनी ऊर्जा उन सब कामों में लगाते हैं जिससे उनके वोट पक्के होते हैं।



कई लोग कहते हैं भारत में लोकतंत्र खतरे में हैं ? 



ऐसा सोचना सही नहीं है। देश में लोकतंत्र अभी तो सुरक्षित है। जनता अब बहुत कुछ समझने लगी है। लेकिन वो मजबूर है, क्या करे। सबसे बड़ी गड़बड़ देश में विपक्ष खत्म होने से हो रही है। इसी वजह से संतुलन गड़बड़ा रहा है।  



अब शहीदों के सपने का भारत 2047 तक बनाने की बात हो रही है  



मुझे नहीं लगता कि अब कोई स्वतंत्रता सेनानियों के सपने के भारत को साकार कर पाएगा। एक तो देश की आबादी जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है। दूसरी तरफ लोगों की व्यक्तिगत आकांक्षाएं भी बहुत बढ़ गई हैं। भ्रष्टाचार और हर कीमत पर वोट की राजनीति कुछ करने ही नहीं दे रही है। नैतिकता खत्म हो रही है।



(उज्जैन से रिपोर्टर नासिर बेलिम रंगरेज का इनपुट) 




 


भारत India सरदार वल्लभ भाई पटेल Ujjain Mahatma Gandhi महात्मा गांधी sardar Vallabh bhai Patel Dr. Rajendra Prasad डॉ. राजेंद्र प्रसाद Independence स्वतंत्रता Freedom Fighter Prem Narayan Nagar Morality फ्रीडम फाइटर प्रेम नारायण नागर नैतिकता