युद्ध में निर्णायक मोड़... फिलिस्‍तीनी राष्‍ट्रपति का हमास से किनारा, मतलब अब राजनीतिक नहीं, सिर्फ आतंकी संगठन

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Pratibha Rana
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युद्ध में निर्णायक मोड़... फिलिस्‍तीनी राष्‍ट्रपति का हमास से किनारा, मतलब अब राजनीतिक नहीं, सिर्फ आतंकी संगठन

TEL AVIV. इजरायल-हमास की भीषण जंग के बीच फिलिस्तीन का संदेश बहुतों को राहत देने वाला है। कई मुल्कों की उलझनें खत्म करने वाला है। जंग को जन्म देने वाले हमलावर हमास को अलग-थलग करने वाला है और अंततः अमन का मार्ग प्रशस्त करने वाला भी लगता है। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन (पीएलओ) को ही फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र और वैध प्रतिनिधि बताकर हमास से किनारा कर लिया है। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास ने दोनों तरफ के लोगों की हत्या को अस्वीकार कर दिया है और दोनों ही पक्षों के नागरिकों, कैदियों और बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई की अपील भी की है।

हमास का हर कदम खुद के लिए, फिलिस्तिन के लिए नहीं

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हमास को अरबी में हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया के नाम से भी जाना जाता है। ये एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है। 1987 में पहले इंतिफादा यानी सशस्त्र विद्रोह के दौरान फिलिस्तीनी शरणार्थी शेख अहमद यासीन ने हमास की स्थापना की थी। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास के बयान से साफ हो गया कि हमास जो कुछ भी कर रहा है, वो फिलिस्तीन के लिए नहीं बल्कि अपने लिए कर रहा है। अब हमास को किसी तरह का राजनीतिक सपोर्ट नहीं हासिल है। हमास अब सिर्फ और सिर्फ एक आतंकवादी संगठन बन कर रह गया है। यह बात फिलिस्तीन को लेकर पूरी दुनिया के लिए बेहद अहम है।

बाइडेन ने भी कहा था - हमास का खात्मा जरूरी, भारत का भी यही कहना

जंग के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि हमास ने बर्बरतापूर्ण काम किया है, उसका खात्मा जरूरी है, लेकिन फिलिस्तीनी लोगों के लिए भी अपना मुल्क चाहिये। अपनी अलग सरकार होनी चाहिये। गाजा पट्टी पर इजरायल का कब्जा ठीक नहीं होगा। भारत का भी पुराना स्टैंड यही रहा है, और ये आज भी कायम है। हमास के हमले को भारत आतंकवादी हमला पहले ही बता चुका है, लेकिन ऐन उसी वक्त फिलिस्तीन और वहां के लोगों के साथ खड़े रहने का भी वादा दोहराया है।

प्रो-हमास माहौल को झटका

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के बीच फोन पर हुई बातचीत से एक बड़ी बात निकल कर आई है। समाचार एजेंसी वाफा की पहली वाली रिपोर्ट में बताया गया था, राष्ट्रपति का इस बात पर भी जोर था कि हमास की नीतियां और कार्रवाई फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करते, सिर्फ पीएलओ की नीतियां, कार्यक्रम और फैसले ही फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और वैध हैं, लेकिन कुछ घंटों बाद ही एजेंसी की तरफ से महमूद अब्बास के बयान का नया ड्राफ्ट जारी किया गया, राष्ट्रपति का इस बात पर भी जोर था कि सिर्फ पीएलओ की नीतियां, कार्यक्रम और फैसले ही फिलिस्तीनी लोगों का असली प्रतिनिधित्व करते हैं और वैध हैं, न कि किसी अन्य संगठन की नीतियां।

दोनों ड्राफ्ट के भाव एक ही

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति के बयान के दोनों ही ड्राफ्ट में मामूली फर्क है, वो भी सिर्फ शब्दों में। बात एक ही है, भाव एक ही है। दूसरे बयान में बस इतना ही किया गया है कि हमास का नाम हटा दिया गया है। निश्चित तौर पर ये कोई कूटनीतिक कदम ही होगा। हमास का नाम लेने और न लेने में फर्क तो है ही।

फिलिस्‍तीनी राष्‍ट्रपति ने किनारा किया तो अब ईरान का क्‍या?

इजरायल को भेजे एक खास मैसेज में ईरान का कहना था कि वो हमास-इजरायल जंग को और आगे नहीं बढ़ाना चाहता है। साथ ही धमकी भी दी थी कि अगर गाजा में इजरायल का ऑपरेशन जारी रहता है, तो उसे भी दखल देना पड़ेगा। ईरान ने अपना ये संदेश संयुक्त राष्ट्र के जरिये इजरायल को भेजा था यानी ईरान इजरायल-हमास जंग में प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होता है तो ये जंग और आगे बढ़ सकती है और मामला लंबा चल सकता है। हालांकि अब वह कदम पीछे ले सकता है, क्योंकि फिलिस्तिनी राष्ट्रपति के बयान से साफ हो गया कि हमास फिलिस्तिन के लिए युद्ध नहीं कर रहा है।

पाकिस्‍तान, कतर जैसे देशों को तय करना होगा कि वो किसके साथ?

इजरायल को ज्यादातर मुस्लिम मुल्क अपना दुश्मन मानते हैं। इन मुल्कों का कहना है कि इजरायल को फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करके बनाया गया है। ऐसे देशों में अरब मुल्क हैं, और गैर-अरब मुल्क भी। अल्जीरिया, इराक, कुवैत, लीबिया, कतर, ओमान, सोमालिया, यमन और सीरिया जैसे करीब दर्जन भर देश ऐसे हैं जो इजरायल के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करते। इनके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, इंडोनेशिया और मालदीव जैसे देश भी इजरायल को लेकर बिलकुल वैसी ही राय रखते हैं। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बयान के बाद ऐसे मुल्कों को पहले तो ये तय करना होगा कि वे फिलिस्तीन के साथ हैं, या हमास के साथ? अगर हमास के साथ हैं, फिर तो कोई बात ही नहीं, लेकिन अगर वे खुद को फिलिस्तीन का हमदर्द मानते हैं तो अपना स्टैंड बदलना पड़ेगा। अपने पुराने एजेंडे से पीछे हटना होगा।

हमास के खिलाफ अब बिना किसी बड़ी आशंका के निर्णायक लड़ाई

अब तक हमास के खिलाफ कई मुल्क गोल मोल बातें कर रहे थे। एक अंतर्राष्ट्रीय तबके को इस बात का डर भी था कि हमास को कुछ कहा जाये तो अरब और बाकी मुस्लिम मुल्क अपने पर न ले लें और बात बिगड़ जाये। अब हमास के खिलाफ खुल कर कदम उठाए जा सकते हैं। आगे से हमास को लेकर कुछ भी कहने का मतलब कतई फिलिस्तीन के लिये कुछ बोलने जैसा होगा। अब हमास के खिलाफ बगैर किसी लामबंदी की आशंका के निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है।

युद्ध के क्षेत्रीय संघर्ष में बदलने की संभावना कम हुई

फिलिस्तीन के इस कदम के बाद अब ईरान जैसे मुल्कों को भी अपने स्टैंड के बारे में नए सिरे से सोचना पड़ेगा। अब तक ईरान, इजरायल के खिलाफ हमास का साथ देने और उसकी तरफ से लड़ने की बात कर रहा था, लेकिन अब ईरान जैसे मुल्कों के लिए कोई नया कदम उठाने से पहले दुनिया को ये भी समझाना होगा कि वो क्यों फिलिस्तीन की फिक्र नहीं कर रहा है और हमास जैसे संगठन के आतंकवादी मंसूबों को आगे बढ़ाना चाहता है?

5. यहूदी-मुस्लिम रिश्ते की कड़वाहट कम होगी

शुरू से ही फिलिस्तीन और इजरायल के बीच तनाव भरे माहौल में यहूदी-मुस्लिम रिश्तों में भी कड़वाहट भरी रही है। ऐसे में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास का ये कदम रिश्तों में सुधार ला सकता है।

Israel-Hamas war इजरायल-हमास युद्ध now Muslim countries step aside in war countries like Qatar Syria Pakistan step back अब युद्ध में मुस्लिम देश कर सकते हैं किनारा कतर सीरिया पाकिस्‍तान जैसे देश पीछे खीचेंगे अपने कदम