BHOPAL. आज भारतीय राजनीतिक चिंतक और जनसंघ के स्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती है। देश में हर साल 25 सितंबर को अंत्योदय दिवस मनाया जाता है। अंत्योदय अर्थात समाज के अंतिम व्यक्ति का उदय। देश में गरीबों के उत्थान के लिए कई अंत्योदय योजनाएं चल रही हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) संगठनकर्ता भी रहे। पंडित दीनदयाल ने भारतीय सनातन परंपरा को नवीनतम युग के अनुसार करने के लिए एकात्म मानववाद की विचारधारा प्रकट की।
1916 में हुआ था पंडिय दीनदयाल का जन्म
पंडिय दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के फराह शहर के पास नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। इसे दीनदयाल धाम कहा जाता है। इस गांव के लोग उन्हें पूर्वज मानते हैं, हर घर में उनकी पूजा होती है। उनके पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय एक ज्योतिषी थे और मां गृहिणी थीं। पंडित दीनदयाल ने बहुत छोटी उम्र में ही अपने माता पिता को खो दिया था। वे अपने मामा के यहां पले-बढ़े थे। उन्होंने सीकर के हाईस्कूल में पढ़ाई की थी। इसके बाद वे BA करने के लिए कानपुर चले गए और सनातन धर्म कॉलेज में एडमिशन लिया। उन्होंने 1939 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
1937 में RSS से जुड़े पंडित दीनदयाल
पंडित दीनदयाल 1937 में पहली बार सनातन धर्म कॉलेज में पढ़ते हुए RSS से जुड़े। उन्होंने नागपुर में 40 दिनों की गर्मी की छुट्टी में RSS शिविर में हिस्सा लिया। यहां पर उन्होंने संघ शिक्षा का प्रशिक्षण लिया। 1942 से पंडित दीनदयाल ने RSS के लिए पूर्णकालिक रूप से काम करना शुरू कर दिया।
1963 में जौनपुर से लड़ा लोकसभा चुनाव
पंडित दीनदयाल उपाध्याय 1967-68 तक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। उन्होंने 1963 में जौनपुर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली।
साप्ताहिक पत्रिका में किया कार्य
1940 के दशक में पंडित उपाध्याय ने हिंदुत्व विचारधारा के प्रसार के लिए लखनऊ से मासिक राष्ट्र धर्म प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने लखनऊ से ही एक साप्ताहिक पत्रिका पांचजन्य और एक दैनिक स्वदेश भी शुरू किया। वे ‘एकात्म मानववाद’ के साथ आए जिसे 1965 में जनसंघ के आधिकारिक सिद्धांत के रूप में अपनाया गया था।
पंडित दीनदयाल के अनमोल विचार
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि राष्ट्र एक स्वाभाविक संगठन हैं। मानव-शरीर के सभी अवयव जिस प्रकार स्वाभाविक रूप से क्रियाशील रहते हैं, उसी प्रकार राष्ट्र के विभिन्न घटक भी राष्ट्र सेवा के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं। एक राष्ट्रभाव की विस्मृति के कारण यदि घटक अंग शिथिल पड़ते हैं तो राष्ट्र का पतन होता है और यदि ये पूरी तरह निष्क्रिय हो गए तो संपूर्ण राष्ट्र के विनाश का कारण बनते हैं।
पंडित दीनदयाल की अखण्ड भारत की कल्पना में कटक से अटक, कच्छ से कामरूप और कश्मीर से कन्याकुमारी और संपूर्ण भूमि के कण-कण को पुण्य और पवित्र नहीं अपितु आत्मीय मानने की भावना अखण्ड भारत के अंतर्गत अभिप्रेत है।
पंडित दीनदयाल का विचार था कि यदि भारत की आत्मा को समझना है तो राजनीति अथवा अर्थनीति के चश्मे से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही देखना होगा। विश्व को हम अपनी सांस्कृतिक सहिष्णुता और कर्तव्यपरायणता से बहुत कुछ समझा सकते हैं।
स्वराज्य किसी भी राष्ट्र का प्राण है। स्वराज्य समाज की वो स्थिति है जिसमें समाज अपने विवेक के अनुसार निश्चित ध्येय की ओर बढ़ सकता है।
पंडित दीनदयाल ने राष्ट्र और राज्य में अंतर बताया है। उनका मत है कि राष्ट्र एक स्थायी सत्य है। राष्ट्र की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए राज्य उत्पन्न होता है। राष्ट्र निर्माण केवल नदियों, पहाड़ों, मैदानों या कंकड़ों के ढेर से ही नहीं होता और न ही ये केवल भौतिक इकाई ही है। इसके लिए देश में रहने वाले लोगों के ह्रदयों में उसके प्रति असीम श्रद्धा की अनुभूति होना प्रथम आवश्यकता है। इसी श्रद्धा की भावना के कारण हम अपने देश को मातृभूमि कहते हैं।
1968 में रहस्यमय परिस्थितियों में निधन
पंडित उपाध्याय की फरवरी 1968 में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। उनका शव उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे जंक्शन के पास मिला था। आज तक उनकी मौत की वजह का पता नहीं चल पाया है। पंडित दीनदयाल की मृत्यु आज भी एक रहस्य है। उनकी याद में मुगलसराय रेलवे जंक्शन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया।