नई दिल्ली. पेगासस जासूसी केस से सुप्रीम कोर्ट ने पिटीशनर्स को हिदायत दी है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि मामला कोर्ट में (सबज्यूडिस) है। हम बहस के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसकी बात यहीं पर होनी चाहिए। किसी को हद पार नहीं करनी चाहिए। सोशल मीडिया की बजाय बहस का सही माध्यम चुनें और सिस्टम का सम्मान करें। मामले से जुड़ी 9 अर्जियों पर 10 अगस्त को सुनवाई हुई। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई 16 अगस्त तक टाल दी।
SIT जांच की मांग
पेगासस केस में पत्रकारों, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तरफ से याचिका दायर कर SIT जांच की मांग की गई है। 5 अगस्त को हुई सुनवाई में CJI ने कहा था कि अगर जासूसी से जुड़ी रिपोर्ट सही हैं तो ये गंभीर आरोप हैं। साथ ही सभी पिटीशनर्स से कहा कि वे अपनी-अपनी अर्जियों की कॉपी केंद्र सरकार को मुहैया करवाएं, ताकि कोई नोटिस लेने के लिए मौजूद रहे।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर सवाल उठाए थे
कोर्ट ने बिना फ्रेमवर्क याचिकाएं दायर करने पर भी सवाल उठाए थे। साथ ही केंद्र को तुरंत नोटिस जारी करने से भी इनकार कर दिया था। पिछली सुनवाई की शुरुआत में ही CJI ने कहा था, 'जासूसी की रिपोर्ट 2019 में सामने आई थी। मुझे नहीं पता कि और ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए क्या कोशिशें की गईं। अभी मामला क्यों उठा है। पिटीशनर्स कानून के जानकार लोग हैं, मगर अपने पक्ष में संबंधित सामग्री जुटाने में इतनी मेहनत नहीं की है कि हम जांच का आदेश दे सकें। जो खुद को प्रभावित बता रहे हैं, उन्होंने FIR ही नहीं कराई।'
क्या है पेगासस विवाद?
खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय ग्रुप का दावा है कि इजराइली कंपनी NSO के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से 10 देशों में 50 हजार लोगों की जासूसी हुई। भारत में भी अब तक 300 नाम सामने आए हैं, जिनके फोन की निगरानी की गई। इनमें सरकार में शामिल मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, वकील, जज, कारोबारी, अफसर, वैज्ञानिक और एक्टिविस्ट शामिल हैं।