New Delhi. पंजाब के कद्दावर नेताओं में शामिल सुनील जाखड़ 19 मई को बीजेपी में शामिल हो गए। उन्होंने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया। इस दौरान नड्डा ने कहा कि मैं सुनील जाखड़ का पार्टी में स्वागत करता हूं। वे अनुभवी नेता हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान अपना एक नाम बनाया। मुझे विश्वास है कि वे पंजाब में पार्टी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे। जाखड़ ने कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर लाइव होकर कांग्रेस को अलविदा कह दिया था।
कौन हैं जाखड़?
पंजाब के दिग्गज हिंदू नेताओं में शामिल सुनील जाखड़ पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के बेटे हैं। 1954 में जाखड़ परिवार में जन्मे सुनील जाखड़ ने 2002 से 2017 तक अबोहर निर्वाचन क्षेत्र से लगातार विधायक का चुनाव जीता। 2017 में अबोहर से विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी प्रत्याशी से हार मिली। इसके बाद सांसद विनोद खन्ना के निधन के बाद 2017 में उन्होंने गुरदासपुर लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ा। 2017 में जाखड़ को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 2019 में गुरदासपुर सीट से उन्होंने फिर लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
कांग्रेस हाईकमान के वादा पूरा न करने से नाराज थे
सोशल मीडिया पर लाइव होकर कांग्रेस छोड़ने वाले सुनील जाखड़ पार्टी हाईकमान से नाराज बताए जा रहे थे। विधानसभा चुनाव से पहले जब हाईकमान ने उन्हें प्रदेश प्रमुख पद से हटाकर नवजोत सिद्धू को कमान सौंपी, तब उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का भरोसा दिलाया गया था। जाखड़ ने उस समय तो शांति से पद छोड़ दिया, लेकिन उसके बाद नए मुख्यमंत्री की दौड़ से भी उन्हें बाहर कर दिया गया। विधानसभा चुनाव में पार्टी की जो हालत हुई, उसके बाद से जाखड़ खुद को हाशिए पर ही महसूस कर रहे थे।
सितंबर 2021 में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद के इस्तीफे के साथ ही सुनील जाखड़ के इस्तीफे की पटकथा लिखनी शुरू हो गई थी। 42 विधायकों की रजामंदी के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से भी जाखड़ केंद्रीय नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। इसके बाद उन्होंने फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में सक्रिय राजनीति से दूर रहकर किनारा कर लिया था।
ऐसे कांग्रेस से दूर होते गए जाखड़
पंजाब के जानकारों के मुताबिक, जाखड़ के इस्तीफे की स्क्रिप्ट तब शुरू हुई, जब कांग्रेस हाईकमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था। फरवरी में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी। इसके साथ ही उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। केंद्रीय नेतृत्व के प्रति उनका यह गुस्सा तब निकला, जब वे विधानसभा चुनाव में अपने भतीजे के लिए प्रचार कर रहे थे।
उन्होंने इस दौरान यह दावा किया कि पिछले साल अमरिंदर सिंह के अचानक इस्तीफे के बाद 42 विधायक उन्हें पंजाब का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे इसके बाद भी वह कांग्रेस का हिस्सा बने रहेंगे। इसके बाद उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ बयान देकर भी केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोला था, जिसके बाद उनके खिलाफ पार्टी आलाकमान की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। इन सब मामलों को लेकर वह केंद्रीय नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। वह पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रभारी हरीश रावत और वर्तमान पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश चौधरी के रवैये से भी नाखुश थे।